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फंस-फरिहा
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष फंस अक [विसम् + वद्] असत्य प्रमाणित छोटा छिद्र, विवर । अवधिज्ञान का निर्गमहोना, प्रमाण-विरुद्ध होना ।
स्थान । समुदाय । वर्गणा-समदाय । °वइ पुं फंस सक [ स्पृश् ] छूना, स्पर्श करना ।
[°पति गण के अवान्तर विभाग का नायक । फंसण वि [पांसन] अपसद, अधम ।
फण पुं साँप की फणा। फंपण वि [दे] युक्त, संयत । मलिन । फणग पुं[दे. फनक] कंघा । फंसुल वि [दे] मुक्त, त्यक्त ।
फणज्जय पुं [दे] वनस्पति-विशेष । फंसुली स्त्री [दे] नवमालिका, पुष्प वृक्ष । फणस पुं [पनस] कटहर का पेड़ । फक्किया स्त्री [फक्किका] ग्रन्थ का विषम | फणा स्त्री फन । स्थान, कठिन स्थान ।
| फणि पुं फणिन्] साँप, नाग । दो कला या फग्गु वि [फल्गु] असार, तुच्छ । स्त्री. भगवान् एक गुरु अक्षर की संज्ञा । पिंगलाचार्य । अजितनाथ की प्रथम शिष्या। °मित्त पुं
चिंध पुं [[चिह्न] भगवान् पार्श्वनाथ । °पहु [°मित्र] जैन मुनि । रक्खिय पुं [रक्षित]
पुं [प्रभु] धरणेन्द्र। शेषनाग । 'राय पुं जैन मुनि । °सिरी स्त्री [श्री] इस अव
[°राज]शेषनाग । पिंगल-कर्ता । °लआ स्त्री सर्पिणी के पंचम आरे में होनेवाली अन्तिम |
[°लता] नागलता। वइ पुं [°पति] जैन साध्वी।
धरणेन्द्र । नाग-राज। पिंगलकार । 'सेहर फग्गु पुं [दे. फल्गु] वसन्त का उत्सव ।
["शेखर] प्राकृत-पिंगल का कर्ता । फग्गुण पुं [फाल्गुन] फागुन महिना । मध्यम
फणिंद पुं [फणीन्द्र शेषनाग । पिंगलकार । पण्डुपुत्र अर्जुन ।
फणिल्ल सक [ चोरय् ] चोरी करना । फग्गुणी स्त्री [फाल्गुनी] फागुन मास की
फणिह पुं [दे. फणिह] कंघा । पूर्णिमा या अमावस्या। एक गृहपति की स्त्री।
फणीसर पुं [फणीश्वर] देखो फणि-वइ । फग्गुणी स्त्री [फल्गुनी] नक्षत्र-विशेष ।
फणुज्जय देखो फणज्जुय । फट्ट अक [स्फट् ] फटना, टूटना ।
फद्ध पुं [स्पर्ध] स्पर्धा । फड सक [स्फट् ] खोदना । शोधना ।
फर । [दे. फल, °क] काष्ठ आदि का फड न [दे] साँप का सर्व शरीर ।
फरअ ) तख्ता । ढाल । देखो फल । फड पुन [दे. फट] साँप की फणा ।
फरअ पुन [दे. स्फरक] अस्त्र-विशेष । फडही [दे] देखो फलही।
फरक्किद वि [दे] फरका हुआ, हिला हुआ, फडा स्त्रो [फटा] सांप की फन । °ल वि | कम्पित । [°वत्] फनवाला।
फरस देखो फरिस = स्पर्श । फडिअ ) देखो फलिह = स्फटिक । फरसु पुं [परशु] फरसा । 'राम पुं. जमदग्नि फडिग
ऋषि का पुत्र । फडिल्ल देखो फडा-ल ।
फरहर अक [फरफराय] फरफर आवाज फडिह पुं [परिघ] अर्गला । कुठार ।
करना। फडिहा देखो फलिहा = परिखा ।
फरित देखो फलिह = स्फटिक । फड्ड । पुन [दे. स्पर्ध] अंश, भाग, हिस्सा । | फरिस सक [स्पृश्] छ्ना । फड्डु ) सम्पूर्ण गण के अधिष्ठाता के वशवर्ती | फरिसण न [स्पर्शन] त्वगिन्द्रिय । गण का एक लघुतर हिस्सा । द्वार आदि का फरिहा देखो फलिहा = परिखा।
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