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(४) मूळ ग्रन्थो। जैन शास्त्रोनुं शान न धरावता सामान्य परिचय माटे अभ्यास करनाराने नोचेना मूळ अर्धमागधी ग्रन्थो उपयोगी थशे एम धारी अत्रे निर्दिष्ट करवामां आवे छ ।
(ए) बालुचर मूळग्रन्थो-मुर्शिदाबाद (बंगाळा) जिल्लामां आवेल बालुचर निवासी रा. ब. धनपतिसिंहे अर्ध-मागधी शास्त्रोनी संस्कृत टीका अने गुजराती भाषान्तरसहित एक प्रावृत्ति बनारस, मुंबई अने कलकत्तामा छगवी बहार पाड़ी ( ई. सन् १८७५-१८८६ ). हॉर्नेल श्रा पुस्तकमाळा उपर टीका करतां जणावे छे के "तेनी अंदर मूळग्रन्थनी तेमज व्याकरणनी शुद्धता ऊपर कोई पण लस आपवामां आवेलुं नथी." आ ग्रन्थमाळा साधुओने, जैन देवालयो अने घणां पुस्तकालयोने विना मूल्य प्रापवामां आवेल छ।
(बी ) जैनागमोदय मूळग्रन्थो-जैन आगमोदय समितिए मुंबइमा ई. स. १६१०-१६२० मा बहार पाडेल प्रन्धमाळा, उपरनी माळा करतां विद्वत्तानी दृष्टिले वधारे सारी छे. या माळानां पुस्तको पोथीना रूपमा छपायेला छे. तेनी अंदर संस्कृत टीका श्रापवामां आवेली छे. तेमज टीपोमो कोई कोई पाठ भेदो पण प्रापेला छ।
(सी) हैद्राबाद ग्रन्थमाळा--अमोलकऋषि नामना जैन साधुए तैयार करेल हिन्दी भाषान्तर सहित अर्ध-मागधी मूळग्रन्थो-श्रा माळा ई. स. १६१६- १६२० हैद्राबाद ( दक्षिण ) ना एक धनवान श्राश्रयदाताए पोताने खर्चे पोर्थाना आकारमा छपा/ विनामूल्य साधुओ तेमज पुस्तकालयोमा बहेंची आपेल छे परन्तु मूळप्रन्थनी अंदर अशुद्धताओ श्रावी गयेली छे।।
आ उपरांत (जेमांनी बीजी ग्रंथमाळा अर्ध-मागधीना अभ्यासीओ माटे सर्वोत्तम छे ) कप्प, उत्तराज्झयण, दसवेयालिय इत्यादि वधारे लोकप्रिय ग्रन्थोनी जुदी जुदी घणी आवृत्तियो बहार पडेली छे ।
श्रा प्रस्तावनाना श्रीजा मथाळानी नीचे युरोपीय विद्वानोए शब्दार्थ-कोषसहित छपावी प्रसिद्ध करेला सात मूळ प्रन्यो श्रापवामा आवेला छे. आ उपरांत शब्दार्थ-कोषरहित पण बीजा त्रण बहार पडेला के ते नीचे प्रमाणे--
८ आयाराग, संपादक, ह. जेकोबी पाली टेक्स्ट सोसायटी १८८२.
६ अणुत्तरोववाइय, संपादक, बार्नेट, श्रोरियंटल ट्रान्सलेशन फंड पुस्तक १७ मुं, लन्डन १९०७
(अंतगड सूत्रना भावान्तर ने परिशिष्टना रूपमा जोडेन). १. दसवेयालिय, संपादक, ल्युमेन पुस्तक ४६ मुं ( z. D. N. G. मां ).
(५)भाषान्तरो। बालुचर माळामा प्रापेल गुजराती अने हैद्राबाद माळामा प्रावेल हिन्दी भाषान्तरो विषे ऊपर कहेवामा आवेलुं छे. इंग्रेजीमां कोविए “ सेक्रेड बुक्स ऑफ धि ईस्ट " ना पुस्तक २२ मा भने ४५
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