________________
अव्वावड-असंगिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष मुक्ति। पुं. लोकान्तिक देव-विशेष । पुन. एक | असइ । देवविमान।
| असई अ [असकुत्] बारंबार । अव्वावड वि [अव्याप्त] जो व्यवहार में न असई ) लाया गया हो, व्यापार-रहित । एक प्रकार | असई स्त्री [असती] कुलटा । दासी । °पोस का वास्तु
पुं [ पोष] धन के लिए दासी, नपुंसक या अव्वावन्न वि [अव्यापन्न] अविनष्ट । पशुओं का पालन । अव्वावार वि [अव्यापार] व्यापार-वर्जित । असउण पुंन [अशकुन] अपशकुन । अव्वाहय वि [अव्याहत] रुकावट-वर्जित । असंक वि [अशङ्क] असंदिग्ध । निर्भय । आघातरहित । पुव्वावरत्त न [पूर्वापरत्व] असंकल वि [अशृङ्खल] शृङ्खला-रहित, जिसमें पूर्वापर का विरोध या असंगति न हो | अनियन्त्रित । ऐसा (वचन)।
असंकिलिङ्क वि [असंक्लिष्ट] संक्लेश-रहित । अव्वाहार पुं [अव्याहार] मौन ।
विशुद्ध, निर्दोष । अव्वाहिय वि [अव्याहृत] न बुलाया हुआ। असंख वि [असंख्य] संख्या-रहित, परिमाणअन्विरय वि [अविरत] विरति-रहित । ___ रहित । अव्वो अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय-सूचना । असंख [असंख्य] सांख्य मत से भिन्न दर्शन । दुःख । संभाषण । अपराध। विस्मय । आनन्द । असंखड स्त्रीन [दे] कलह । आदर । भय । खेद । विषाद । पश्चात्ताप। असंखड न [दे] कलह, झगड़ा। अन्वोगड वि [अव्याकृत] अविशेषित । | | असंखडिय वि[दे] कलह करने वाला, झगड़ाफैलाव-रहित । नहीं बांटा हुआ। अस्फुट, | खोर । अस्पष्ट । न. एक प्रकार का वास्तु । असंखय देखो असंख = असंख्य । अव्वोच्छिण्ण वि[अव्युच्छिन्न, अव्यवच्छिन्न] असंखय वि [असंस्कृत] संस्कार-हीन । संधान सतत । नित्य । अव्याहत ।
करने के अशक्य । अव्वोच्छित्ति स्त्री [अव्युच्छित्ति, अव्यव
असंखिज्ज वि[असंख्येय] गिनती या परिमाण
करने के अशक्य । च्छित्ति] सातत्य, प्रवाह, परंपरा से बराबर
असंखेज देखो असंखिज्ज । चला आना । नय पुं. वस्तु को किसी न किसी रूप से स्थायी माननेवाला पक्ष, द्रव्यार्थिक
असंखेजइ° वि [असंख्येय] असंख्यातवां ।
°भाग पुं. असंख्यातवां हिस्सा। नय। अव्वोयड देखो अव्वोगड ।
असंखेजय पुंन [असंख्येयक] गणना-विशेष । अस सक [अश्] व्याप्त करना । खाना । असंग वि [असङ्ग] अनासक्त। पुं. आत्मा । अस अक [अस्] होना।
मुक्त जीव । न, मोक्ष । अस वकृ [असत्] अविद्यमान ।
असंगय न [दे] वस्त्र । असइ स्त्री [असृति] उलटा रखा हुआ हस्त | असंगहिय वि [असंगृहीत] जिसका संग्रह न तल । धान्य मापने का एक परिमाण । उससे | किया गया हो वह । अनाश्रित । मापा हुआ धान्य ।
असंगहिय वि [असंग्रहिक] संग्रह न करने असइ स्त्री [दे. असत्त्व] अभाव, अविद्य- वाला । पुं. नैगम नय का एक भेद । मानता।
| असंगिअ पुं [दे] घोड़ा। वि, अनवस्थित, १२ For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International