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संयम]
११२६, जैन-लक्षणावली
[संयोग
हार
दण्डच्चाएण इंदियजएण । परिणममानस्स पुणो त्तोपलक्षणोपशमे सति प्रत्याख्यान-संज्वलनाष्टसंजमधम्मो हवे णियमा ॥ (द्वादशानु. ७६)। कस्योदये सति नोकषायनवकस्य यथासंभवोदये च २. धर्मोपबहणार्थ समितिषु वर्तमानस्य प्राणेन्द्रिय- सति संयमासंयमः संजायते । (त. वृत्ति श्रुत. २-५)। परिहारस्संयमः । (स. सि. ६-६)। ३. समितिषु १ स्थूल प्राणातिपातादि (हिंसादि) से निवृत्तिरूप प्रवर्तमानस्य प्राणीन्द्रियपरिहारः संयमः। ईर्या- परिणति को संयमासंयम कहा जाता है। ४ चार समित्यादिषु वर्तमानस्य मुनेस्तत्परिपालनार्थः प्राणी. स्थावरों के विघातका और दस प्रकार के त्रस न्द्रियपरिहार: संयम इत्युच्यते । (त. वा, ६-६, जीवों के रक्षण का जो परिणाम होता है उसे १४)। ४. समितिषु प्रवर्तमानस्य प्राणीन्द्रियपरिहारः संयमासंयम कहते हैं। संयमः । (त. श्लो. ६-६)। ५. इन्द्रियार्थेषु संयुक्तद्रव्यसंयोग-तत्थ संजुत्तदव्वसंजोगो णाम वैराग्यं प्राणिन वधवर्जनम । समिती वर्तमानस्य
जो पुव्वसंजत्त एव अण्णण दब्वेण सह संयुज्जते । मनेर्भवति संयमः।। (त. सा. ६-१८)। ६. जो (उत्तरा. च. पृ. १५)। जीवरक्खणपरो गमणागमणादिसव्वकम्मेसु । तण- पर्व संयक्त हो जो द्रव्य अन्य द्रव्य के साथ संयोग छेदं पि ण इच्छदि संजमभावो हवे तस्स ।। (काति
को प्राप्त होता है, इसे संयुक्तद्रव्यसंयोग कहते हैं । के. ३९९)। १ जो जीव व्रतों व समितियों के पालने, दण्डों के
संयुक्ताधिकरण-- १. संयुक्ताधिकरणम्--अधिछोड़ने और इन्द्रियों के जीतने रूप से परिणत
क्रियते नरकादिष्वनेनेत्यधिकरणं वास्युदूखल-शिलाहोता है उसके नियम से संयमधर्म होता है। २ धर्म पुत्रक-गोधूम-यन्त्रादिसंयुक्तम् अर्थक्रियाकरणयोग्यम्, के बढ़ाने के लिए समितियों में प्रवर्तमान साधन संयुक्त च तदधिकरणं चेति समासः । (प्राव. हरि. जो प्राणविधात व इन्द्रियविषयों का पा
वृ.अ. ६, पृ ८३१) । २. संयुक्ताधिकरणम् -
अधिक्रियते नरकादिष्वनेनेत्यधिकरणं वास्यूदखलहोता है, इसे संया कहते हैं। संयमविराधना-श्वादयश्च तिष्ठन्तो मार्जार
शिलारपुत्रक-गोधूमयंत्रकादिषु संयुक्तमर्थक्रियाकरण
योग्यम्, संयुक्तं च तदधिकरणं चेति समासः । मूषिकादिकमुपहन्युरिति संयमविराधना । (व्यव. भा. मलय. वृ. ४-२५)।
(श्रा. प्र. टी. २६१)। ३. अधिक्रियते दुर्गतावाकुत्ता प्रादि रहते हुए बिल्ली व चूहों आदि का
त्माऽनेनेत्यधिकरणमुदूखलादि, संयुक्तम् उदूखलेन घात करते हैं, इस प्रकार के विचार से संयम की मुशलम्, हलेन फालः, शकटेन युगम्, धनुषा शराः, विराधना होती है।
एवमेकमधिकरणमधिकरणान्तरेण सयुक्तं संयुसंयमस्थान-संयमस्थानं संयमाध्यवसाय विशेषाः ।
क्ताधिकरणम्, तस्य भावस्तत्वम् । (योगशा.
स्वो. विव. ३-११५)। (उत्तरा. चू. पृ. २४०)। संयम के लिए जो उत्तरोत्तर प्रयास किया जाता
३ जिसके द्वारा जीव दुर्गति में अधिकृत किया है, इसे संयमस्थान कहते हैं।
जाता है उसे अधिकरण कहते हैं, संयुक्त जैसेसंयमासंयम --१. संयमासंयमः स्थलप्राणातिपा. उदूखल (प्रोखली) से संयुक्त मूसल, हल से संयुक्त तादिनिवृत्तिरूपः । (त. भा. हरि. व. ६-१३)। फाल, गाड़ी से संयुक्त युग और धनुष से संयुक्त २. स्थूलप्राणातिपातादिनिवृत्तिः अणुव्रत-गुणवत- वाण; इस प्रकार एक अधिकरण जो दूसरे अधिशिक्षाव्रतविकल्पा । (त. भा. सिद्ध. ६-१३)। करण से संयुक्त होता है, इसे संयुक्ताधिकरण कहा ३. विरताविरतत्वेन संयमासंयमः स्मृतः । (त. सा. जाता है । यह अनर्थदण्डव्रत का एक अतिचार है। २-८५)। ४. चतुःस्थावरविध्वंसी दशधात्रस रक्ष- संयोग-१. पुधप्पसिद्धाणं मेलण संजोगो। (धव. कः । सम्पद्यते परीणामः संयमासंयमोऽस्ति सः ॥ पु. १५, पृ. २४)। २. नैरन्तर्येणावयबप्राप्तिमात्र (पंचसं. अमित. १-२४६)। ५. अनन्तानुबन्ध्य- संयोगः । (त. भा. सिद्ध. वृ. ५-२६)। प्रत्याख्यानकषायाष्टकस्य उदयस्य क्षये सति तत्स- १ पृथग्भूत पदार्थों के मेल का नाम संयोग है।
ल. १४२
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