SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष खण्ण-खरे खण्ण वि [खन्य] खोदने-योग्य । खमा स्त्री [क्षमा] पृथिवी । क्रोध का अभाव । खण्णु देखो खाणु। वइ पु [°पति] राजा। °समण पु खण्णुअ पु [दे. स्थाणुक] कीलक, खूटा ।। [श्रमण] ऋषि । °हर पु[ धर] पर्वत । खत्त न [दे] खात । शस्त्र से तोड़ा हुआ। साधु । सेंध । गोबर । °खणग पु [°खनक] सेंध | खमावणया । स्त्री क्षमणा] माफी लगाकर चोरी करनेवाला। खणण न । खमावणा , माँगना। [°खनन] सेंध लगाना। °मेह ' [°मेघ] खम्म देखो खण = खन् । करीष के समान रसवाला मेघ । खम्मक्खम पुं [दे] संग्राम । मन का दुःख । खत्त पु क्षत्र] क्षत्रिय । पश्चात्ताप का निःश्वास । खत्त वि[क्षात्र]क्षत्रिय-सम्बन्धी। न. क्षत्रियत्व। खय देखो खच । खत्तय पु[दे] खेत खोदनेवाला । सेंध लगा- खय अक [क्षि] नष्ट होना । कर चोरी करनेवाला । राहुग्रह । खय देखो खग। आकाश तक ऊँचा पहुंचा खत्ति पुं [A] एक म्लेच्छ-जाति ।। हुआ। °राय पुं [°राज] गरुड-पक्षी । °वइ खत्ति पुंस्त्री [क्षत्रिन्] नीचे देखो। पुं [ पति] गरुड़ पक्षी। खत्ति पुंस्त्री [क्षत्रिय राजन्य । °कुंडग्गाम खय न [क्षत] धाव । वि. वणित । "यार पुं [कुण्डग्राम] नगर-विशेष । °कुंडपुर न | स्त्री. पु [°ाचार] शिथिलाचारी साधु या [कुण्डपुर] पूर्वोक्त ही अर्थ । विज्जा स्त्री | साध्वी। [विद्या] धनुर्विद्या । खय वि [खात] खोदा हुआ। खत्तिणी । स्त्री [क्षत्रिवाणी] क्षत्रिय जाति खय पु [क्षय] प्रलय, विनाश । राज-यक्ष्मा । खत्तियाणी की स्त्री। °कारि वि [°कारिन्] नाश-कारक । काल खद्द न [दे] प्रभूत लाभ । °गाल पु [ काल] प्रलय-काल । °ग्गि पुं खद्ध वि [दे] भुक्त। बहुत । विशाल । अ. [°ाग्नि] प्रलय-काल की आग। नाणि पुं शीघ्र । दाणिअ वि. [दानिक] समृद्ध ।। [°ज्ञानिन्] केवल-ज्ञानी। समय पु. प्रलयखपुसा स्त्री [दे] एक प्रकार का जूता। काल। खप्पर पुं [कर्पर]मनुष्य-जाति-विशेष । भिक्षा खयंकर वि [क्षयकर] नाश-कारक । पात्र । खोपड़ी । घट वगैरह का टुकड़ा। खयंतकर वि [क्षयान्तकर] नाश-कारक । खप्पर ! वि [दे] रूक्ष, निष्ठुर । खयर पुंस्त्री [खचर] आकाश में चलनेवाला, पक्षी। विद्याधर । प्राय पु [ राज] खम सक [क्षम्] माफ करना । सहन करना । विद्याधरों का राजा। खम वि [क्षम] उचित । समर्थ । खयर देखो खइर = खदिर। . खमग पुं [क्षमक, क्षपक] तपस्वी जैन साधु । खयरक्क वि [खादिरक] खदिर-सम्बन्धी । खमण न [क्षपण] तपश्चर्या, बेला, तेला आदि | खयाल पुंन [दे] बाँस का वन । तप। खर अक [क्षर] झरना । नष्ट होना । खमण न [क्षपण, क्षमण उपवास । पु. खर वि. निष्ठुर, परुष ! पुंस्त्री. गर्दभ । पु. तपस्वी जैन साधु । छन्द-विशेष । न. तिल का तेल । °कंट न खमय देखो खमग। [°कण्ट] बबूल वगैरह की शाखा । °कंड न खप्पुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy