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हुआ।
१०८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
आघोस-आढत्ते काँपना, चलना।
साधु के लिए भिक्षा का एक दोष । आघोस सक [आ+ घोषय्] घोषणा करना, | आजुत्त वि [आयुक्त] अप्रमादी । ढिंढोरा पिटवाना।
आजुज्झ अक [ आ + युध् ] लड़ना । आचक्ख सक[ आ+ चक्ष् ] कहना । आजुह न [आयुध] हथियार । आचरिय वि [आचरित] अनुष्ठित, विहित । आजोज्ज देखो आओज्ज । न, आचरण ।
आडंबर पुं. आटोप, ऊपरी दिखाव । वाद्य की आचाम सक [ आ+चामय ] चाटना, खाना, आवाज । यक्ष-विशेष । न. यक्ष का मन्दिर । पीना ।
आडंबर पुं [आडम्बर] पटह। आचार देखो आयार = आचार ।
आडंबरिल्ल वि [आडम्बरवत् आडम्बरी । आचारिअ देखो आयरिय = आचार्य ।
आडविय वि [दे] चूर्णित, चूर-चूर किया आचिक्ख सक [ आ + चक्ष् ] कहना । आचुण्णिअ वि [आचूर्णित] चूर-चूर किया | आडविय वि [आटविक] जंगल में रहनेवाला, हुआ।
जंगली । आचेलक्क न [आचेलक्य] वस्त्र का अभाव । आडह सक [ आ+ दह ] चारों ओर से वि. आचार-विशेष ।
जलाना। आच्छेदण न [ आच्छेदन ] नाश । वि..
आडह सक [आ +धा] स्थापन करना, नियुक्त नाशक।
करना। आजाइ देखो आयाइ ।
आडाडा स्त्री [दे] बलात्कार । जबरदस्ती । आजि देखो आइ = आजि ।
आडासेतीय पुं [आडासेतोक] पक्षि-विशेष । आजीरण पुं [आजीरण] स्वनामख्यात एक | आडि स्त्री [आटि] पक्षि-विशेष । मत्स्य जैन मुनि ।
विशेष । आजीव । पुं. आजीविका । जैन साधु के | आडियत्तिय पुं [दे] शिविका-वाहक पुरुष । आजीवंग लिए भिक्षा का ।क दोष-गृहस्थ | आडुआल सक [दे] मिश्र करना, मिलाना। को अपनी जाति, कुल आदि की समानता | आडुआलि पुं[दे] मिश्रता, मिलावट । बतलाकर उससे भिक्षा ग्रहण करना। | आडाय देखो आडोव = आटोप । गोशालक मत का अनुयायी साधु । धन का आडोलिय वि [दे] रुद्ध, रोका हुआ। समूह ।
आडोव सक [आ+टोपय् ] आडम्बर आजीवग पुं [आजीवक] धन का गर्व । करना । पवन द्वारा फुलाना । सकल जीव । देखो आजीवय । | आडोविअ वि [दे] आरोपित, गुस्सा किया आजीवण न [आजीवन] जीवन-निर्वाह का | हुआ। उपाय । जैन साधु के लिए भिक्षा का एक आडोविअ वि [आटोपिक] आटोपवाला, दोष।
स्फारित । आजीवय देखो आजीवग।
आढई स्त्री [आढकी] वनस्पति-विशेष । आजीविय वि [आजीविक] गोशालक के आढग पुंन [आढक] चार प्रस्थ (सेर) का मत का अनुयायी।
- एक परिमाण । चार सेर परिमित चीज । आजीविया स्त्री [आजीविका] निर्वाह । जैन | आढत्त वि [दे] आक्रान्त ।
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