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प्रस्तावना
5- ३२) में 'अभिहत' पाया जाता है। वही पिण्डनियुक्ति की मलयगिरि विरचित वृत्ति ( ६३ व ३२९ ) में क्रम से 'प्रभिहृत' और 'अभ्याहृत', चारित्रसार (पृ. ३३) में मूलाचार के अनुसार 'अभिघड' तथा अनगारधर्मामृत ( ५-६ व १६) में 'अभिहृत' उपलब्ध होता है ।
प्रकृत में यहाँ ये तीन उदाहरण दिए गए हैं । इसी प्रकार अनेक प्राकृत शब्दों में विकार व उनके विविध संस्कृत रूपान्तर हुए । उनमें से कुछ इस प्रकार हैं
प्राकृत भोवज्झ, अज्भोवरय
अघापवत्त, श्रहापवत्त
अवाय
अबाधा, प्रबाहा, आबाघा
उज्जीकरण, प्रावज्जिदकरण, श्रावज्जीकरण
श्रचिण्ण प्रणाचिण्ण
धाकम्म, ग्रहेकम्म, श्रायाहम्म, अत्तकम्म श्रासीविस
उद्दावण, श्रावण
उवसण्णासण्ण, श्रोसण्णासण्ण, उस्स ण्हसहिया
सणासणिया
वीर-सेवा-मन्दिर २१, दरियागंज दिल्ली
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संस्कृत रूपान्तर अध्यधि, अध्यवधि, अध्यवपूरक अथाप्रवृत्त, अधःप्रवृत्त, यथाप्रवृत्त अपाय, अवाय
अबाधा, आबाधा आयोजिकाकरण, प्रावर्जितकरण
प्राचिन्न श्रनाचिन्न श्राचीर्ण-अनाचीर्ण,
श्रादृत-श्रनादृत
आधाकर्म, अधः कर्म, आत्मघ्नकर्म, प्रात्मकर्म श्राशीविष, आशीरविष, आशीविष, आस्यविष अपद्रावण, उपद्रवण
अवसंज्ञासंज्ञा, अवसन्नासन्निका उत्संज्ञासंज्ञा,
उच्छ्लक्ष्णश्लक्ष्णिका
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बालचन्द्र शास्त्री
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