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________________ सूक्ष्म ४. सिद्धोंके सूक्ष्मत्व गुणका लक्षण प्र.सं./टी./१४/४२/१२ सूक्ष्मातीन्द्रिय ज्ञानविषयस्यासिद्धस्वरूपस्य सूक्ष्मत्वं भण्यरी सूक्ष्म अतीन्द्रिय केवलज्ञानका विषय होनेके कारण सिद्धोंके स्वरूपको अतीन्द्रिय कहा है । प. प्र./टी./१/६१/६२/२] अतीन्द्रियज्ञानविषयं सूक्ष्मत्वम् तीय । अतीन्द्रिय ज्ञानका होने है। २. बादरके भेद व लक्षण ● बादर जीवोंका निर्देश * दे, । इद्रिय काय, समास ४३९ - १. बादर व स्थूल सामान्यका लक्षण १. सप्रतिघात स.सि./१/१२/२००/१० वादरास्तावत्सतिरीरामादर जीवों का शरीर दो प्रतिषात सहित होता है (रा. बा./५/१५/३/४५८/१०) ध. १/१.१,४५/२०६/७ बादरः स्थूलः सप्रतिघातः कायो येषां ते बादरकायाः । - जिन जीवोंका शरीर बादर, स्थूल अर्थात प्रतिघात सहित होता है उन्हें नादर काय कहते हैं। घ. ३/२.२ ८०/३३९/१ तदो पहियमाणसरीरो बादरी जिनका शरीर प्रतिघात युक्त है वे बादर हैं । गो. जी./मू./१८३...घादसरीरं थूलं । जो दूसरोंको रोके, तथा दूसरों से स्वयं रुके सो स्थूल कहलाता है । २. इन्द्रिय ग्रा स.सि./२/२०/२१/९० सौम्यपरिणामोचर मे स्योन्योती बाष भवति । - ( सूक्ष्म स्कन्धमें से) सूक्ष्मपना निकल कर स्थूलपनेकी उत्पत्ति हो जाती है और इसलिए वह चाटुप हो जाता है। रा.मा./५/२४/१/४८५/१२ स्थूलते परिगृहयति, स्थूण्यतेऽसौ स्थूलतेऽनेन, स्थूलनमात्रं वा स्थूलः स्थूलस्य भावः कर्म वा स्वीच्यम् । - जो स्थूल होता है, बढ़ता है या जिसके द्वारा स्थूलन होता है या स्थूलन मात्रको स्थूल कहते हैं। स्थूलका भाव या कर्म स्थौल्य है । प्र.सा./ता./२६८/२३०/१४ योग्य मंदिर जो इन्द्रियोंके = ग्रहके योग्य होते हैं वे मादर है। ३. स्थूल के भेद व उनके लक्षण स.सि./५/२४/२६४/११ स्वीयमिदि द्विविधमन्यापेक्षिकं ि रात्रान्यं जगह पापिनि महास्कन्धे आपेक्षिकं भादराम कवितालादिषु । स्थोग्य भी दो प्रकार का है- अन्त्य और आपेक्षिक । जगव्यापी महास्कन्ध में अन्त्य स्थोग्य है। तथा बेर, आँवला, और बेताल आदिमें आपेक्षिक स्थोग्य है । (रा. वा./१/२४/११/४८८/३३) । Jain Education International ४. बादर नामकर्मका लक्षण स.सि./ ८ / ११ / २१२ / २ अन्यवाधाकरशरीरकारणं नादरनाम - अन्य बाघाकर शरोरका निर्वर्तक कर्म मादर नामकर्म है। (रा.वा./८/ ११/२०/५०१ / १०) (गो.क./जी.प्र./१३/३० /१३)। घ. १/१.११.२०६२/- जस्स कम्मस्य उदरण जीवो नारे उप्पाद तस्स कम्मरस बादरमिदि सण्णा । - जिस कर्मके उदयसे जीव बादर काय बालोंमें उत्पन्न होता है। उस कर्म की 'बादर' यह संज्ञा है । (ध. १३/५.५,१०१/३६५/६ ) । ५. बादर कथनका लक्षण रहस्य पूर्ण चिट्ठी । अपने तथा अन्धके जाननेमें आ सके ऐसे भावका कथन स्थूल है । · ३. सूक्ष्मत्व व वादरत्व निर्देश ३. सूक्ष्मत्व व बादरत्व निर्देश १. सूक्ष्म व बादर में प्रतिघात सम्बन्धी विचार t स.सि./२/४०/९६२/६ स नास्त्यनयोरित्यप्रतिघाते; सूक्ष्मपरिगामात पिण्डे तेजोऽनुप्रवेशवतेजकार्मणोर्नास्तिमपट लादिषु व्याघातः । इन दोनों ( कार्मण व तैजस) शरीरोंका इस प्रकारका प्रतिघात नहीं होता इसलिए वे प्रतिघात रहित हैं। जिस प्रकार सूक्ष्म होनेसे अग्नि ( लोहे के गोले में ) प्रवेश कर जाती है उसी प्रकार तैजस और कार्मण शरीरका वज्रपटलादिकमें भी व्याघात नहीं होता रामा / २/४०/९४१ / ६)। रा.