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________________ भाव-भासिल्ल संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ६२७ चित्त-विकार, मानस - विकृति । जन्म । पर्याय । भाविर वि [भाविन्, भवितृ ] अवश्यंभावी । धर्म, वस्तु का परिणाम । धात्वर्थ-युक्त पदार्थ | भाविल्ल वि [भाववत् ] भाव-युक्त । भाविस्स देखो भविस्स । विवक्षित क्रिया का अनुभव करनेवाली वस्तु, पारमार्थिक पदार्थ । परमार्थ । स्वभाव, स्वरूप | सत्ता । ज्ञान, उपयोग । चेष्टा । क्रिया, धात्वर्थ । विधि, कर्तव्योपदेश । मन का परिणाम | अन्तरंग बहुमान, प्रेम । भावना, चिन्तन । नाटक की भाषा में विविध पदार्थों का चिन्तक पण्डित | आत्मा । अवस्था । केउ पुं [° केतु] ज्योतिष्क देव- विशेष, महाग्रहविशेष | "त्थ पुं [°ार्थ ] तात्पर्य, रहस्य | 'न्न, 'न्नुय वि ['ज्ञ ] अभिप्राय को जाननेवाला | पाण पुं [प्राण] ज्ञान आदि आत्मा का अन्तरंग गुण | संजय पुं ['संयत ] । 'साहु [साधु ] सच्चा साधु | सव पुं [व] वह आत्म-परिणाम, जिससे कर्म का आगमन हो । भाव पुं. महान् वादी, समर्थ विद्वान् । भावअवि [भावक ] देखो भावग । भावइया स्त्री [दे] धार्मिक- गृहिणी । भावग वि [भावक] वासक पदार्थ, गुणाधायक वस्तु होनेवाला | देखो भावअ । भावड पुं [भावक ] एक जैन गृहस्थ । भावण पुं [ भावन] एक वणिक् । नीचे देखो । भावणा स्त्री [ भावना] वासना, गुणाधान, संस्कार करण | अनुप्रेक्षा, चिन्तन । पर्यालोचन । भावि वि [ भाविन्] भविष्य में होनेवाला । भावि वि [दे] गृहीत, उपात्त । भाविअ न [भाविक ] एक देव- विमान | भाविअवि [भावित ] वासित । भाव युक्त । निर्दोष । पवि [Tत्मन्] वासित अन्त:करणवाला । पुं. अहोरात्र का तेरहवाँ मुहूर्त | स्त्री [त्मा] भगवान् धर्मनाथ की मुख्य शिष्या । भाविदिअ न [भावेन्द्रिय] उपयोग, ज्ञान । Jain Education International भावुक वि [ दे] वयस्य । भावुग वि [ भावुक ] अन्य के संसर्ग की भावुय जिस पर असर हो वह वस्तु । भास सक [भाष्] कहना, बोलना । भास अक [भास्] शोभना । लगना, मालूम होना । प्रकाशना, चमकना । भास सक [ भीषय् ] डराना । भास पुं पक्षि-विशेष । दीप्ति । भास पुं [भस्मन्] ग्रह - विशेष, विशेष | भस्म । रासि पुं विशेष | भास न [ भाष्य ] पद्य - बद्ध टीका । भास देखो भासा । पणु वि ['ज्ञ], 'व वि [व] भाषा के गुण-दोष का जानकार | भासग वि [ भाषक ] प्रकाशक, वक्ता, प्रति पादक । भासण न [भाषण ] कथन, प्रतिपादन | भासय देखो भासग । ज्योतिष्क देव[राशि ] ग्रह भासय वि[भासक ] प्रकाशक । भासल वि [दे] दीप्त, प्रज्वलित । भासा स्त्री [भाषा ] बोली | वाक्य, वाणी, वचन | जड्डु वि ['जड ] मूक । पज्जत्ति स्त्री ['पर्याप्ति ] पुद्गलों को भाषा के रूप में परिणत करने की शक्ति | विजय पुं [ विचय] भाषा का निर्णय | दृष्टिवाद, बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ । 'विजय पुं. दृष्टिवाद | समिअवि [ समित] वाणी का संयमी । समिइ स्त्री [ समिति] वाणी का संयम | देखो भास । भासा स्त्री [भास] प्रकाश, आलोक, दीप्ति | भासिअ वि [भाषिन्, 'क] वक्ता । भासि वि [] दत्त, अर्पित । भासिल्ल वि [ भाषावत् ] भाषा-युक्त, वाणी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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