________________
अणवकंखवत्तिया ]
(१५८)
[अण्वट्ठप्प
mind being as careless about भाषा. पाप-दोष रहित भाषा; निरवद्य भाषा; another's life as about one's किसीको दुःख न देने वाली भाषा. own sinlessness. भग० १, ८;
faultless and harmless speech. प्रणवकंखवत्तिया. स्त्री० ( अनवकाङ्क्षप्रत्य
भग० १६,२; या-अनवकाङ्क्षा स्वशरीराधनपेक्षत्वं सैव | अणवठ्ठप्प. न० ( अनवस्थाप्य ) षमाटे प्रत्ययो यस्याः सा अनवकाङ्क्षप्रत्यया) पो
સાધુને આપવાના પ્રાયશ્ચિત્તને એક પ્રકાર; તાની કે પરની જીંદગીની અપેક્ષા રાખ્યા વિના
જેમાં અમુક વખત સુધી સાધુને વ્રતથી બહાર साडसथा पापलिया थाय ते. अपनी या दूसरे
રાખી તે પછી લેવામાં આવે તેવું એક પ્રાયकी जिदंगी की परवाह किये बिना जो साहस
श्चित्त. दोषी साधु को देने योग्य एक प्रकार का से पाप क्रिया हो वह. Sinful action प्रायश्चित्त; जिसमें अमुक समय तक साधु को व्रत rashly done without regard for बाहिर रख फिर उसे साधुत्व में ले लेते one's own or another's life. “अण- हैं ऐसा एक प्रायश्चित का प्रकार. वखवत्तिया किरिया दुविहा पपणत्ता, प्राय A mode of administering सरीरप्रणवकंखवत्तिया वेव परसरीरप्रणय
expiation to a monk for a sin, कंखवत्तिया चेव" ठा० २, १%B
by temporarily expelling him
from the fraternity of monks. प्रणवकंखा. स्त्री० (अनवकाङ्क्षा ) छान।
ओव० १६; प्रव० ७६२; वव. २, ७; अभाव. इच्छा का अभाव. Absence of desire. ठा० १, १;
(२) त्रि० मनस्याप्य नामे प्रायश्चित्त
ने योय. अनवस्थाप्य नामक प्रायश्चित्त के अणवगय. त्रि. (अनवगत ) न भेटुं.
योग्य. (one) deserving of the exनहीं जाना हुआ. Not known. ठा०
piation named Anavasthāpya. ४, ४;
वेय० ४, ३;-अरिह. न० (-अह-अस्मिप्रणवगल.त्रि० (अनवकल्प-वार्द्धक्यरहित)
मासेविते कञ्चन कालं व्रतेष्वनवस्थाप्यं राणु नहि थयेस; २१ वरना. वृद्धावस्था
कृत्वा पश्चाचीर्णतया तहोषोपरतो व्रतेषु से रहित; जो जराजीर्ण नहीं हुआ है. Not
स्थाप्यते तदनवस्थाप्याहम्) नवभुं प्रायश्चित्त; infirm through old age. अणुजो० કે જે આપવાને, દેશ સેવનાર સાધુને અમુક १३८; भग० ६, ७;
વખત સુધી વ્રત બહાર રાખી,તપ કરાવી, તે દેप्रणवज. त्रि. (अनवद्य ) नि:५; ५५ २लि- ષની નિવૃત્તિ થયા પછી વ્રતનું આરોપણ
त. निर्दोष; पाप रहित. Innocent; not ४२वामां आवे ते प्रायश्चित. नवा प्रायश्चित्त; guilty; faultless. (२) न० पाय- जिसके द्वारा दोषी साधु को अमुक समय तक व्रत होपनो मनाय. पाप-दोष का अभाव. बाहिर रखकर तप कराने के बाद दोष की innocence; absence of guilt. निवृत्ति हो जाने पर पीछे उसे व्रत अंगीकार ओघ० नि० ७४६; दस० ७, ३, ४६; कराया जाय वह प्रायश्चित्त. the ninth भग० ५, ६; विशे० ७२; १६८;-भासा. variety of expiation; a Sādhu स्त्री० (-भाषा) पा५-होपडित भाषा; temporarily debarred from નિરવદ્ય ભાષા; કોઈને દુઃખ ન ઉપજાવે તેવી | observing a vow and made to
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org