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________________ हरिकान्ता ५३० हाथ हरिकांता-हरि क्षेत्रकी एक प्रसिद्ध नदी-दे. लोक/३/१० । हरिवंश पुराण-पुन्नाटसंघीय आ. जिनसेन (ई. ७८३) कृत ६६ हारक्षेत्र-रा. वा./३/१०1८/१७२/२७ हरिः सिंहस्तस्य शुक्लरूपप सर्ग तथा १०,००० श्लोक संस्कृत काव्य । (ती./३/४)। २. कवि रिणामित्वात् तद्वर्णमनुष्याद्य षितवाद्धरिवषः इत्यारख्यायते ।-हरि धवल (वि. श. ११-१२) कृत अपभ्रंश काव्य । (ती./४/११९)। अर्थात् सिंहके समान शुक्ल रूपवाले मनुष्य इसमें रहते हैं अतः यह ३.न.जिनदास (ई. १३६३-१४६८) कृत ४० सर्ग प्रमाण संस्कृत. हरिवर्ष कहलाता है। (यह अढाई द्वीपों में प्रसिद्ध तीसरा क्षेत्र है।। काव्य । (ती./३/३४०)। ४. कबि रधु (वि. १४५७-१५३६) कृत २. इस क्षेत्रका अस्थान व विस्तारादि-दे. लोक/३/३ । ३. इस अपभ्रश काव्य (दे. रणधु)। ५. सकलकीति (ई. १४०६-१४४२) कृत क्षेत्र में काल बर्तन आदि सम्बन्धी विशेषताएँ-दे, काल/४/१५ । संस्कृत काव्य । (दे. सकलकीति)। हरिचन्द्र-नोमक वंशके कायस्थ आर्द्रदेव नामक श्रेष्ठी के पुत्र हरिवर्मा-अंगदेशके चम्पापुर नगरका राजा था। दीक्षा धारण कर आचारशास्त्र के बेत्ता जैन कवि गृहस्थ । कृति-धर्म शर्माभ्युदय, ११ अंगोंका अध्ययन किया। दर्शनविशुद्धि आदि भावनाओंका जीवन्धर चम्पू । समय-ई. श. १० का मध्य । (ती./४/१४) । चिन्तवन कर तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध किया। अन्तमें समाधि २. 'अणस्थमियकहा' के रचयिता एक अपभ्रंश कवि गृहस्थ । मरणकर प्राणत स्वर्गमें इन्द्र हुआ। (म. पु/७/२-१५) यह समय -वि. श. १५ का मध्य । (ती./४/२२२) । मुनिसुवत नाथ भगवान्का पूर्वका दूसरा भव है।-दे. मुनिसुव्रत । हारत-१. हरिक्षेत्रकी प्रसिद्ध नदी-दे. लोक/३/११। २. हरिक्षेत्रमें। हो हरिवर्ष-१.हिमवान् पर्वतस्थ एक कूट-दे. लोक ५/४ २. हिरात स्थित एक कुण्ड जिसमें-से कि हरित. नदी निकलती है।-दे. बस्तीसे तात्पर्य है जिसका पर्वत महामेरु शृखलाके अन्तर्गत निषध लोक/३/१०:३. निषध पर्वतस्थ एक कूट-दे. लोक/१४:४. हरित ( हिन्दुकुश ) है जो मेरु तक पहुँच जाता है। अवेस्तामें इसका नाम कुण्डव हरित कुण्डको स्वामिनी देवी-दे. लोक/३/१०॥ 'हरिवरजो' प्रसिद्ध है । (ज. प./प्र. १३६ ) । हरिताल-मध्य लोकके अन्तका पन्द्रहवाँ सागर व द्वीप-दे. हरिषेण-१. साकेत नगरीके स्वामी वज्रसेनका पुत्र था। दीक्षा लोक/५/१। धारणकर आयुके अन्त में महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ। (म. पु./७४/ २३२-२३४) यह वर्धमान भगवानका पूर्वका सातवाँ भव।।-दे. हरिदेव-चंगदेव की सप्तम पीढ़ी में उत्पन्न, मयणपराजय चरिउ के वर्धमान २. पूर्वभव सं.