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खात]
४०५, जन-लक्षणावलो
है। दूसरे प्राचार्यों का कहना है कि लगाम से भांति नियंत्रित, शत्र से अभेद्य, बहुत धन-धान्यादि पीड़ित घोड़े के समान ऊपर-नीचे शिर के कंपाने से परिपूर्ण और अयोध्य होते हैं; इत्यादि प्रकार का नाम खलीनदोष है।
से खेट आदि के सम्बन्ध में कथा-वार्ता करना, इसे खात-१. खातं भूमिगृहादि । (योगशा. स्वो. खेटादिकथा कहते हैं। विव. १-६५) । २. खातं तूभयत्रापि सममिति। खेद-अनिष्टलाभः खेद:। (नि. सा. टी. ६)। (जम्बद्वी. शा. व. १२. पृ. ७६: जीवाजी. मलय. अनिष्ट के संयोग से चित्त में होने वाली खिन्नता व. ३, १, ११७, पृ. १५६)।
को खेद (अठारह दोषगत एक दोष) कहते हैं । १ भूमिगृह (तलघर) का नाम खात है।
खेलौषधि ऋद्धि-देखो श्वेलौषधि। खातोच्छित-खातोच्छितं भूमिगृहस्योपरि गृहा- गगन-पागासं गगण देवपथं गोझगाचरिदं प्रव. दिसन्निवेशः । (योगशा. स्वो. विव. ३-६५)। गाहणलक्खणं आधेयं वियापगमाघारो भूमि ति भूमिगह के ऊपर बनाये गये गहादि को खातोच्छित एयट्रो। (धव. पु. ४, पृ. ८)। कहते हैं।
जो अन्य द्रव्यों को स्थान देने वाला है उसे गगन खाद्य-शर्करादि वा । खाद्यं xxxII (लाटी- ___ कहते हैं। प्राकास, देवपथ, गद्यकाचरित, अवगासं. २-१६)
हनलक्षण, प्राधेय, व्यापक, प्राधार और भूमि; ये शक्कर प्रादि खाद्य कहलाते हैं।
उसके समानार्थक नाम हैं। खारी-षोडशद्रोणा खारी। (त. वा. ३,३८,३)। गगनगामिनी-देखो आकाशगामिनी। गच्छेदि सोलह द्रोण प्रमाण मापविशेष को खारी कहते हैं। जीए ऐसा रिद्धी गयणगामिणी णाम 1 (ति.प. खेट-१. गिरि-सरिकदपरिवेढं खेडं xxx ॥ ४-१०३४) । (ति. प. ४-१३६८)। २. सरित्पर्वतावरुद्धं खेडं जिसके प्रभाव से प्राकाश में गमन किया जा सकती णाम । (धव. पु. १३, पृ. ३३५)। ३. खेट नद्या- है उसे गगनगामिनी ऋद्धि कहते हैं। प्राकाशद्विवेष्टिम् । (मला. व. 8-८६)। ४. खेटं घुली- गामिनी भी इसी का दूमरा नाम है। प्राकारम् । (प्रश्नव्या. अभय. व. पु. १७५; गच्छ--१. तिपुरिसओ गणो, तदुवरि गच्छों में प्रौपपा. अभय. वृ. ३२, पृ. ७४) । ५. पांसु-प्राका- (धव. पु. १३, पृ. ६३) । २. एकाचार्यप्रणयरनिबद्धं खेटम् । (जीवाजी. मलय. वृ. १-३६); साधुसमूहो गच्छः। (त. भा. सिद्ध. वृ. ६-२४, पांशप्राकारनिबद्धानि खेटानि । (जीवाजी. मलय. योगशा. स्वो. विव. ४-१०)। ३. साप्तपुरुषिको व. ३, २, १४७, पृ. २७६)।
गच्छः । (मूला. व. ४-१५३)। १पर्वत और नदी से वेष्टित क्षेत्र को खेट कहा १ तीन पुरुषों का गण और उसके प्रागे गच्छ होता जाता है। ४ जिस नगर के चारों ओर धूलि- है। २ एक प्राचार्य के नेतृत्व में रहने वाले साधनों मिट्टी से बना हुमा-कोट हो, उसे खेट कहते हैं। के समह को गच्छ कहते हैं। खटादिकथा-खेट नद्याद्रिवेष्टितं नदी-पर्वतरव- गड्डी-दहरदोचक्कापो धण्णादिहलुअदव्वभरुव्वरुद्धः प्रदेश: । कर्वट सर्वत्र पर्वतेन वेष्टितो देशः। हणक्खमाणो गड्डीनो णाम । (धव. पु. १४, १. कथात्र सम्बध्यते-कर्वटकथा: खेटकथास्तथा संवा- ३८)। हन-द्रोणमुखादिकथाश्च, तानि शोभनानि निविष्टानि धान्य प्रादि हलके द्रव्य के भार के होने में समर्थ सुदुर्गाणि वीरपुरुषाधिष्ठितानि सुयंत्रितानि परचक्रा- दो चाकों वाली गाड़ी को गड्डी कहा जाता है भेद्यानि बहुधन-धान्यार्थनिचितानि, सर्वथायोधानि, गरग-१. गणः स्थविरसन्ततिः । (स. सि., न तत्र प्रवेष्टुं शक्नोतीत्येवमादिवाक्प्रलापाः खेटा- २४; त. श्लो. ६-२४; भावप्रा. टी. ७८)ी दिकथा:। (मला. व.8-८६)
२. गणः स्थविरसन्ततिसंस्थितिः। (ता. भा. नदी और पर्वत से अवरुद्ध प्रदेश को खेट कहते हैं। २४)। ३. गण: स्थविरसन्ततिः । स्थविराणां ये खेट, संवाहन व द्रोणमुख प्रादि सुन्दर, उत्तम सन्ततिर्गण इत्युच्यते । (त. वा. ९, २४, ८)। दुर्ग से सहित, शर-वीर पुरुषों से अधिष्ठित, भली ४. गण इति एकवाचनाचार-क्रियास्थानां समुदाय:।
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