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जैन - लक्षणावली
को पूर्वार्थ बतलाया है । अतः उसे अकलंक की देन मानना चाहिए' । सन्मति टीकाकार अभयदेव ने विद्यानन्द का ही अनुसरण कर 'व्यवसाय' के स्थान में 'निर्णीति' पद रक्खा है' । वादिदेव सूरि ने श्राचार्य विद्यानन्द के ही शब्दों को दोहराया है और स्व-परव्यवसायी ज्ञान को प्रमाण प्रकट किया है। हेमचन्द्र ने पूर्वोक्त लक्षणों में काट-छांट करके 'सम्यक्', 'अर्थ' और 'निर्णय' ये तीन पद जोड़े। इससे स्पष्ट है कि हेमचन्द्र ने पूर्वाचार्य नियोजित लक्षणों में संशोधन कर स्व, अपूर्व और व्यवसायात्मक पद निकाल कर प्रमाण का लक्षण 'सम्यगर्थनिर्णयः प्रमाणम्' बतलाया है । इन लक्षणों को इतिहास की कसौटी पर कसना विद्वानों का कार्य है ।
ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने पर प्रमाण के इन लक्षणों में कहां, कब और किस परिस्थिति में उन उन विशेषणों की वृद्धि करनी पड़ी, इस सब का इतिवृत्त भी ज्ञात हो सकेगा और लक्षणावली में संकलित लक्षणों का प्रस्तावना में ऐतिहासिक दृष्टि से विचार किया जा सकेगा ।
लाक्षणिक शब्दों को प्रकारादि क्रम से दिया जायगा । यदि वे लाक्षणिक शब्द कालक्रम से दिये जा सकें तो पाठकों और विद्वानों के लिए अधिक सुविधा हो सकेगी। मैंने कहा कि आपका यह विचार श्रति उत्तम है । परन्तु यह सब कार्य अत्यन्त परिश्रमसाध्य है । इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए दिगम्बर श्वेताम्बर सभी ग्रन्थों के संग्रह करने की आवश्यकता होगी, जिसे पूरा करने का प्रयत्न होना चाहिए । जो ग्रन्थ उपलब्ध हो सकते हों उन्हें लायब्रेरी में मंगवा लीजिए । श्रवशिष्ट ग्रन्थ किन्हीं शास्त्रभण्डारों से मंगवा कर पूरा कर लेना चाहिए। कार्य होने पर उनके वे ग्रन्थ वापिस कर दिये जांय ।
साथ ही लक्षणावली की रूप-रेखा भी बननी चाहिए, जिससे लक्ष्य शब्दों का संग्रह उसी रूप में किया जा सके । और बाद में विद्वान उस रूप-रेखा के अनुसार ही लक्षणों का संग्रह करें । मुख्तार साहब ने कहा कि मैं लक्षणावली की रूप-रेखा बना दूंगा, जिससे कार्य योजनाबद्ध और जल्दी शुरु किया जा सके। मैं पहले विद्वानों को बुलाने के लिए आवश्यक विज्ञप्ति पत्र लिखे देता हूँ, उसे श्राप कापी करके सब जैन पत्रों को भिजवा दीजिये, जिससे नियुक्ति के लिए उन विद्वानों के पत्र ना सकें जो विद्वान इस कार्य में विशेष उत्साह रखते हैं और जिन्हें जैन साहित्य के अध्ययन की रुचि हो, अथवा जिन्होंने शब्दकोष बनाने का कार्य किया हो या उसका कुछ अनुभव हो । विज्ञप्ति जैन साप्ताहिक पत्रों में भेज दी गई। साथ ही मुख्तार साहब ने एक पत्र बाबू छोटेलाल जी कलकत्ता, डा० ए. एन. उपाध्ये कोल्हापुर और मुनि श्री पुण्यविजय जी को अहमदाबाद भेजा । जिनकी नकल उन्होंने अपने पास रख ली । इन पत्रों के उत्तर से मुख्तार साहब के उत्साह में वृद्धि हुई । इधर विद्वानों के भी पत्र आये। उनमें से पं. ताराचन्द दर्शनशास्त्री और पं. किशोरीलाल जी को नियुक्ति पत्र दे दिया । कार्य की रूप-रेखा के सम्बन्ध में एक पत्र मुख्तार साहब ने बाबू छोटेलाल जी को लिखा और लक्षणावली के कार्य के शुरु करने की सूचना दी । और उसके लिए आर्थिक सहयोग की प्रेरणा करते हुए लक्षणावली के महत्त्व पर भी प्रकाश Star | लक्षणावली का कार्य ८-९ महीना द्रुत गति से चला, किन्तु बाद में उसमें कुछ शैथिल्य ना गया । मालूम हुआ कि उसमें कुछ प्रार्थिक कठिनाई भी कारण है । बाबू छोटेलाल जी ने साहू शान्तिप्रसाद जी से कहकर लक्षणावली के लिए पन्द्रह हजार की सहायता की स्वीकृति प्राप्त की और साथ ही पांच हजार का चैक भी पत्र के साथ भिजवा दिया । उसके बाद लक्षणावली के लक्ष्य शब्दों पर लक्षणों के संग्रह का कार्य होने लगा । लक्षणावली में कुछ शब्द निरुक्त्यर्थ और स्वरूपात्मक शब्द भी संग्रहीत किये गये थे । अब दृष्टि में कुछ परिवर्तन हो जाने पर उन दोनों प्रकार के शब्दों को कम कर दिया ।
५. स्वापूर्वार्थ व्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम् । परीक्षा. १, १.
६. प्रमाणं स्वार्थनिर्णीतिस्वभावज्ञानम् । सन्मति. टी. पृ. ५१८.
७. स्व-परव्यवसायि ज्ञानं प्रमाणं । प्रमाणन. १,२. ८. सम्यगर्थनिर्णयः प्रमाणम् । प्रमाणमीमांसा १२.
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