SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 476
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थिति ३. उत्कृष्ट व जघन्य स्थिति, प्रदेश व अनुभाग के बन्धककी प्ररूपणा - १. सारणी में प्रयुक्त संकेतोंका अर्थ १. मारणान्तिक समुद्धात रहित सप्तम पृथिवी की ५०० धनुष अवगाहनावाला अन्तिम समयवर्ती गुणित कर्माशिक नारकी । २. सप्तम पृथिवो के प्रति मारणान्तिक समुद्धात गत महामत्स्य । ३. सूक्ष्म साम्पराय के अन्तिम समय तथा आगे के सर्वस्थान । ४. द्विचरम वा त्रिरम समयके पहले अन्तर्मुहूर्त काल तक स्थित सप्तम पृथिवीका मिथ्यादृष्टि नारको। पूर्ण समुदात ५. सी ६. पूर्वको टिके त्रिभाग प्रमाण आयुकी आबाधा करके सप्तम नरकको आयु बाँधनेवाला महामत्स्य । ७. उत्कृष्ट मनुष्यायु सहित आयु बन्धके प्रथम समय गत प्रमत्त संयत / ७-१९ गुणस्थान, मनुष्य यदि पूर्व कोटिके वि त्रिभाग में देवायु क्र. प्रकृति १ हानावरणी दर्शनावरणी वेदनीय मोहनीय अयु नाम गोत्र अन्तराय प्रकृति अष्ट कर्म प्रमाण Jain Education International २००-४४६ ३६५ २६६-४४६ ३६५ ४०५ ४०४ ४०४ ३६५ मूल वा उत्तर द्रव्य प्रदेश बन्ध मुल उत्तर ध. १२/४, २, १३, ७/पृ. सं. ज. उ w: aw or or १० ६ १३ ११ " ६ विषय १ ४६९ १ ६ १ 91 ४. अन्य प्ररूपणाओं सम्बन्धी सूची - ( म.पू.सं.सं.) सन्निकर्ष ३८१ 19 २१५ ३१७ ३६५ ८ ४०५ ४०४ ४०४ ३६५ मंग विषय सन्निकर्ष को बाँधे । ८. जिसमवर्ती आहारक व उद्भवस्थ होनेके तृतीय समय में वर्तमान जघन्य योगवाला सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्त जीव । १. क्षपित कर्माशिक क्षीणकयागी १२ गुणस्थानके अन्तिम समयमत संयत । क्षेत्र बन्धक जीव की अवगाहना प्रमाण ज. १०. चरम समयवर्ती क्षपित कर्माशिक अयोग केवली । ११. चरम समयवर्ती सामान्य कर्माशिक अयोग केवली । १२. असातावेदनीयके उदय सहित क्षपक श्रेणीपर चढ़ा हुआ अन्तिम समयवर्ती अयोग केवली । ३/ १३. संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक, ५०० धनुष अवगाहनावाला यदि तिर्यंच आयु बाँधे, नारकी जीव तेतीस सागर के भीतर असं - गुणहानियोंको गलाकर दीपशिखाकार स्थित (६.१२ / ४६२/१७)। 1 १४. तिचा बाँधनेवाला अपर्याप्त । १२. क्षति १६. बादर तेज व वायुकायिक पर्याप्त । २/ ३/ ८ 2 99 " 11 17 ज. उ. " १२६-१०४ ७७-८३ १-१४१ १-१०२ उ. १३५-१४० 44 ४४२-४४८ ३ २०२-२०४ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश 11 ११ २ ३८७ ११ ३६५ 19 ५ ४०१ ११ 11 २ ३६५ ह १ ५ ४०६ १० ४०४ ११ ४०४ काल बन्धकी स्थिति २ ३६५ सर्वविशुद्ध सूक्ष्म निगोद त्रि परमसमय स्थित । प्रमाण भिन्न-भिन्न पदोंकी अपेक्षा प्रमाण स्थिति For Private & Personal Use Only 15 ज m ३८ " ह २६६-३०१ २ /-,, ९५७-१५६ उ 34.00 १६१ १ 99 ६. स्थितिबन्ध प्ररूपणा 67 भुजगारादि पद १ 31 प्रमाण ज. ३६१ ३६५ ४०२ ३६५ ४११ ४०४ ४०४ ३६५ भाव अनुभाग ૧/ m = ∞ w 20 x १२ १४ १५ १६ ६ भंगविचय नोट - साता असता के द्वित्रिचतु स्थानीय अनुभाग बन्धक जीवों की अपेक्षा ज. उ. स्थिति बन्धका स्वामित्व व उनका अल्पबहुत्व - (ध. ११ / ३१६-३३२ ) _३८३-३८५__ ११५ ६१४-११५ ३-४४५-४४६ उ ४ 11 संख्यात भागादि वृद्धि ३ ४ ७ . ३ ११ ४ www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy