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________________ स्कंध ४४७ २. पुद्गल बन्ध निर्देश रूप ही है। प्रश्न-जिनके संख्यात असंख्यात योजनका अन्तर है, अनन्तानन्त परमाणुओंके समुदायसे निष्पन्न होकर भी को। तिनका एक स्कन्ध कैसे संभवता है। उत्तर-जो मध्यमें सूक्ष्म स्कन्ध चाक्षुष होता है और कोई अचाक्षुष। उसमें जो अचाक्षुष परमाणू हैं, सो वे विमान आदि और सूक्ष्म परमाणू इन सबका एक स्कन्ध है वह चाक्षुष कैसे होता है इसी मातके मतलानेके लिए बंधान है, इसलिए अन्तर नहीं है एक स्कन्ध है । इरा एक स्कन्ध- यह कहा है कि भेद और संघातसे चाक्षुष स्कन्ध होता है, का नाम महास्कन्ध है। केवल भेदसे नहीं, यह सूत्रका अभिप्राय है। प्रश्न -इसका क्या द्र. सं./टी./२/चूलिका/७/२ पुद्गलद्रव्यं पुनर्लोकरूपमहास्कन्धापेक्षया कारण है। उत्तर-आगे उसी कारणको कहते हैं--सूक्ष्म परिणामवाले सर्वगत', दोषपुगतापेक्षया सर्वगतं न भवति। -पुदगल द्रव्य लोक स्कन्धका भेद होनेपर वह अपनी सूक्ष्मताको नहीं छोड़ता व्यापक महा स्कन्धकी अपेक्षा सर्वगत हैं और शेष पुद्गलोकी अपेक्षा इसलिए उसमें अचाक्षुषपना ही रहता है। एक दूसरा सूक्ष्म परिणाम असर्वगत हैं। वाला स्कन्ध है जिसका यद्यपि भेद हुआ तथापि उसका दूसरे दे. परमाणु /२/७ ( महास्कन्धमें कुछ परमाणु त्रिकाल अचल हैं) संघातसे संयोग हो गया अतः सूक्ष्मपना निकलकर उसमें स्थूल पनेकी दे. वर्गणा/२/२ (जघन्य वर्गणासे लेकर महास्कन्ध पर्यन्त वर्गणाओंकी उत्पत्ति हो जाती है और इसलिए वह चाक्षुष हो जाता है । (रा. क्रमिक वृद्धि) वा./५/२८/- /RR) * वनस्पति स्कन्ध निर्देश-दे. वनस्पति/३१७ । * परमाणुओंकी हीनाधिकतासे स्कन्ध मोटा व छोटा नहीं होता। -दे. सूक्ष्म/३/४ । ५. स्कन्धोंकी उत्पत्तिका कारण * स्कन्धके प्रदेशोंमें गुणों सम्बन्धी । -दे, पुदगल । त. सु./५/२६ भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते ।२६॥ स. सि./५/२६/२६८/५ भेदारसंघाताइभेदसंघाताभ्यां च उत्पद्यन्त ७. शब्द गन्ध आदि भेद स्कन्धके हैं परमाणुके नहीं इति । तद्यथा-द्वयोः परमाण्वोः संघाताद द्विप्रदेशः स्कन्ध उत्पद्यते। द्विप्रदेशस्याणोश्च त्रयाणा वा अणूनी संघातान्त्रिप्रदेशः । रा. वा./५/२४/२४/४६०/२५ शब्दादयस्तु स्कन्धानामेव व्यक्तिरूपेण द्वयोर्बिप्रदेशयोस्त्रिप्रदेशस्याणोश्च चतुर्णा वा अणून संघाताश्चतुः- भवन्ति सौम्यवा इत्येतस्य विशेषस्य प्रतिपत्त्यर्थ पृथग्योगकरणम्। प्रदेशः। एवं संख्येयासंख्येयानन्तानामनन्तानन्तानां च संघाता -शब्द आदि (अर्थात शब्द बन्ध, सौम्य, स्थौल्य, संस्थान, भेद, त्तावत्प्रदेशः । एषामेव भेदात्तावद् द्विप्रदेशपर्यन्ताः स्कन्धा उत्प- तम, और छाया व आतप उद्योत ये सब) व्यक्त रूपसे स्कन्धोंके ही द्यन्ते । एवं भेदसंघाताभ्यामेकसमयिकाभ्यां द्विप्रदेशादयः स्कन्धा होते है सौक्षम्यको छोड़कर, इस विशेषताको बतानेके लिए पृथक उत्पद्यन्ते। अन्यतो भेदेनान्यस्य संघातेनेति । एवं स्कन्धानामु- सूत्र बनाया है। पत्तिहेतुरुक्तः। भेदसे, संघातसे तथा भेद और संघात दोनोंसे ८. कर्म स्कन्ध सूक्ष्म है स्थूल नहीं स्कन्ध उत्पन्न होते हैं। प्रश्न-भेद और संघात दो हैं। इसलिए सूत्रमें द्विवचन होना चाहिए ? उत्तर-दो परमाणुओंके संघातसे स.