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बुध]
८२५, जैन-लक्षणावली [बोधिदुर्लभत्वानुप्रेक्षा चार प्रकार की बुद्धि से सम्पन्न होता है उसे बुद्धि- समुद्रे पतिता वज्रसिकताकणिकेव दुर्लभा । Xxx सिद्ध जानना चाहिए।
तस्मिन् सति बोधिलाभः फलवान् भवतीति चिन्तनं बुध-ज्ञेय इह तत्त्वमार्गे बुघस्तु मार्गानुसारी यः । बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा । एवं ह्यस्य भावयतो बोधि प्राप्य (षोडश. १-३)।
प्रमादो न कदाचिदपि भवति । (स. सि. ६-७) । जो तत्त्वमार्ग-प्रवचन को उन्नति के निमित्तभूत ५. अनादौ संसारे नरकादिषु तेषु तेषु भवग्रहणेष्वपरमार्थ मार्ग में स्थित होता हुआ मार्गानुसारी- नन्तकृत्वः परिवर्तमानस्य जन्तोविविधदुःखाभिहतस्य रत्नत्रय का अनुसरण करने वाला होता है उसे मिथ्यादर्शनाद्युपहतमतेर्ज्ञानदर्शनावरणमोहान्तरायोदबुध जानना चाहिए।
याभिभूतस्य सम्यग्दर्शनादिविशुद्धो बोधिदुर्लभो बोध-देखो ज्ञान । xxx आत्मपरिज्ञानमि- भवतीत्यनुचिन्तयेत् । एवं ह्यस्य बोधिदुर्लभत्वमनुध्यते बोधः । (पु. सि. २१६)।
चिन्तयतो बोधि प्राप्य प्रमादो न भवतीति बोधिआत्मस्वरूप का जो परिज्ञान होता है उसे बोध दुर्लभत्वानुप्रेक्षा । (त. भा. ६-७) । ६. सभावाकहते हैं।
दिलाभस्य कृच्छ्रप्रतिपत्तिः बोधिदुर्लभत्वम् । उक्तं बोधि-१. इह बोधिः जिनप्रणीतधर्मप्राप्तिः, इयं च-एगणिगोदसरीरे जीवा दव्वप्पमाणदो दिट्ठा। पुनर्यथाप्रवृत्तापूर्वानिवृत्तिकरणत्रयव्यापाराभिङ्ग्यम- सिद्धेहि अणंतगुणा सव्वेणवि तीदकालेण ।। इत्यागमभिन्नपूर्वग्रन्थिभेदतः पश्चानुपा प्रशम-संवेग-निर्वेदा- प्रामाण्यादेकस्मिन् निगोतशरीरे जीवा: सिद्धानामननुकम्पास्तिक्याभिव्यक्तिलक्षणं तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्य- न्तगुणाः I XXX तस्मिन् सति बोधिलाभः भवग्दर्शनम्, विज्ञप्तिरित्यर्थः । (ललितवि. पृ. ४४)। तीति चिन्तनं बोधिदुर्लभत्वानुप्रेक्षा। (त. वा. ६, २. बोधिश्च जिनशासनावबोधलक्षणा सकलदुःख- ७, ६) । ७. मोक्षारोहणनिःश्रेणिः कल्याणानां परविरेकभूता। (प्राव. नि. हरि. वृ. ११०६)। म्परा। अहो कष्टं भवाम्भोधौ बोधिर्जीवस्य दुर्लभा । ३. अप्राप्तानां हि सम्यग्दर्शनादीनां प्राप्तिर्बोधिः। (त. सा. ६-४१)। ८. बोधिर्बोधनमित्युक्तमनन्य(रत्नक. टी. २-२) ।
मनसात्मनः । दुर्लभा सा हि जीवानां बोधिदुर्लभ १ जिनोपदिष्ट धर्म की प्राप्ति का नाम बोधि है। इष्यते ।। (जम्ब. च. १३-१३९)। ६. अनन्तकालयह उस सम्यग्दर्शनस्वरूप है जो यथाप्रवृत्त, अपूर्व- दुर्लभमनुष्यभावादिसामग्रीयोगेऽपि दुष्प्रापं प्रायो करण और अनिवृत्तिकरण इन तीन करणों के बोधिबीजं जीवानामित्यादिचिन्तनं बोधिदुर्लभभावव्यापार के द्वारा पूर्व में नहीं भेदी गई प्रन्थिके भेदन ना । (सम्बोधस. १६, पृ. १८) । से प्रगट होता है तथा जिसके प्राविर्भूत हो जाने पर १ जिस उपाय के द्वारा सम्यग्ज्ञान उत्पन्न होता है प्रशम, संवेग, निवेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य गुण उस उपाय को चिन्ता का नाम बोधि है, वह प्रगट हो जाते हैं । ३ पूर्व में नहीं प्राप्त हुए सम्य- अत्यन्त दुर्लभ है । इस प्रकार से जो निरन्तर ग्दर्शनादि की प्राप्ति को बोधि कहा जाता है। चिन्तन होता है उसे बोधिदुर्लभ भावना कहते हैं ।
--१. उप्पज्जदि सण्णाणं ५. अनादि संसार में उन उन नरकादि भवों में जेण उवाएण तस्सुवायस्स । चिंता हवेइ बोही अच्चं- अनन्त वार परिवर्तन करने वाला यह जीव अनेक तं दल्लहं होदि ॥ (द्वादशान. ८३)। २. लद्धेस् दुःखों से अभिभत होता है, उसकी बद्धि मिथ्यादर्शवि एदेसू य बोधी जिणसासणम्हि ण हु सुलहा। नादि के द्वारा विपरीतता को प्राप्त होती है तथा कुपहाणमाकुलत्ता जं बलियो राग-दोसा य ।। (मला. वह ज्ञानावरणादि चार घातिया कर्मों के उदय से ८-६७)। ३.दंसण-सूद-तव-चरणमइयम्मि धम्मम्मि प्राक्रान्त रहता है। इसी से उसे सम्यग्दर्शनादि से दुल्लहा बोही। जीवस्स कम्मसत्तस्स संसरंतस्स विशद्ध बोधि दुर्लभ होती है। इस प्रकार से चिन्तन संसारे ।। (भ. प्रा. १८६६) । ४. एकस्मिन् निगो- करने वाला जीव बोधि को प्राप्त करके कभी तशरीरे जीवाः सिद्धानामनन्तगुणा, एवं सर्वलोको प्रमाद को प्राप्त नहीं होता । यही बोधिदुर्लभत्वानुनिरन्तरं निचितः स्थावरैरतस्तत्र त्रसता वालुका- प्रेक्षा है।
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