________________
अप्पण ]
( ३२३ )
का
और भविष्य कालसम्बंधी पापकर्मों जिसने प्रत्याख्यान नहीं किया वह. ( one ) who has not repudiated past sinful acts by consuring them and future ones by vowing to abstain from them भग० १, १; - बल. त्रि० (-बल ) धेनुं पण अधि ढसाय नहि उल्लंघाय नहि ते. जिस के बल का किसीके द्वारा नाश न हो अथवा उल्लंघन न हो वह of irresistible might. उत्त० ११, २१; -- सासण. त्रि० ( शासन ) नशे पणाय तेथे. जिसकी आशा अखंडित रीति से पाली जाय ऐसा. of unchecked, irresistible authority. पहियास असेव्यवई ” नाया० १६६ – वरणापदंसणधर पुं० ( - वरज्ञानदर्शनघर ) न गडे તેવાં જ્ઞાન-કેવળજ્ઞાન ને દર્શન-કેવળ दर्शनना धरनार, कहीं भी न रुके ऐसा ज्ञानकेवलज्ञान और केवलदर्शन धारण करने वाला. one possessed of irresist ible or invincible perfect knowledge and right faith. आन • ६, ११, भग० १, १;
66
अप्पण. न० (अर्पण) अपेते; भेंट यापी ते भेट करना; अर्पण करना. Act of giving; act of presenting. विशे० १८४३;
""
अपण. पुं० ( आत्मन् ) आत्मा; पोते आत्मा; स्वयं: खुदबखुद. Soul; self; oneself. अपट्ठा परट्ठा वा, उभयस्संतरेण वा उत्त० १, २५; — श्रट्ठ. पुं० (- अर्थ ) स्वार्थ; पोतानुं प्रयोजन- भतल स्वार्थ; खुद का मतलब; अपना प्रयोजन self interest; one's own interest. दस० ६, १२, ६, २, १३; उत्त० १, २५;
अर्मनाभ्यमाणु नधी ते भूत अप्पणिच्चिय. त्रि० ( श्रात्मीय ) आत्मसं मंत्री, गोतानुं अपना आत्मसम्बन्धी One's relating to oneself. “यो अप्पणिच्चियो देवी श्री अभिजुजिय" गग० २, ५
own;
Jain Education International
"
For Private
अप्पणिजिय त्रि० ( आत्मीय ) पोतानुं; આપણું; खात्मानु. अपना; निजका. Relating to one's self or soul; one's own दसा० १०, ६, ७ अप्पतर. त्रि० (अल्पतर ) अतिशय सहय;
श्री. बहुत थोड़ा. Very little. अप्पतराए से पाये कम्मे कजइ " भग० ८, ६; भग० १, १, २, ओव० ३८; क० ० ५, २२, पंचा० ५ १६ – बंध. पुं० ( बन्ध ) यांत थोडा उर्भधः જ્યારે આ પ્રકૃતિને બંધક થઇને સાતને બંધક થાય ત્યારે પ્રથમ અશ્પતર- ધણા થાડા मंत्र होय. बहुत घोड़ा कर्मबंध; जब कि आठ प्रकृतियों का बंधक होकर सात प्रकृतियों का बंधक होता है तब पहिले जो बहुत थोड़ा बंध हो वह. very little Kamic bondage क० गं० ५ २२;
""
[ अप्पत
अम्पतिद्वारा न० ( अप्रतिष्ठान ) लुखो अपइद्वारा शह देखो' अप्पइद्वारा शब्द. Vide " अप्पट्टाया. जीवा० ३; अप्पत्त त्रि० (श्रप्राप्त) न ग्राम थये. जो प्राप्त न हुआ हो वह Unobtained. पिं० नि० भा० २६; प्र० ८७१ - कारि त्रि० (-कारिन् ) लुभे। 'पतकारि १६. देखो ' अपत्तकारि ' शब्द. vide अपत्तकारि. '
"
""
Personal Use Only
विशे० ३४० ; - जाल. पुं० ( ज्वाल ) ચૂલા ઉપર રહેલ જે વાસણને અગ્નિની જાળ न स्पर्शती होय ते. चूल्हे पर रखे हुए जिस बर्तन को अग्नि की ज्वाला न लगती हो वह. untouched by flames (e. g. a vessel on an oren). पिं० नि० ५४६;
www.jainelibrary.org