________________
३५० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
जाय-जाव संस्कार-विशेष । °तेय पुं [तेजस] अग्नि । , हरग देखो °घरग। °निया स्त्री [°निद्रुता] मृतवत्सा स्त्री। जाल पुं [ज्वाल] ज्वाला, आग की लपट । °मूअ वि [°मूक] जन्म से मूक । °रूव | जालंतर न [जालान्तर] सच्छिद्र गवाक्ष का न [°रूप] सुवर्ण। चाँदी । सुवर्णनिर्मित । मध्यभाग। °वेय पुं [°वेदस्] वह्नि ।
जालंधर पुं [जालन्धर] पंजाब का एक शहर । जाय वि [यात] गत । प्राप्त । न. गमन, न. गोत्र-विशेष । गति ।
जालंधरायण न [जालन्धरायण] गोत्रजाय पुं [जात] गीतार्थ, विद्वान् जैन मुनि। । विशेष । जायग वि [याचक] माँगनेवाला। पुं. जालग देखो जाल = जाल । भिक्षुक ।
जालग पुं [जालक] द्वीन्द्रिय जीव की एक जायग वि [याजक] यज्ञ करानेवाला । जाति, मकड़ी। जायणया स्त्री [याचना] याचना, प्रार्थना, | जालघडिआ स्त्री [दे] चन्द्रशाला, अट्टामाँगना।
लिका। जायणी स्त्री [याचनी] प्रार्थना की भाषा।
जालय देखो जाल = जाल । जायव पुंस्त्री [यादव] यदुवंशीय । जालवणी स्त्री [दे] संवाद, सम्हाल, खबर । जाया स्त्री [यात्रा] निर्वाह, वृत्ति । °माय वि | जाला स्त्री [ज्वाला] अग्नि की शिखा । [°मात्र] जितने से निर्वाह हो सके उतना। | नवम चक्रवर्ती की माता । भगवान् चन्द्रप्रभ जाया स्त्री. स्त्री, औरत ।
की शासनदेवी। जाया देखो जत्ता।
जाला अ [यदा] जिस समय, जिस काल में । जाया स्त्री [जाता] चमरेन्द्र आदि इन्द्रों की | जालाउ पुं [जालायुष्] द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष बाह्य परिषत् ।
मकड़ी। जायाइ पुं [यायाजिन्] यज्ञ करनेवाला ।। जालाव सक [ज्वालय] जलाना, दाह देना । जार पुं. उपपति । मणि का लक्षण-विशेष । जालि पुं. राजा श्रेणिक का एक पुत्र । श्रीकृष्ण जारिच्छ वि [यादृक्ष] ऊपर देखो।
का एक पुत्र । जारिस वि [यादृश] जैसा ।
जालिय पुं [जालिक] जाल-जीवि, वागुरिक । जारेकण्ण न [जारेकृष्ण] वासिष्ठ गोत्र की | जालिय वि [ज्वालित] जलाया हुआ । एक शाखा ।
जालिया स्त्री [जालिका] कञ्चक । वृन्त । जाल सक [ज्वालय्] जलाना, दग्ध करना। | जालुग्गाल पुं [जालोद्गाल] मछली पकड़ने जाल न. संघात । माला का समूह । कारीगरी- ___ का साधन-विशेष । वाले छिद्रों से युक्त गृहांश, गवाक्ष-विशेष ।
जाव देखो जावइअ। मछली वगैरह पकड़ने का जाल, पाश-विशेष । जाव सक [यापय] गमन करना, गुजारना । पैर का आभूषण-विशेष, कड़ा। °कडग पुं बरतना । शरीर का प्रतिपालन करना । [°कटक] सच्छिद्र गवाक्षों का समूह । | जाव अ [यावत्] इन अर्थों का सूचक अव्ययसच्छिद्र गवाक्ष-समूह से अलंकृत प्रदेश । | परिमाण, मर्यादा। अवधारण, निश्चय । °घरग न [गृहक] सच्छिद्र गवाक्षवाला ज्जीव स्त्रीन. जीवनपर्यन्त । जीविय वि मकान । °पंजर न [पञ्जर] गवाक्ष ।। [ज्जीविक] यावज्जीव-सम्बन्धी। देखो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |