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________________ महासुक. ] ( १४० ) દેવલેનું એક વિમાન કે જેના દેવતાની स्थिति सत्तर सागरोपमनी छे सातवें देवलोक का एक विमान जिसके देवता की स्थिति १७ सागरोपम की है. A celestial abode of the 7th Devaloka whose gods live for 17 Sāgaro pamas ( a period of time ). सम० १७; महासुक्क. पुं० ( महाशुक्ल ) अति उ सूर्य ने य.द्र. अत्युज्वल सूर्य तथा चन्द्र Very bright sun and noon. उत्त० ३, १४; महासुक्ककण्प पुं० ( महाशुक्रकल्प ) सातभा हेवलो. सातवाँ देवलोक. The 7th Devaloka. नाया० १४; महासुक्कय. त्रि० ( महाशुक्रक ) सातमा हेवसेोडना छन्द्र संबंधी सातवें देवलोक के इन्द्र सम्बन्धी. Pertaining to the Indra (lord) of the 7th Devaloka. जं० प० ५, ११८; Jain Education International महासुक्ख न० ( महावौख्य ) अतिशय सुम अतिशय सुख, महामुख Bliss. नाया० १: कप्प० २, १३; महासुमिरण. पुं० ( महास्पन ) म्होटां स्वग्न; તીર્થકર વગેરેની માતા સિદ્ધ વગેરેનાં સ્વપ્ના लुखे हे ते. मोटे - महान् स्वप्न तीर्थकरादि की माताओं का स्वप्न में सिंहादि दर्शन. A big auspicious dream; one in which the mother of a Tirthankara dreams of a lion etc. नाया० १; ८ कम्प० १, ४, Agrgfam. ġ. ( maraca ) 2812i 29744. महान् स्वप्न; बड़े स्वप्न. A big dream. भग० ११, ११; १६, ६; महासुष्वय पुं० ( महासुव्रत ) ये नाम मे श्री. एक श्राक्क का नाम A voter For Private lay-mau so named. १७६ ; [ महासेण. Personal Use Only कम्प० ६, ૧૫ મા महासेय. पुं० ( महावेत ) उर तरंइना કાદંડ જાતિના વ્યંતર દેવતાના ૪૬. उत्तर ओर के कोदंड जाति के व्यंतर देवताओं का इन्द्र. The Indra ( lord) of the Vyantara gods of Kohanda class of the north. ठा० २, ३; महासेण. पुं० ( महासेन ) गत व्यवसपिलीना સતિમાં કુલકર गत भवसर्पिणी के सातवें कुलकर. The 7th Kulakara of the past aeon of decrease. सम० प० २२६; (२) ज्यू दीपना भैरवत क्षेत्रमां આવતી ઉત્સર્પિણીમાં થનાર तीर्थ २. जम्बूद्वीप के ऐवत क्षेत्रमें आगामी उत्सर्पिणी में होनेवाले १५ वें तीर्थकर The 15th Tirthankara to be born in the coming aeon of increase in Airavatakṣetra of Jambudvipa. सम० प० २४३; (३) आयुक्त विवाह सूत्रना भीन्न वरीना भीज्न अध्ययननुं नाम. अणुतरोववाइ सूत्रके दूसरे वर्ग के दूसरे अध्ययन का नाम Name of the 2nd chapter of the 2nd class of Anuttarovavāyi Sūtra. (४) श्रेणि राजनी ધારણી રાણીના પુત્ર કે જે દીક્ષા લઇ, ૧૧ અંગ ભણી, ગુરયણ તપ કરી, ૧૬ વરસની પ્રત્રજ્યા પાળી, વિપુલ પર્વત પર એક માસને સંથા કરી, વિજય અનુત્તર વિમાનમાં ઉત્પન્ન થયા, ત્યાંથી अवतार री मोक्ष शे. श्रेणिक राजा की धारीणी रानी का पुत्र जिसने दीक्षित हो ११ अंगों का अध्ययन किया, गुगारयण तप किया, १६ वर्षो को प्रत्रज्या पाली, विपुल पर्वत पर एक मास का संधारा किया पश्चात् विजय अनुत्तर विमानमें उत्पन्न हुए, वहाँ से एक अवतार www.jainelibrary.org
SR No.016016
Book TitleArdhamagadhi kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1988
Total Pages1056
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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