वा./२/१४/२/५/१४ कर्ष सशरीरस्यात्मनोऽपि तत्वमिति व दृष्टादश्यते हि कोटिमात्र छिद्ररहिते मनमहासमितितले वज्रमयकपाटे बहिः समन्तात् वज्रलेपलिप्ते अपवरके देवदत्तस्य मृतस्य मूर्तिमन् नावरणादिकर्मले सकार्मणशरीरसंबधिरवेऽपि गृहमभिस्यैव निर्गमनम् तथा सूक्ष्मनिगोदानामप्यप्रतिघातित्व वेदितव्यम् । प्रश्न- शरीर सहित आत्माके अप्रतिघातपना कैसे है ! उत्तर- यह मात अनुभव सिद्ध है। निश्द्रि सोहके मकानरी जिसमें बचके किवाड़ लगे हों और यचशेप भी जिसमें किया गया हो, मर कर जीव कार्मणशरीरके साथ निकल जाता है। यह कार्मण वशरीर मूर्तिमान् ज्ञानावरणादि कर्मोंका पिण्ड है। तेजस् शरीर भी इसके साथ सदा रहता है। मरण कालमें इन दोनों शरीरोंके साथ जीव वज्रमय कमरे से निकल जाता है । और कमरे में छेद नहीं होता। इस तरह सुक्ष्म निगोद जीवों का शरीर भी अतिपाती है। २. सूक्ष्म व बादरमें चाक्षुषत्व सम्बन्धी विचार ६. १९/९.१.२४/२४१-२६०/६ भादराद स्थूलपर्यायः स्थूलत्वं पानियतस् ततो न ज्ञायते के स्थलाकृति चारचे अचा स्थूतानां सूक्ष्मतो अक्षुर्याह्माणामपि बादरले सूक्ष्मवादराणामविशेषः स्यादिति । २४ | स्थूलाश्च भवन्ति चक्षुर्ग्राह्याश्च न भवन्ति, को विरोधः स्यात् । प्रश्न- जो चक्षु इन्द्रियके द्वारा ग्रहण करने योग्य हैं, वे स्थूल हैं । यदि ऐसा कहा जावे सो भी नहीं बनता है, क्योंकि ऐसा माननेपर जो भी इन्द्रियके द्वारा प्रह करने योग्य नहीं हैं उन्हें सूक्ष्मपनेको शप्ति हो जायेगी और जिनका चक्षु इन्द्रियसे ग्रहण नहीं हो सकता है ऐसे जीवोंको मादर मान लेनेपर सूक्ष्म और बादरोंमें कोई भेद नहीं रह जाता उत्तर-ऐसा नहीं है, क्योंकि स्थूल तो हों और पक्षुसे ग्रहण करने योग्य न हों, इस कथन में क्या विरोध है 1 ( अर्थात् कुछ नहीं ) । ३. सूक्ष्म व बादरमें अवगाहना सम्बन्धी विचार घ. १/१,१.२४/२०-२५१/४ सूक्ष्मजीवशरीरादसंख्येवर्ण शरीरं मदर तो जीवाश्च मोदराः । ततोऽसंख्येयगुणहीनं शरीर सूक्ष्मस्तद्वन्तो जीवाश्च सुहमा उपचारादिव्यपि कल्पना ना सर्वजधन्यबादराङ्गात्सूक्ष्म कर्म निर्वर्तितस्य सूक्ष्मशरीरस्यासंख्येयगुणतोऽनेकान्तात् । २५० तस्मात् (सूक्ष्मात् ) अन्य संख्येयगुणदीनस्य मादरकर्म नितितस्य शरीरस्योपलम्भात् प्रश्न--- सूक्ष्म शरीरसे असंख्यात गुणी अधिक अवगाहनानाले शरीरको मादर कहते है. और उस शरीर से युक्त जीवोंको उपचारसे बादर जीव कहते हैं। अथवा मादर शरीरसे असंख्यात गुणी होन अनगाहनानाले शरीरको सूक्ष्म कहते हैं और उस शरीरसे युक्त जोनको उपचार से सूक्ष्म जीव कहते हैं : उत्तर - यह कल्पना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, सबसे जघन्य बादर शरीरसे सूक्ष्म नामकर्मके द्वारा निर्मित सूक्ष्म शरीरकी अवगाहना असंख्यातगुनी होनेसे ऊपर के कथनमें दोष आता है | २५० सूक्ष्म शरीर से भी असंख्यात गुणी हीन अवगाहनावाले और बादर जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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