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आत्मा को वासित करने के लिए आशा प्राप्त कर उपाश्रयादि में रहते हुए साधु का उपाभय में स्थित तृणादि भी बिना आशा के ग्रहण न करने रूप संयम में रदता का पालन करना-अवग्रह समिति योग। .०६५ ओघसजोगिरासि ( ओघसयोगिराशि)
-षट • खं १, सासू ५८ाटीका। ५० २७४ औधिक सयोगिकेवलियों की राशि।
मणुस-मणुसपजत्तएसु ओघसजोगिरासिं उविय हेडिमरासिणा ओषट्टिय गुणगारो उप्वादेदव्वो।
मनुष्य और मनुष्य-पर्याप्त में से निकाली हुई वह राशि, जिसमें अधस्तन राशि से भाग देकर भागफल प्रमाण संचयकाल की अपेक्षा सयोगिकेवलियों के संख्यात गुणन का गुणकार बनता है वह-ओघसयोगिराशि। .०६६ ओरालियमीससरोकायप्पओग (औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोग)
-~-पण्ण० प १६।सू १.६८ औदारिकमिश्र शरीर रूप काय का प्रयोग अर्थात व्यापार ।
पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते, तंजहा-xxx ओरालियमीससरीरकायप्पओगे १० xxx ।
टीका-'औदारिकमिश्रकायशरीरप्रयोग' इति औदारिकं च तन्मिभं च औदारिकमिश्रं, केन सहमिश्रितमितिचेत् ? उच्यते, कार्मणेन, तथा चोक्तं नियुक्तिकारेण शस्त्र (आहार) परिक्षाध्ययते-'जोएणं कम्मएणं आहारेह अणंतरं जीवो। तेण परं मीसेणं जाव सरीरस्स निष्फत्ती॥
कार्मण-कर्मप्रधान शरीर से मिश्रित प्रधानीभूत औदारिक शरीर रूप काय का प्रयोग-योग अर्थात् चेष्टाएँ -औदारिक-शरीरकायप्रयोग। .०६७ ओरालियसरीरकायप्पओगे ( औदारिकशरीरकायप्रयोग)
-पण्ण० प १६।सू १०६८ __औदारिक शरीर रूपकाय की चेष्टा ।
पण्णरसबिहे पओगे पण्णत्ते, तंजहा-xxx ओरालियसरीरकायप्पओगे ९ xxx।
टीका-'ओरालियसरीरकायप्पओगे' इति xxx औदारिकमेवशरीर तदेष पुद्गलस्कन्धसमुदायरूपत्वात् उपवीयमानत्वाच कायः औदारिकशरीरकायः तस्य प्रयोगः औदारिकशरीरकायप्रयोगः, अयं च तिरश्चो मनुष्यस्य च पर्याप्तस्य १ xxx I
तिय च और मनुष्यों में पर्याप्त अवस्थामें औदारिक पुदगल स्कन्ध समुदाय रूप शरीर की चेष्टा-औदारिकशरीरकायप्रयोग।
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