सि./८/२४/४०२/११ कर्मग्रहण...योग्याः पुद्गलाः सूक्ष्माःन स्थूलाः दो प्रदेशबाला स्कन्ध उत्पन्न होता है। दो प्रदेशवाले स्कन्ध और इति =कर्म रूपसे ग्रहण योग्य पुद्गल सूक्ष्म होते हैं स्थूल नहीं होते। अणुके संघातसे या तीन अणुओंके संघातसे तीन प्रदेशवाला स्कन्ध (रा. वा./८/२४/४/१८५/१७) उत्पन्न होता है। दो प्रदेशवाले दो स्कन्धोंके संघातसे, तीन प्रदेशवाले * एक जातिके स्कन्ध दूसरी जाति रूप परिणमन नहीं स्कन्ध और अणुके संघातसे या चार अणुओंके स्कन्धोंके संघातसे. चार प्रदेशवाला स्कन्ध उत्पन्न होता है । इस प्रकार संख्यात, करते । -दे. वर्गणा/२/८ । असंख्यात, अनन्त और अनन्तानन्त अणुओंके संघातसे उतने- * अनन्तों स्कन्धोंका लोक अवस्थान व अवगाह । उतने प्रदेशोंवाले स्कन्ध उत्पन्न होते हैं। तथा इन्हीं संख्यात आदि परमाणुवाले स्कन्धोंके भेदसे दो प्रदेशवाले स्कन्ध तकं -दे. आकाश/३/ स्कन्ध उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार एक समयमें होनेवाले भेद और संघात इन दोनोंसे दो प्रदेशवाले आदि स्कन्ध उत्पन्न होते २. पुद्गल बन्ध निर्देश हैं। तात्पर्य यह है कि जब अन्य स्कन्धसे भेद होता है और अन्यका संघात, तब एक साथ भेद और संघात इन दोनोंसे भी स्कन्धकी १. पुद्गल बन्धका लक्षण उत्पत्ति होती है। इस प्रकार स्कन्धोंकी उत्पत्तिका कारण कहा। रा.वा./२/१०/२/१२४/२४ द्रव्यबन्धः कर्मनोकर्मपरिणत: प्रद्धगलद्रव्य(रा. वा./५/२६/२-१/४६३/२६)। विषयः । नोकर्म रूपसे परिणत पुगलकर्म रूप द्रव्यबन्ध है। दे, वर्गणा/२/३,८,९ (ऊपरको वर्गणाओंके भेदसे तथा नीचेकी वर्गणाओं ध. १३/५.१,८२/३४७/६,१२ दो तिग्णि आदि पोग्गलाणं जो समवाओ के संघातसे उत्पन्न होनेका स्पष्टीकरण ) सो पोग्गलबंधो णाम ।। जेण गिद्धहुक्खादिगुणेण पोग्गलाणे बंधो ६. स्कंधोंमें चाक्षुष अचाक्षुष विभाग व उनकी उत्पत्ति होदि सो पोग्गलबंधो णाम।-दो, तीन आदि पुदगलों का जो समवाय सम्बन्ध होता है वह पुदगल बुध कहलाता है ।...जिस स्निग्ध और स.सू./५/२८ भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषः/२८ । रूक्ष आदि गुणके कारण पुद्गलोंका बन्ध होता है उसकी पुदगलबन्ध स.सि./५/२८/२६६/७ अनन्तानन्तपरमाणुसमुदयनिष्पाद्योऽपि कश्चि. संज्ञा है। च्चाक्षुषः कश्चिदचाक्षुषः । तत्र योऽचाक्षुषः स कथं चाक्षुषो भवतीतिप्र.सा./त.प्र./१७७ यस्तावदत्र कर्मणा स्निग्ध रूक्षत्वस्पर्शविशेषैरेकस्वचेदुच्यते-भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषः । न भेदिति । कात्रोपपत्तिरिति परिणामः स केवलपुदगलमन्धः। -कर्मोका जो स्निग्धतारूक्षता रूप चेत् । ब्रमः सूक्ष्मपरिणामस्य स्कन्धस्य भेदे सौम्यापरित्यागाद- स्पर्शविशेषों के साथ एकत्व परिणाम है सो केवल पुदगल बन्ध है। चाक्षुषत्वमेव । सौम्यपरिणतः पुनरपरः सत्यपि तदभेदेऽन्य- द्र.सं./टी./१६/५२/१२ मृरिपण्डादिरूपेण योऽसौ महधामन्धः स केवल: संघातान्तरसंयोगात्सौम्यपरिणामोपरमे स्थौग्योस्पती चाक्षुषो पुदगलगन्धः। -मिट्टी आदिके पिण्ड रूप जो मष्तृत प्रकारका बन्ध भवति । -भेद और संघातसे चाक्षुष स्कन्ध उत्पन्न होता है ।२८। है वह तो केवल पुगलबन्ध है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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