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अगंडिगेह-अगुरुलहु
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
टुकड़ा।
1 अगरु देखो अगर। अगंडिगेह विदे] यौवनोन्मत्त ।
अगरुलहु वि [अगुरु लघु] जो भारी भी न हो अगंडूयग वि [अकण्डूयक] नहीं खुजलाने- और हलका भी न हो वह । °णाम न वाला।
[°नामन्] कर्म-विशेष, जिससे जीवों का अगंथ वि [अग्रन्थ] धनरहित । पुस्त्री. शरीर न भारी न हलका होता है । निग्रन्थ, जैन साधु ।
अगलदत्त पु [अगडदत्त] एक रथिक-पुत्र । अगंधण पु[अगन्धन] इस नाम की सर्पो की अगलय देखो अगर। एक जाति ।
अगहण पु [दे] कापालिक, एक ऐसे संप्रदाय अगड पु[दे. अवट] कूप, इनारा । 'तड के लोग, जो माथे की खोपड़ी में ही खानेत्रि [तट] इनारा का किनारा। दत्त पं पीने का काम करते हैं । इस नाम का एक राजकुमार । ददर | अगहिल्ल वि [अग्रहिल] जो भूतादि से
दर्दर कंए का मेढक अल्पज्ञ व मानण्य | आविष्ट न हो, अपागल । प्राय पु [राज] जो अपना घर छोड़ बाहर न गया हो। एक राजा, जो वास्तव में पागल न होने अगड [अवट] कप के पास पशुओं के जल पर भो पागल-प्रजा के आक्रमण से बनावटी पीने के लिए जो गर्त बनाया जाता है वह। पागल बना था । अगड वि [अकृत नहीं किया हआ। अगाढ वि [अगाध | अथाह, बहुत गहरा । अगणि पु [अग्नि] आग। 'काय अग्नि अगामिय वि [अग्रामिक] ग्रामरहित ।
के जीव । °मुह [°मुख देव, देवता। अगार पु [अकार] 'अ' अक्षर ।। अगणिअ वि [अगणित] अवगणित, अपमा
- अगार न गृह । पु. गृहस्थ, गृही, संसारी । नित ।
__त्थ वि [°स्थ] गृही । °धम्म पु [°धर्म] अगस्थि । पु[अगस्ति, °क] इस नाम का !
गृहि-धर्म, श्रावक-धर्म । अगस्थिय । एक ऋषि । वृक्ष-विशेष । एक !
अगारग वि [अकारक] अकर्ता । तारा, अठासी महाग्रहों में ५४ वा महाग्रह। अगारि वि [अगारिन्] गृहस्थ, गृही। अगन्न वि [अकर्ण्य] नहीं सुनने लायक ।। अगारी स्त्री [अगारिणी] गृहस्थ स्त्री। अगम पु वृक्ष । वि. स्थावर । न. आकाश । । अगाल देखो अयाल । अगमिय वि [अगमिक] वह शास्त्र, जिसमें अगाह वि [अगाध] गहरा, गंभीर । एक सदश पाठ न हो, या जिसमें गाथा वगैरह अगिणि देखो अग्गि। पद्य हो।
। अगिला स्त्री [अग्लानि] अखिन्नता, अगम्म वि [अगम्य] जाने के अयोग्य । स्त्री. । उत्साह । भोगने के अयोग्य, भगिनी, पर-स्त्री आदि। अगिला स्त्री [दे] अवज्ञा, तिरस्कार ।
गामि वि [°गामिन] पर-स्त्री को भोगने- अगुण देखो अउण । वाला, पारदारिक ।
अगुण वि [अगुण] गुणरहित, निर्गुण । पुं. दोष, अगय न [अगद] औषध ।
दूषण । अगय पु [दे] दानव ।
अगुणासी देखो एगूणासी। अगर पुन [अगरु] सुगन्धि काष्ठ-विशेष । | अगुरु वि छोटा । पुन. सुगन्धि काष्ठविशेष । अगरल वि [अगरल] सुविभक्त, स्पष्ट । । अगुरुलहु देखो अगुरुलहु ।
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