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युक्त।
वप्पिअ-वयंतरिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७११ वप्पिअ पुं [दे] खेत । नपुंसक-विशेष । राग- | वम्मा देखो वामा ।
| वम्मिअ वि [वमित] कवचित, संनाह-युक्त । वप्पिण पुन [दे] केदार, खेत । वि. उषित । वम्मिअ ) पुं [वल्मीक] कीट-विशेषकृत वप्पिण पुंन [दे]केदारवाला या तटवाला देश । | वम्मीअ ) मिट्टी का स्तूप । ठूह या भीटा, वप्पी देखो वप्पा = वप्र ।
दीमकों के रहने की बाँबी। वप्पीअ पुं [दे] चातक पक्षी ।
वम्मीइ पुं [वाल्मीकि रामायण-कर्ता मुनि । वप्पीडिअ न [दे] खेत ।
वम्मीसर पुंदे] कन्दर्प । वप्पीह पुं [दे] स्तूप आदि का कूट । वम्ह न [दे] वल्मीक। वप्पु देखो वउ = वपुस् ।
वम्ह पुं [ब्रह्मन्] पलाश का पेड़ । देखो वप्पे अ [दे] इन अर्थों का सूचक अव्यय- बंभ। उपहास-युक्त उल्लापन । विस्मय । आश्चर्य ।
वम्हल न [दे] केसर, किंजल्क । वप्फाउल देखो बप्फाउल ।
वम्हाण देखो बंभण। वफर न दे] शस्त्र-विशेष ।
वय सक [वच्] बोलना, कहना। देखो वब्भ पुं [वभ्र] पशु-विशेष ।
वयणिज्ज। वब्भ देखो वह = वह ।
वय अक [वद्] बोलना, कहना । वब्भय न [दे] कमल का मध्य भाग । वय अक [ब्रज्] जाना, गमन करना। वभिचरिअ वि [व्यभिचरित] व्यभिचार | वय पुं [वृक] पशु-विशेष, भेड़िया । दोष से दूषित ।
वय पुं [दे] गृध्र पक्षी। वभिचार देखो वहिचार।
वय पुं [वज] संस्कार करण । गमन । वभिचारि वि [व्यभिचारिन्] न्यायशास्त्रोक्त | वय पुं [व्रज] देश विशेष । गोकुल, दस हजार दोष-विशेष से दूषित, ऐकान्तिक । परस्त्री- गौओं का समूह । मार्ग। संस्कार-करण । लम्पट ।
गमन, गति । समह । वभियार देखो वहिचार।
वय पुं [व्यय] खर्च । हानि । देखो विअ = वम सक [वम्] उलटी करना ।
व्यय । वमग वि [वामक] उलटी करनेवाला। वय न [वचस्] वचन । °समिअ वि वमाल सक [पुञ्जय] इकट्ठा करना ।
- [°समित] वचन का संयमी। विस्तारना।
वय पुं [वद] कथन, उक्ति । वमाल पुंदे] कलकल, कोलाहल । वय पुंन [व्रत धार्मिक प्रतिज्ञा । °मंत वि वमाल पुं [पुञ्ज] राशि, ढंग, ढेर।। [°वत्] व्रती । वमालण न [पुञ्जन] इकट्ठा करना। | वय पुन [वयस्] उन । पक्षी। 'त्थ वि विस्तार । वि. इकट्ठा करनेवाला । विस्तारने-] [स्थ] तरुण । 'परिणाम पुं. वृद्धता । वाला।
वय पुं [पच पचन, पाक । वम्म पुंन [वर्मन् कवच ।
°वय देखो पय = पद। धम्म देखो वम का कृ.।
'वय देखो पय = पयस् । वम्मथ । पुं [मन्मथ] कामदेव ।
वयंग न [दे] फल-विशेष । वम्मह
वयंतरिअ वि [वृत्यन्तरित] बाड़ से तिरो
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