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अभनय ]
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સંથારો કરી, વિજ્ય નામે અનુત્તવિમાનમાં ઉત્પન્ન થયા, ત્યાંથી એક અવતાર કરી મેાક્ષ प्राप्त २. श्रेणिक राजा की नंदा रानी के गर्भ से उत्पन्न पुत्र अभयकुमार, जो कि महावीर स्वामी से दीक्षा लेकर ११ अंगों का अभ्यास कर गुणरयण तप करके पांच वर्ष तक प्रव्रज्या का पालनकर अंत में विपुल पर्वत पर एक मास का संथारा धारणकर अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुआ, वहां से एक भव धारणकर मोक्ष को प्राप्त होगा. Abhayakumāra the son of Nanda the queen of Śreņika who took Dikṣā from Mahavira Svāmī, studied eleven An gas, observed Gunarayana penance entered the order of asceticism for 5 years and breathed his last on the Vipula mountain after remaining with
out food and drink for one month and was born in Anuttara heavenly abode named Vijaya. Therefrom after one birth he will get salvation. अणुत्त० १, १०; नाया ० १ ; ( 3 ) अत्तविवाह सूत्रा प्रथम वना हशमा अध्ययननुं नाम गुत्तरोपपातिक सूत्र के प्रथम वर्ग के दशवें अध्याय का नाम. name of the tenth chapter of the first section of Anuttarovavai Sūtra. अणुत० १, १०; (४) प्राणिरक्षा; संयभ. प्राणिरक्षा; संयम. protection of living beings; selfcontrol. आया • १, १, ५, ३६, सूय० १, ६, २३० - दय. पुं० (-दक- प्रभयं ददातीत्यभयदः) सर्व वने सलहान व्यापनार पावनार तीर्थ भगवान, सम्पूर्ण जीवों
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को अभयदान देने और दिलाने वाले तीर्थकर भगवान्. Tirthankara, the giver and admonisher of the blessing of freedom of fear to all living beings. अभयदयाणं चक्खुदयाणं भग० १, १, ओव० नाया० १; आव० ६, ११; कप्प० २,१५;–प्पयाण. न ० (-प्रदान) लु 'श्रभ-य-दय' शम्६. देखो ' अभय-य-दय शब्द. vide " श्रभ-य-दय". ' दायायसे अभयप्पयाणं ' सू० १, ६, २३; अभंगक. त्रि० ( अभङ्गक ) लुग्ये ' अभंगय २६. देखो ' अभंगय ' शब्द. Vide 64 अभंगय. भग० ६, ४; अभंग. त्रि० ( अभङ्गक) मांलांगो- विदय न उठे ते; लांगा विनानुं जिसमें शंका न उठें वह. Free from any kind of doubt or mis-giving. भग० १, ५; ६, ४;
अभंगसेण. पुं० ( श्रभङ्गसेन ) विन्य नामे ચેરના સેનાપતિને પુત્ર, કે જે પુરિમતાલ નગરને ઇશાન ખુણે આવેલી સાલાટવી નામે ચારપલ્લીમાં પાંચસા ચારની સાથે રહેતા હતા. પુરિમતાલના મહાબળ રાજાએ તેને પકડવાને લશ્કર માકહ્યું પણ તે પકડાણા નહિ, આખર મહાત્સવ પ્રસંગે સત્કારપૂર્વક તેને ગામમાં ખેલાવી, દગો કરી, રાજાએ તે ચારને પકડાવી ફાંસીએ ચડાવ્યેા. ૨૭વરસની ઉમ્મરે મરણ પામી પહેલી નરકે ગયા. विजय नामक चोर के सेनापति का पुत्र, जो कि पुरिमताल नगर के ईशान कोन की ओर सालाटवी नामक चोरपल्ली में पांच सौं चोरों के साथ रहता था. पुरिमताल नगर के राजा महाबल ने उसे पकड़वाने के लिये अपनी सेना भेजी, परन्तु वह नहीं पकड़ा जा सका, अन्त में महोत्सव के अवसर पर राजा ने उसे सत्कारपूर्वक ग्राम में बुलवाया और कपट से उसे फांसी पर
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