SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अणाइ-अणायार संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष हो वह । अणाढिय वि [अनादृत] तिरस्कृत । पुं. जम्बूअणाइ वि [अनादि] आदि-रहित । णिहण, द्वीप का अधिष्ठायक एक देव । स्त्री. जम्बूद्वीप वि [निधन] शाश्वत । °मंत, °वंत वि के अधिष्ठायक देव की राजधानी । [मत्] अनादि काल से प्रवृत्त । अणाणुगामिय वि [अनानुगामिक] पीछे अणाइज वि [अनादेय] अनुपादेय । नाम-कर्म नहीं जानेवाला । न. अवधि-ज्ञान का एक का एक भेद, जिसके उदय से जीव का वचन भेद। युक्त होने पर भी ग्राह्य नहीं समझा जाता अणादि देखो अणाइ। अणादिय । देखो अणाइय। अणादीय । अणाइय वि [अनादिक] आदि रहित ।। अणाइय वि [अज्ञातिक] स्वजन-रहित, अणादेज देखो अणाइज । अणाभिग्गह न [अनाभिग्रह] मिथ्यात्व का अकेला । एक भेद। अणाइय वि [अणातीत] पापिष्ठ । अणाभोग पुं [अनाभोग] अनुपयोग । न, अणाइय ऋणातीत] संसार । मिथ्यात्वविशेष । अणाइय वि [अनादृत] जिसका आदर न किया अणामिय वि [अनामिक] नाम-रहित । पुं. हो वह । अणाइल वि [अनाविल ] अकलुषित, असाध्य रोग । स्त्री. कनिष्ठांगुली के ऊपर की अंगुली। निर्मल । अणाईअ देखो अणाइय । अणाय पुं [अनाक] मर्त्यलोक, मनुष्य-लोक । अणाउ पुं [अनायुष्क] जिन-देव । मुक्तात्मा, अणाय पुं [अनात्मन्] आत्मा से परे । सिद्ध । अणायग वि [अज्ञातक] स्वजन-रहित, अकेला । अणाउल वि [अनाकुल] धीर । अणायग वि [अज्ञायक] अजान, निर्बोध ।। अणाउत्त वि [अनायुक्त]बेख्याल, असावधान । अणाएज देखो अणाइज्ज । अणायतण । न [अनायतन] वेश्या आदि अणागय पुं [अनागत] भविष्य काल । वि. अणाययण , नीच लोगों का घर । जहाँ भविष्य में होनेवाला । द्धा स्त्री [द्धा] सज्जन पुरुषों का संसर्ग न होता हो वह भविष्य काल । स्थान । पतित साधुओं का स्थान । पशु, अणागलिय वि [अनर्गलित] नहीं रोका | नपुंसक वगैरह के संसर्गवाला स्थान । हुआ। अणायत्त वि [अनायत्त] पराधीन । अणागलिय वि [अनाकलित]नहीं जाना हुआ, अणायर पुं [अनादर] अ-बहुमान, अपमान । अलक्षित । अपरिमित । अणायरण न [अनाचरण] अनाचार, खराब अणागार वि [अनाकार] आकार-रहित । आचरण । विशेषता-रहित । न. दर्शन, सामान्य ज्ञान । अणायरिय देखो अणज्ज = अनार्य । अणाजीव वि [अनाजीव] आजीविका-रहित । अणायार देखो अणागार = अनाकार । आजीविका की इच्छा नहीं रखने वाला। अणायार पुं [अनाचार] शास्त्र-निषिद्ध आच. निःस्पृह, निरीह । रण । गृहीत नियमों का जान-बूझ कर उल्लंअणाड पुंदे] जार, उपपति । धन करना, व्रत-भङ्ग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy