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प्रमाण
गुण
मार्गणा
स्वस्थान-स्वस्थान | विहारवत स्वस्थान
वेदना व कषाय समुद्घात
वक्रियिक समुद्धात
मारणान्तिक समुद्धात
उपपाद
तैजस आहारक व केवल समुद्धात
स्थान
अनाहारक
सा Cm
प्रतर व लोकपूरण
मूलोधवत
सर्व अस.
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
पद विशेष प्रकृति स्थिति
अनुभाग
प्रदेश मूल प्रकृति उत्तर प्रकृति । मूल प्रकृति
उत्तर प्रकृति | मूल प्रकृति उत्तर प्रकृति मूल प्रकृति उत्तर प्रकृति ५. अष्टकर्मोंके चतु. बन्धकोंकी भोघ आरेश प्ररूपणा-(म, ब./पु./.../पृ....) ज. उ. पद
| १/२६२-३३९/१६१-२३१ । २/१७०-१८८/१०१-११० | २/४७८-५२१/२१७-२४३ | ४/२०८-२२६/११-१०६ ३४८-४०४/१५१-२११ २ भुजगारादि पद
२/३१०-३१७/१५३-१६६ | ३/७७५-७६४/३६७-३७६/४/२६०-२६७/१३४-१३७ | १/५१३-५३६/२८६-३०६/१३३|३| वृद्धि हानि | २/३६१४००/१६-२०१ | ३/६३३-६५६/४५५-४७३ | ४/१६४/१६५
१/६२१/३६५-३६६ १३६/७१-७३/
१११
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६. मोहनीय सत्कर्मिक बन्धकोंकी ओघ आदेश प्ररूपणा-कपा/प..../.../प....) १ | दोष व पेज | ११३८४-३८/१६६-४०४॥ | २/२४,२८ आदि स्थान ।
२/२६२-६६६/३२६-३३४ सत्ता असत्ताके३ ज.उ. पद २/८१-८०/६०-७१ २/१७६-१८२/१६५-१७१ / ३/११६-१४१/६८-८० ।३/६२२-१४७/३६८-३८७ ४ भुजगारादि पद
२४४५४-४५६/०६-४१४ ३/२०६-२१२/११७-१२०४/११८-१२५/६०-६७ |५| वृद्धि हानि
| २/५१८-५२४/४६५-४७०1३/३०८-३१८/१६६-१७५/४/३७५-४००/२३२-२५० । ७. अन्य प्ररूपणाओंकी सूची१। पाँच शरीरके योग्य पुद्गल स्कन्धों की ज. उ. संघातन परिशातन कृतिके स्वामियों की अपेक्षा-दे. ध.१/३७०-३८० । २. पाँच शरीरके स्वामियों के २,३,४ आदि भंगोंकी अपेक्षा
-दे. ध. १४/२५६-२६७ । ३/२३ प्रकार वर्गणाओका जघन्य स्पर्श
-दे.ध. १४/१४६/२०।
/१०३-१२१/१५-७७ १ १६/१०३-१०४ १८१/१२१-१२२
३/३५६-३६७/२२७-२३२ १/४६७-५००/२६१-२६३ ५/१४-५५७/३२१-३२४
३. स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ
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