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१२२०, जैन-लक्षणावली
स्व० मुख्तार साहब का जन्म २० दिसम्बर १८७७ को सरसावा, जिला सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था । सन् १९३६ में उन्होंने "वीर सेवा मन्दिर" की स्व० मुख्तार साहब ने तथा अन्य समकालीन विद्वानों ने जैन प्रकाशित ग्रन्थों की खोज की तथा प्राचीन पाण्डुलिपियों के की नींव डाली ।
स्थापना को । इस संस्था के माध्यम से वाङ्मय के अनेक दुर्लभ, अपरिचित और सम्यक् परीक्षण-पर्यालोचन और सम्पादन
पत्र का प्रकाशन
मुख्तार साहब ने "अनेकान्त" नाम से जिस शोध प्रारम्भ किया था वह 'वोर सेवा मन्दिर' के मुख पत्र के रूप में अब भी चल रहा है। अनुसन्धान के क्षेत्र में इस पत्र ने जो शोधसामग्री विद्वत् समाज के सामने प्रस्तुत की, उससे अनेक नये तथ्य उद्घाटित हुए और अनुसन्धान कार्य को नई दिशा-दृष्टि प्राप्त हुई ।
मुख्तार साहब का सम्पूर्ण जीवन जैन साहित्य और समाज के लिए समर्पित हुआ। मुख्तार का कार्य तो उन्होंने केवल एक अल्प काल के लिए ही किया। जैन समाज के उस पुनर्जागरण के युग में मुख्तार साहब ने समाज सुधार का बीड़ा उठाया और सामाजिक क्रान्ति को सुदृढ़ शास्त्रीय श्राधार दिए । वर्षों तक मुख्तार साहब ने "जैन गजट" तथा "जैन हितैषी" के सम्पादन का कार्य किया । उनके द्वारा रचित 'मेरी भावना' तो एक ऐसी अभूतपूर्व रचना है जो जैन समाज ने स्थायी रूप से अपना ली है और उसके द्वारा आचार्य सदा-सदा जन-जन के मानस पर स्थापित रहेंगे ।
ऐतिहासिक अनुसन्धान, प्राचार्यों का समय निर्णय, प्राचीन पाण्डुलिपियों का सम्यक् परीक्षण तथा विश्लेषण करने की उनकी प्रद्भुत क्षमता थी। उनके प्रमाण अकाट्य होते थे । उनकी साहित्य सेवा अर्धशताब्दी से भी अधिक के दीर्घकाल में व्याप्त है । वे जीवन के अन्तिम क्षण तक अध्ययन और अनुसन्धान के कार्य में लगे रहे । अन्त में वह अनवरत स्वाध्यायी, प्रतिभा सम्पन्न, बहुश्रुत, विद्वान २२ दिसम्बर, १९६८ को स्वर्गारोही हुए ।
१-१-१६७६
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