________________
(
८७
)
तविपरीभो मोसोxxxi
-गोजी० गा २१७ तद्विपरीतो मोषमनोयोगः।
-षट • नं १, १ । सू ४६ । टीका । पु १ । पृ. २८० उपर्यक्त सत्य के विपरीत मनः के व्यापार को असत्यमनोयोग या मृषामनोयोग कहते हैं। .०२ २५ सत्यमृषामनोयोग का लक्षण
जाणुभयं सचमोसोत्ति ।। -गोजी० गा २१७ जिसमें उपर्युक्त सत्य और असत्य दोनों का मिश्रण हो उसको सत्यमृषामनोयोग कहते हैं। ०२.०२६ असत्यमृषामनोयोग का लक्षण
ण य सञ्चमोसजुत्तो जो दु मणो सो असञ्चमोसमणो। जो जोगो तेण हवे असचमोसो दु मणजोगो॥ -गोजी• गा २१८
जो न सत्य हो और न मिथ्या हो, ऐसे असत्यमृषा मन के द्वारा होनेवाले योग को असत्यमृषामनोयोग कहते हैं । •०२.०२७ सत्यवचनयोग का लक्षण दसविहसच्चे षयणे जो जोगो सो दु सञ्चवचियोगो।
____
x x x ॥ - गोजी० गा २१९ दस प्रकार के सत्य अर्थ के वाचक वचन को सत्यवचन कहते है तथा उससे होनेवाले योग को सत्यवचन योग कहते है। ०२.०२८ मृषावचनयोग का लक्षण
__x x x x ।
तविवरीओ मोसो॥ -गोजी• गा २१९ सत्यवचनयोग के विपरीत जो वचन को विषय करनेवाला योग होता है उसको मृषावचनयोग या असत्यवचनयोग कहते हैं । -०२.०२९ सत्यमृषावचनयोग के लक्षण
x x x x x ।
x x x जाणुभयं सचमोसो ति॥ -गोजी• गा २१६
जो कुछ सत्य और कुछ मिथ्या का वाचक हो उसको सत्यमृषा वचनयोग कहते हैं। ०२:०३० असत्यामृषावचनयोग का लक्षण
जो णेष सश्चमोसो सो जाण असश्चमोसषधिजोगो। अमणाणं जा भासा सण्णीणामंतणी आदी॥ -गोजी• गा २२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org