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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष जिट्टिणी-जिणुत्तम जेठानी।
मण्डल, दुन्दुभि नाद, छत्र । °पालिय पुं जिट्रिणी स्त्री [ज्यैष्ठी] जेठ मास की अमावस ।
[पालित] चम्पा नगरी का निवासी एक जिण सक [जि] जीतना, वश करना ।
श्रेष्ठि-पुत्र । °बिंब न [बिम्ब] जिनदेव की
प्रतिमा । भड पुं[°भट] एक जैन आचार्य । जिण पुं [जिन] राग आदि अन्तरंग शत्रुओं को
भद्द पुं[भद्र] जैन आचार्य और ग्रन्थजीतनेवाला, अर्हन् देव । बुद्ध भगवान् । केवल- |
कार । °भवण न [°भवन] अर्हन् मन्दिर । ज्ञानी, सर्वज्ञ । चौदह पूर्व ग्रन्थों का जान- |
°मय न [°मत] जैन दर्शन । °माया स्त्री कार । जिनकल्पी मुनि । अवधि-ज्ञान आदि |
[°मात] जिनदेव की जननी । °मुद्दा स्त्री अतीन्द्रिय ज्ञानवाला। वि. जीतनेवाला ।
[°मुद्रा] जिनदेव जिस तरह से कायोत्सर्ग में इंद पुं [°इन्द्र] अर्हन् देव । 'कप्प पुं
रहते हैं उस तरह शरीर का विन्यास, आसन[°कल्प] एक प्रकार के जैन-मुनियों का
विशेष । 'यंद देखो °चंद । °रक्खिय पुं आचार, चारित्र-विशेष । कप्पिय पुं
[रक्षित] एक सार्थवाह-पुत्र । वइ पुं [कल्पिक] एक प्रकार का जैन मुनि ।
[°पति] जिन-देव । °वई स्त्री [°वाच्] °किरिया स्त्री [°क्रिया] जिनदेव का बत
जिन-देव की वाणी। वयण न [°वचन] लाया हुआ धर्मानुष्ठान । °घर न [गृह]
जिन देव की वाणी। °वयण न [°वदन] जिन-मन्दिर । °चंद पुं [°चन्द्र] जिनदेव,
जिनदेव का मुख । °वर पुं. अर्हन देव । अर्हन् देव । स्वनाम-ख्यात जैन आचार्य
"वरिंद पुं [°वरेन्द्र ] अर्हन् देव । वल्लह विशेष । °जत्ता स्त्री ["यात्रा] अर्हन देव की
पुं ['वल्लभ] एक जैन आचार्य और प्रसिद्ध पूजा के उपलक्ष्य में किया जाता उत्सव
स्तोत्र-कार । "वसह पुं [वृषभ] अर्हन् विशेष, रथ-यात्रा । °णाम न [नामन]
देव । °सकहा स्त्री [°सक्थि] जिन-देव की कर्म-विशेष जिसके प्रभाव से जीव तीर्थकर
अस्थि । 'सासण न [°शासन] जैन दर्शन । होता है। दत्त पुं. जैनाचार्य-विशेष । एक
°हंस पुं. एक जैन आचार्य । हर देखो 'घर। जैन श्रेष्ठी। °दव्व न [°द्रव्य] जिन-मन्दिर
हरिस पुं [°हर्ष] एक जैन मुनि । °ाययण सम्बन्धी धनादि वस्तु । °दास पुं एक जैन
न [°ायतन] जिन-देव का मन्दिर । उपासक । एक जैन मुनि और ग्रन्थकार, निशीथ-सूत्र का चूर्णिकार । °देव पुं. अर्हन्
जिणंद देखो जिणिद। देव । जैनाचार्य । एक जैन उपासक । धम्म
जिणकप्पि पुं [जिनकल्पिन्] जैन मुनि का पुं [°धमं] जिनदेव उपदिष्ट जैन धर्म । 'नाह
एक भेद । पुं[°नाथ] अर्हन् देव । °पडिमा स्त्री
जिणण न [जयन] जीत । [प्रतिमा] अर्हन् देव की मूत्ति । °पवयण
जिणपह पुं [जिनप्रभ] एक जैन आचार्य । न [प्रवचन] जैन आगम । 'पसत्थ वि जिणिंद पुं [जिनेन्द्र] अर्हन् देव । “गिह न [ प्रशस्त ] तीर्थंकर-भाषित। °पहु [गृह] जिनमन्दिर । °चंद पुं [चन्द्र] पं [प्रभु] अर्हन देव । °पाडिहेर न जिन-देव । [प्रातिहार्य] जिन-देव की अर्हता-सूचक जिणिय वि [जित] पराभूत, वशीकृत । देव-कृत अशोक वृक्ष आदि आठ बाह्य जिणिसर देखो जिणेसर । विभूतियाँ, वे ये है-अशोक वृक्ष, सुर-कृत | जिणिस्सर देखो जिणेसर । पुष्प-वृष्टि, दिव्यध्वनि, चामर, सिंहासन, भा- | जिणुत्तम पुं [जिनोत्तम] जिन-देव ।
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