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________________ बजय-वंसि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ७०१ का सम्बन्ध । °वग्गह, °ोगह पुं[विग्रह] वंदण न [वन्दन] प्रणाम । स्तवन । कलस चक्षु और मन को छोड़ कर अन्य इन्द्रियों से पुं [°कलश] । °घड पुं [°घट]मांगलिकघट । होनेवाला ज्ञान-विशेष । ___°माला, 'मालिआ स्त्री. घर के द्वार पर वंजय वि [व्यञ्जक] व्यक्त करनेवाला। मंगल के लिए जाती पत्र-माला । °वडिआ, वंजर पुं [मार्जार] बिल्ला । वत्तिआ स्त्री [°प्रत्यय] वन्दन-हेतु । वंजर न [दे] नीवी, कटी-वस्त्र । वंदणिया स्त्री [दे] मोरी, नाला । वंजुल पुं [वजुल] अशोक वृक्ष । वेतस वृक्ष । वंदर देखो वंद = वृन्द । पक्षि-विशेष । वंदाप (अशो) देखो वंदाव। वंजुलि वि [वजुलिन्] वेतस वृक्ष वाला। वंदारय पुं [वृन्दारक] देव । वि. मनोहर । स्त्री. °णी। मुख्य । वंझ वि [वन्ध्य] शून्य, वजित । वंदारु वि [वन्दारु] वन्दन करनेवाला । वंझा स्त्री [वन्ध्या] अपुत्रवती स्त्री। वंदाव सक [वन्दय् वन्दन करवाना । वंट न [वृन्त] फल या पत्तों का बन्धन ।। वंदावणग न [वन्दन] वन्दन । वंटग पुं [वण्टक बाँट, विभाग। वंदिम वंद = वन्द् का कृ.। वंठ पुंदे] अविवाहित । खण्ड, टुकड़ा । गण्ड । वंदुरा स्त्री [मन्दुरा] वाजिशाला, घुड़साल । भृत्य । वि. निःस्नेह । धूर्त । वंद्र न [वन्द्र] समूह, यूथ । वंठ वि [वण्ठ] खर्व, वामन, बीना । वंध पुं [वन्ध्य] एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव । वंठण (अप) न [वण्टन] बाँटना, विभाजन । वंफ सक [काङ्क्ष] चाहना । वंडइअ वि [दे] पीडित । वंफ अक [वल्] लौटना । °वंडु देखो पंडु । वंफि वि [ वलिन् ] लौटनेवाला । नीचे वंडुअ न [दे] राज्य । गिरनेवाला। वंडुर देखो पंडुर। वंफिअ वि [दे] भुक्त। वंढ पुं [दे] बन्ध । वंस पुं [दे] कलंक, दाग। वंत वि [वान्त] पतित, गिरा हुआ । | वंस पुं [वंश] बाँस । वाद्य -विशेष । कुल । वंत पुं [वान्त] जिसका वमन किया गया हो । सन्तान । पृष्ठावयव । वर्ग । इक्षु । सालवृक्ष । पुंन. वमन । °इरि पुं. [°गिरि] पर्वत-विशेष । करिल्ल, वंतर पुं [व्यन्तर] एक देव-जाति । गरिल्ल पुंन [°करील] वंशांकुर । °जाली, वंतरिणी J स्त्री [व्यन्तरी] व्यन्तर-जातीय याली स्त्री. बाँसों की गहन घटा । रोअणा देवी। स्त्री [°रोचना] वंशलोचन । वंता वम का संकृ. । वंसकवेल्लुय पुंन [दे. वंशकवेल्लुक] छत के °वंति देखो पन्ति । नीचे दोनों तरफ तिरछा रखा जाता बाँस । °वंथ देखो पन्थ । वंसग देखो वंसय । वंद सक [वन्द्] प्रणाम करना । स्तवन करना। वंसप्फाल वि [दे] व्यक्त। ऋजु, सरल । वंद न [वृन्द] समूह। वंसथ वि [व्यंसक]धूर्त । पुं. दुष्ट हेतु-विशेष । वंदअ । वि [वन्दक] वन्दन करनेवाला। वंसा स्त्री [वंशा] द्वितीय नरक-पृथिवी । । वंसि देखो वंसी = वंश । वंदग। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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