२. में अनन्तनाथ भगवान के तीथ में एक बड़ा रचयिता एक सदगृहस्थ अपभ्रंश कवि । राजा था। पूर्व भवमें स्वर्ग में देव था। (म. पु./६७/६१ ) वर्तमान चङ्गदेव भवमें दसवाँ चक्रवर्ती था। विशेष-दे. शलाकापुरुष/२: ३. काठियावाडके वर्धमानपुर नगर वासी पुन्नाटसंधी आचार्य । कृति बृहत्कथा कोष । समय-ग्रन्थ रचनाकाल शक ८५३ (ई. १३१)। किंकर कृष्ण हरिदेव द्विजपति राधव (ती./३/६५) ४. चित्तौड़ बासी अपभ्रश कवि। कृति-धम्मपरिनागदेव क्खा । समय-ग्रन्थ रचनाकाल वि. १०४४ । (ती./४/१२०)। हर्ष वर्धन-१. स्थानेश्वरके राजा थे। समय-वि, ६६७-७०७ (वैद्यराज ) हेम राम (वैद्यराज) (ई,६१०-६५०); (क्षत्र चूड़ामणि प्र./८ प्रेमो)। २. एक चीनी यात्री था। भारतमें ई. ७०० में आया था । समय-ई. ७०० । ३. भोज प्रियंकर (दानी) वंशीराजा मुब्ज के पिता। समय-ई.६४०-६६४ (दे. इतिहास/३/१) । मुल गित (वैद्यराज हस्त-१. एक नक्षत्र-दे. नक्षत्र, २. क्षेत्रका प्रभाव विशेष । अपर नाम हाथ-दे. गणित/I/१/३।। समय -ई. श.१४ का अन्तिम चरण । नागदेव हस्तकम-भ, आ./वि.६१३/८१२/६ छेदनं भेदनं, पेषणमभिघातो, (ती./४/२१८)। व्यधन, खनन, बन्धनं, स्फाटन, प्रक्षालनं, रञ्जनं, वेष्टन, प्रन्थनं. हरिद्वती-भरत क्षेत्र वरुण पर्वतस्थ एक नदी-दे. मनुष्या४। पूरणं, समुदायकरणं, लेपनं, क्षेपणं आलेखन मित्यादि संक्लिष्ट हस्तकम ।-छेदन करना, भेदन करना, पीसना, आघात करना, हरिभद्र--, महातार्किक तथा दार्शनिक प्रसिद्ध श्वेताम्बराचार्य। चुभना, खोदना, बाँधना, फाड़ना, धोना, रंगाना, वेष्टन करना, कृतियें-षड्दर्शन समुच्चय, जंबूदीव संघायणी, लीला विस्तार गूथना, पूर्ण करना, एकत्र करना, लेपन करना, फेकना, चित्र बनाना टीका। समय-वि. ५८५ में स्वर्गवास । अतः ई. ४८०-५२८ । आदि कार्य को संक्लिष्ट हस्तकर्म कहते हैं। (द. सा. प्र. २८/प्रेमीजी) । २. याकिनीसूनु के नाम से प्रसिद्ध हस्तनागपुर-कुरुजांगल देशका एक नगर-दे. मनुष्य/४। श्वेताम्बराचार्य । कृति-तत्त्वार्थाधिगम भाष्य की स्वीपाटीका इत्यादि सैकड़ों ग्रन्थ । समय-वि. श.८-१। (जै./२/३००, ३७१)। हस्तिनायक-विजया की उत्तर श्रेणीका एक नगर-दे. ३. मानवदेव उपाध्याय के शिष्य श्वेताम्बराचार्य। समय- विद्याधर। वि. १९७२ । (जै./१/४३२)। -कालका एक प्रमाण विशेष-दे. गणित/१/४ | हरिमश्रु-एक क्रियावादी-दे. क्रियावाद ।। नी-भरत क्षेत्रस्थ आर्य स्खण्डकी एक नदी-दे. मनुष्य/४। हरिवंश-सुमुख राजाने बीरक नामक श्रेष्ठीकी स्त्रीका हरण कर उससे भोग किया। ये दोनों फिर आहार दानके प्रभावसे हरिक्षेत्र में हस्तिमल्ल-सेनसंधी आचार्य एक संस्कृत नाटककार । कृतिउत्पन्न हुए। पूर्व वैरके कारण वीरकने देव बनकर इसको (सुमुखके विक्रान्त कौख, मैथिली कल्याणम्, अञ्जना पवनजय, आदि जीवको) भरत क्षेत्र में रख दिया। चूकि यह हरिक्षेत्रसे आया था पुराण, उदयनराज आदि । समय-वि.१३४७ (कर्नाटक कवि चरिते)। इसलिए इसके वंशका नाम हरिवश हुआ। (प. पु./२१/२-७३४८ ई. ११६९-११८१ ती./३/२८०) । ५५); (ह. पु./१५/५८)। -दे० इतिहास /१०/१८ । हाथ-क्षेत्रका प्रमाण विशेष । अपर नाम हस्त-दे. गणित/I/११ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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