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________________ जघन्य Jain Education International स्थिति काल स्वामित्व प्रकृति काल स्वामित्व ध,4/. ध.१२/पृ.| आत्राधा स्थिति पं.सं./प्रा./गा गुण स्थान विवरण | गोमट्टसार । आवाधा | स्थिति 5 मूलाचार ध,६/पृ. 11/IF/ विवरण मोहनीय | सहस्र वर्ष का.का.सा. ७० ४३२१ (विशेष दे, स्थिति/४/३) | अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त | ४३४) अनिवृत्तिकरण नादर साम्पराय दर्शनमोहनीयमिथ्यात्व प्र. १६०० चारों गतिमें उ. व म. संक्लेश १/७ सा.* १८४४३४ सर्वविशुद्ध बा. एकेन्द्रिय प. " सत्त्व १८७ सम्यक्त्व प्र. सम्य.मि. चारित्र मोहनीय ल सा २२८/२७६ ४६० जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश १-४ अन. चतु. १६० ... अन्तर्मुहूर्त | ४/७ सा. १८८, सब विशुद्ध मा. एकेन्द्रि .प. For Private & Personal Use Only चारों गति के उत्तम मध्यम संक्लेश अनिवृत्ति करण क्षपक १२ प्रत्या. चतु. १३ | सं. क्रोध १४. सं.मान १५ | सं. माया ९६ | सं.लोभ नोकषायहास्य रति २ मास १मास १पक्ष अन्तर्मुहूर्त १८३ . (सूक्ष्म साम्पराय म्. आ.) २/७ सा* १९२ सर्व विशुद्ध बा. एकेन्द्रि, प.. अति शोक ६. स्थितिबन्ध प्ररूपणा भय जुगुप्सा www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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