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३१२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
चक्कावाय-चच्चा राजा, एक लंकापति । बद्धन. शकट । का नियम, नयनेन्द्रिय का संयम । °दय वि. चक्कावाय पुंन. देखो चक्कवाय ।
ज्ञानदाता । पडिलेहा स्त्री[प्रतिलेखा]आँख चक्काह पु [चक्राभ] सोलहवें जिन-देव का से देखना। परित्राण न [°परिज्ञान] रूपप्रथम शिष्य।
विषयक ज्ञान । °पह पुं [पथ] नेत्र-मार्ग, चक्काहिव पु [चक्राधिप] चक्रवर्ती राजा,
नयनगोचर । °फास पु [स्पर्श] दर्शन, सम्राट ।
अवलोकन । °भीय वि [°भीत] अवलोकन चक्काहिवइ पु [चक्राधिपति] ऊपर देखो।
मात्र से ही डरा हुआ । °म, °मंत वि [°मत्] चक्कि वि [चक्रिन्, चक्रिक] चक्रवाला,
लोचन युक्त, आँखवाला । पु. एक कुलकर चक्किय ) चक्र-विशिष्ट । पु. चक्रवर्ती राजा, पुरुष का नाम । °लोल वि.देखने का शौकीन, सम्राट् । तेली। कुम्भार । °साला स्त्री जिसकी नयनेन्द्रिय संयत न हो वह । लोलुय शाली] तेल बेचने की दूकान ।
वि [°लोलुप] वही पूर्वोक्त अर्थ । 'ल्लोयणचक्किय वि [चकित] भयभीत ।
लेस्स वि[°लोकनलेश्य] सुरूप । वित्तिहय चक्किय पु [चाक्रिक] चक्र से लड़नेवाला
वि[°वृत्तिहत] दृष्टि से अपरिचित । स्सव योद्धा । भिक्षुक की एक जाति ।
[°श्रवस] साँप । चक्किया क्रि [शक्नुयात्] कर सके, समर्थ हो
चक्खुड्डण न [दे] तमाशा । सके।
चक्खुय देखो चक्खुस । चक्की स्त्री [चक्रा] छन्द-विशेष ।
चक्खुरक्खणी स्त्री [दे] लज्जा । चक्कुलंडा स्त्री [दे] सर्प की एक जाति ।
|चक्खुस बि [चाक्षुष] आँख से देखने योग्य चक्केसर पुं [चक्रेश्वर] चक्रवर्ती राजा।
वस्तु, नयन-ग्राह्य । विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का एक जैन ग्रन्थ
चक्वुहर वि [चक्षुहर] दर्शनीय । कार मुनि ।
चगोर देखो चुओर। चक्केसरी स्त्री [चक्रेश्वरी] भगवान् आदि- चच्च सक [ चर्च ] चन्दन आदि का विलेपन नाथ की शासनदेवी । एक विद्या-देवी।। करना। चक्कोडा स्त्री [दे] अग्नि-भेद, अग्नि-विशेष ।
| चच्च पुं [चर्च] हेमाचार्य के पिता का नाम । चक्ख (अप) सक [आ + चक्ष्] कहना ।
समालम्भन, चन्दन वगैरह का शरीर में
उपलेप । चक्ख सक [आ + स्वादय्] चखना । चक्खडिअ न [दे] जीवितव्य, जीवन ।
चच्चर न [चत्वर चौरास्ता, चौराहा, चौक । चक्खिंदिय न [चक्षुरिन्द्रिय] आँख ।
चच्चरिअ पु[दे. चश्चरीक] भौंरा । चक्ख पंन [चक्षष] नेत्र । पु. इस नाम का चच्चरिया स्त्री [चर्चरिका] नृत्य-विशेष । देखो एक कुलकर पुरुष । न. देखो नीचे °दसण । चच्चरी। ज्ञान, बोध । दर्शन, अवलोकन । चच्चरी स्त्री [चर्चरी] गीत-विशेष, एक प्रकार °कंत पु [कान्त] कुण्डलोद समुद्र का का गान । गानेवाली टोली । छन्द-विशेष । अधिष्ठाता देव । °कंता स्त्री [°कान्ता] एक | हाथ की ताली की आवाज । कुलकर पुरुष को पत्नी । °दसण न [°दर्शन] | चच्चसा स्त्री [दे] वाद्य-विशेष । चक्षु से वस्तु का सामान्य ज्ञान । °दसण-चच्चा स्त्री [दे] शरीर पर सुगन्धि पदार्थ का वडिया स्त्री [°दर्शनप्रतिज्ञा] आँख से देखने । लगाना, विलेपन । तल-प्रहार, हाथ की
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