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अग्घा. ]
हिम्मत; भूस्य; द्रव्य. कीमत; मूल्य. price; value. संथा० ४६; विशे० १४५०; 'अग्धा. धा० I. ( आxघा ) सुंध; गंध लेवी. सूंघना. To smell.
अग्धाइ पन० १५; नाया ० १९ अघाडग. पुं० ( श्राघातक ) से नामनी
लतनी वनस्पति; अघाडी एक जाति की वनस्पति A plant growing in marshy places, पन्न० १; अग्धाय धा० I. ( श्र+घा ) सुंधवु;गंध लेवी. सूंघना. To smell.
अग्वायडू. श्राया० २, १५, १७६;
अग्वायंति. नाया० १७;
( ७८)
बग्वाय सं० कृ० सुरभिगंधाणि वा अग्वाय से तत्थ श्रासायवाडयाए मुच्छिए" श्राया० २, १, ८, ४४ श्रग्वायमाण. व० कृ० नाया० १;
अग्धाय. त्रि० ( आघात ) सुधेभु; गंध सीधेलं. सूंघा हुआ. Smelt. विशे० २३८४; अघार. त्रि० ( श्रघातिन् ) आत्माना ज्ञानाहि गुणोनी घात न हरना२; आत्मा के ज्ञानादि गुणों का घात न करने वाला. ( One ) that does not obstruct the qualities of the soul such as knowledge etc. क० प० २, ४४; क० गं० ५, १४; - कम्म न० (-कर्मन ) आत्मगुगुनी स्वतः धात न रे तेवा वेहनीय याहि . श्रात्मगुण की स्वयं घात न करे ऐसा वेदनीय आदि कर्म. Karma such as Vedanīya etc. which do not of them - selves destroy the qualities of the soul. क० १०५, ५३; अकमण. अ० ( प्रचङ्क्रमण ) यं भणु-यासपानी जतिनो अलाव; न यास ते गति का अभाव; न चलना. Motionlessness. नाया० १;
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| अचकारियभट्टा
श्रचकारियभट्टा. स्त्री० ( अचकारितभट्टा ) ધન્યરોની પુત્રી, જે તેની આજ્ઞા ઉઠાવે તેની સાથે પરણાવવામાં આવી હતી, પતિને સકુંનમાં રાખતી. એકદા રાજાના દબાણથી સ્ત્રીની આજ્ઞા ન પાળી તેથી તે માનિની સ્ત્રી રિસાઇ ભાગી, ચેારાએ લુંટી, રંગારાને ત્યાં વેચી; ઘણું કષ્ટ વેઠયા પછી તેના પતિએ તેને છેડાવી, ત્યારથી તેણીએ ક્રોધ, માન વગેરે દેષાને દૂર કર્યા. મુનિપતિ નામના સાધુના દાઝેલ શરીરની દવામાટે લક્ષપાક તેલ વ્હેરવા એક સાધુ તેને ઘેર આવ્યા. તેમને વ્હારાવવામાટે લાવતા દાસીના હાથે લક્ષપાકના એક પછી એક એમ ત્રણ સીસા છુટી ગયા તે પણ જેને ક્રોધ ન થયા. ચેાથીવાર પાતે સીસા લઈ આવી સાધુનેવ્હારાવ્યા. એને વિસ્તાર મુનિપતિ ચस्त्रियां छे. धन्यसेठ की पुत्री, जिसका विवाह उसकी आज्ञा उठाने वाले के साथ हुआ था, यह सदा अपने पति को दबाव में रखती थी, एक वार राजा के दबाव डालने से स्त्री की आज्ञा का पालन नहीं हुआ. अतः वह मानिनी स्त्री, गुस्सा होकर भाग निकली, रास्ते में चोरों ने उसे लूटा और रंगेरे के यहाँ बेचा, इस प्रकार जब बहुत कष्ट उठाया तब उसे उसके पति छुड़ाया और तबसे फिर उसने क्रोध मान आदि करना छोड़ दिया. मुनिपति नामक साधु के जले हुए शरीर की दवा के लिये लक्षपाक नामक तेल लेने के लिये एक साधु इसके घर आया उस समय लक्षपाक तेल की तीन शीशियां दासी के हाथ से फूट गई तो भी उसे क्रोध न हुआ, चौथी बार वह स्वयं शीशी लेकर आई और साधु को तेल दिया. इस का विस्तृत वर्णन मुनिपतिचरित्र में हैं. The daughter of Dhanyasetha, She was married to a person who was willing to obey her commands. She used to keep
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