SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नामपुरुष] ५६७, जैन-लक्षणावली [नामभाव से निष्पन्न (अन्वर्थक) पिण्ड नाम है। प्राचारांग कर्मोदयत: परस्परं बद्धानां शरीर पूदगलानां स्नेहमें द्रव द्रव्यरूप जल को भी पिण्ड कहा गया है। मधिकृत्य या स्पर्द्धकप्ररूपणा सा नामप्रत्ययस्पद्धकयह समयकृत पिण्ड नाम है। भिक्ष या भिक्षुणी प्ररूपणा। (पञ्चसं. मलय. व. ब. क. १६,प. किसी गहस्थ के घर जाकर जिस गडपिण्ड या २१)। प्रोदनपिण्ड को प्राप्त करते हैं वह उभयकृत (गौण १शरीरनामकर्म के उदय से परस्पर में बन्धको व समयकृत) पिण्ड नाम है। यह अन्वर्थक भी है प्राप्त पुदगलों के स्पर्द्धकों की प्ररूपणा करने को और प्रागमप्रसिद्ध भी है। किसी पुरुषविशेष का नामप्रत्ययस्पर्द्धकप्ररूपणा कहते हैं। शरीरावयवों के समदाय की विवक्षा के विना नामप्रत्याख्यान-अयोग्यं नाम नोच्चारयिष्या'पिण्ड' यह नाम करना यह अनुभयज 'पिण्ड' कहा मीति चिन्ता नामप्रत्याख्यानम् । (भ. प्रा. विजयो. जायगा। कारण कि उसमें न अन्वर्थकता है और न प्रागमप्रसिद्धता भी है। इस तरह उक्त चारों मैं पागे अयोग्य नाम का उच्चारण नहीं करूंगा, प्रकार के पिण्ड को नामपिण्ड कहा जाता है। इस प्रकार का विचार करने को नामप्रत्याख्यान नामपूरुष-नाम इति संज्ञा, तन्मात्रेण पुरुषो नाम- कहते हैं। पुरुषः, यथा घट: पट इति । यस्य वा पुरुष इति नामप्रमाण-से कि तं नामपमाणे ?, २ जस्स णं नामेति । (सूत्रकृ. नि. शी. व. १-५५)। जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाणं वा अजीवाणं वा नाम मात्र से जो पुरुष है, अथवा जिसका 'पुरुष' तदुभयस्स वा तदुभयाणं वा पमाणेत्ति नाम कज्जइ यह नाम है, उसे नामपुरुष कहा जाता है। से तं णामपमाणे । (अनु यो. सू. १३०, पृ. १४४)। नामपूजा--- नामोच्चार्य जिनादीनां स्वच्छ देशे एक जीव, एक अजीव, बहुत-बहुत जीव, बहुत-बहुत क्वचिज्जनः । पुष्पादीनि विकीर्यन्ते नामपूजा भवे अजीव, एक-एक जीव-जीव, अथवा बहुत-बहुत दसौ।। (धर्मसं. श्रा. ६-८७)। जीव-जीव, इनमें से जिस का 'प्रमाण' यह नाम अरहन्त प्रादि के नामों का उच्चारण करके पुष्प किया जाता है वह नामप्रमाण कहलाता है। प्रादि के अर्पण करने को नामपूजा कहते हैं। नामबन्ध-जो सो णामबंधो णाम सो जीवस्स वा. नामप्रतिक्रमण-१. अयोग्यनाम्नामनुच्चारणं नाम अजीवस्स वा जीवाणं वा, अजीवाणं वा, जीवस्स च प्रतिप्रतिक्रमणम् । तहिं दारिगा सामिणी इत्यादिक अजीवस्स च, जीवस्स च अजीवाणं च, जीवाणं च मयोग्यं नाम । (भ. प्रा. विजयो. ११६, पृ. २७५); अजीबस्स च, जीवाणं च अजीवाणं च जस्स णामं भट्टिणी भट्रिदारिगा इत्याद्ययोग्यनामोच्चारणं कृत कीरदि बंघो त्ति सो सम्वो णामबंधो णाम । (षट्खं. वतस्तत्परिहरणं नामप्रतिक्रमणम् । (भ. प्रा. ५, ६, ७-धव. पु. १४, पृ. ४)। विजयो. ४२१, पृ. ६१५)। २. नामप्रतिक्रमणं एक जीव; एक अजीव, बहुत जीव, बहुत अजीव, पापहेतूनामातीचारान्निवर्तनं प्रतिक्रमणदण्डकगत एक जीव एक अजीव, एक जीव बहुत अजीव, शब्दोच्चारणं वा । (मला. व. ७-११५)। बहुत जीव एक अजीव, बहुत जीव बहुत अजीव, १ भट्टिनी (स्वामिनी) व भट्टिनीदारिका प्रादि इन पाठ में से जिसका 'बन्ध' यह नाम किया जाता अयोग्य नामों का उच्चारण नहीं करना, अथवा है उसे नामबन्ध कहते हैं। उच्चारण करने पर उसका परिहार करना, इसे नामप्रतिक्रमण कहते हैं। नामबन्धक-णामबंधया णाम 'बंधया' इदि सहो नामप्रत्ययस्पर्द्धकप्ररूपरणा-१. सरीरणामकम्म जीवाजीवादिअभंगेसु पयतो । (धव. पु. ७, स्स उदएणं परोप्परं बद्धाणं पोग्गलाणं फडडगपरू- पृ. ३)। वणा णामपच्चयफड्डगपरूवणा। (कर्मप्र. चू. ब जीवाजीवादि पाठ भंगों में जिनका 'बन्धक' यह क. २१, पृ. ५४)। २. तथा नामप्रत्ययस्य-बन्धन- नाम किया जाता है उन्हें नामबन्धक कहते हैं। नाभनिमित्तस्य शरीरदेशस्पर्द्धकस्य प्ररूपणा नाम- नामभाव-भावसद्दो बज्झत्थणिरवेवखो अप्पाणम्हि प्रत्यस्पर्द्धकप्ररूपणा। अयमर्थः-शरीरबन्धननाम- चेव पयट्टो णामभाबो होदि । (धव. पु. ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016022
Book TitleJain Lakshanavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy