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पीडयर-पुंछण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
५८५ पीडयर वि [पीडकर] पीडाकारक । पीलावय वि [पीडक] पेरनेवाला। पुं. तेली, पीडरइ स्त्री [दे] चोर की स्त्री ।
यन्त्र से तेल निकालनेवाला । पीडा स्त्री. पीड़न, हैरानी, वेदना । °कर वि. पीलिम वि [पीडावत्] दाबवाला, दाबने से पीड़ा-कारक।
बना हुआ (वस्त्र आदि की आकृति)। पीढ पुंन [पीठ] आसन, पीढ़ा। व्रती का पीलु पुं. पीलु का पेड़ । हाथी । न. दूध । आसन । तल । पुं. एक जैन महर्षि । °बंध पुं पीलुअ ' [दे. पीलुक] शावक, बच्चा। ['बन्ध] ग्रन्थ की अवतरणिका, भूमिका। पीलुट्ठ वि [दे. प्लुष्ट] देखो पिलुट्ठ।। 'मद, °मइअ पुंस्त्री [°मर्दक] काम-पुरुषार्थ पीवर वि. उपचित, पुष्ट । गम्भा स्त्री में सहायक नायक का समीपवर्ती पुरुष, राजा [°गर्भा] भविष्य में प्रसव करनेवाली स्त्री। आदि का वयस्य-विशेष । 'सप्पि वि पीवल देखो पीअ = पीत । [°सपिन्] पंगु-विशेष ।
पीस सक [पिष्] पीसना। पीढ न [दे] ईख पेरने का यन्त्र । समूह, यथ । पीसण न [पेषण] दलना । वि. पीसनेवाला। पीठ ।
पीसय वि [पेषक पीसनेवाला । पीढरखंड न [पीठरखण्ड] नर्मदा तोर पर पीह सक [ स्पृह , प्र + ईह ] चाहना । स्थित एक प्राचीन जैन तीर्थ ।।
पीहग पुं [पीठक] नवजात शिशु को पिलाई पीढाणिय न [पीठानीक] अश्व-सेना। जाती एक वस्तु । पीढिआ स्त्री [पीठिका] आसन-विशेष मञ्च ।। पु स्त्री [पुर्] शरीर । देखो पेढिया।
पुअ न [प्लुत] तिर्यग् गति । झाँपना, झम्पपीढी स्त्री दे. पीठिका] काष्ठ-विशेष, घर
गति । °जुद्ध न ["युद्ध] अधम युद्ध का एक का एक आधार-काष्ठ ।
प्रकार । पीण सक [पीनय] पुष्ट करना।
पुअंड पुं [दे] तरुण । पोण सक [प्रीणय] खुश करना ।
पुआइ वि. [दे] युवा । उन्मत्त । पुं. पिशाच । पीण वि [दे] चतुरस्र, चतुष्कोण ।
पुआइणी वि. [दे] पिशाच-गृहीत स्त्री, उन्मत्त पीण वि [पीन] पुष्ट, मांसल, उपचित ।
स्त्री । कुलटा । पीणाइय वि [दे. पैनायिक] गर्व से निर्वृत्त । पुआव सक [प्लावय] ले जाना । पीणाया स्त्री [दे. पीनाया] अहंकार । पुं० पुं पुंस्| पुरुष, मर्द । पीणिअ वि [प्रीणित] तोषित । उपचित पुख पुं [पुङ्ख] बाण का अग्र भाग । न. देवपरिवृद्ध । पुं. ज्योतिष-प्रसिद्ध योग-विशेष जो
विमान-विशेष । पहले सूर्य या चन्द्र का किसी ग्रह या नक्षत्र
| पुखणग न [दे प्रोडणक] चुमाना, विवाह के साथ होकर बाद में दूसरे सूर्य आदि के
__की एक रीति । साथ उपचय को प्राप्त ।
पुंगल पुं[A] श्रेष्ठ । पीणिम पुंस्त्री [पीनता] पुष्टता, मांसलता।
पुगव वि [पुङ्गव] उत्तम । पीरिपीरिया स्त्री [दे] वाद्य-विशेष । पुंछ सक [प्र+उञ्छ्] पोंछना । पील सक [पीडय] पीलना, पेरना, दबाना । | पुंछ पुन [पुच्छ] पूछ । पीड़ा करना, हैरान करना ।
पुंछण न [प्रोञ्छन] मार्जन । रजोहरण, जैन पीला देखो पीडा।
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