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________________ सिद्धान्तसागर ४२८ सुन्दरी *तर्क व सिद्धान्त रूप कथन पद्धति-दे. पद्धति । सिद्धान्तसार-१. भावसेन त्रैविद्य (ई. श. १३ मध्य) कृत ७०० श्लोक प्रमाण ग्रन्ध जिस पर प्रभाचन्द नं.६ (ई. श.१३ उस)कृत एक कन्नड़ टीका है। (ती./१/४५१)। २. जिनचन्द्र (वि. १५०७१५७१) कृत ७६ गाथा प्रमाण, जीवकाण्ड जिस पर ज्ञानभूषण (बि. १५३४-१५६१) कृत भाष्य है। (.११४९३)। सिद्धान्तसारसंग्रह-आ. नरेन्द्रसेन (ई. १०६८) द्वारा विरचित तत्त्वार्थ प्ररूपक संस्कृत छन्द बद्ध ग्रन्थ है। इसमें २२ अधिकार हैं तथा कुल १९२४ श्लोक प्रमाण है। (ती./२/४३३) । सिद्धान्तसेन-द्रविडसंघकी गुवविलीके अनुसार यह गोणसेनके गुरु तथा अनन्तवीर्यके दादा गुरु थे । ( समय. ई.६४०-१०००)-दे. इतिहास/६/३। सिद्धाभदेव भूतकालीन आठवें तीर्थकर-दे. तीर्थंकर/५ । सिद्धायतन कूट-वर्षधर पर्वत, गजदन्त, वक्षारगिरि आदि पर्वतोंमें प्रत्येक पर एक-एक सिद्धांयतन कूट है, जिसपर एक-एक जिनमन्दिर स्थित है।-दे. लोकाश। सिद्धाथ-१.अपर नाम सिद्वायतन-दे सिद्धायतन । २. विजयार्ध की उत्तर श्रेणीका एक नगर-दे विद्याधर । ३. मानुषोत्तर पर्वतस्थ अब्जनमूलकूटका स्वामी भवनवासी सुपर्ण कुमार देव-दै. लोक/१०. ४.म.पू./६६/श्लो. कौशाम्बी नगरीके राजा पार्थिवके पुत्र थे। (४) अन्तमें दीक्षा ले तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध किया (१२-१५) तथा समाधिमरणकर अपराजित विमानमें अहमिन्द्र हुआ (१६) यह नमिनाथ भगवानका पूर्वका दूसरा भव है।-दे, नमिनाथ। ५. ह. पु./ सर्ग./श्लो. मलदेव (कृष्णका भाई ) का छोटा भाई था। यदि मैं देव हुआ तो तुम्हें सम्बोधूगा मलदेवसे यह प्रतिज्ञा कर दीक्षा ग्रहण की (६९/४१) स्ववचनानुसार स्वर्गसे आकर कृष्ण की मृत्युपर मलदेवको सम्बोधा (६३/६१-७१) ६. भगवान महावीर के पिता-दे सीर्थ कर। ७. एक क्षुल्लक था जिसने लब व कुशको शिक्षा दी थी (प.पू./१००/ ७. तावतार की पट्टावली के अनुसार आप नागसेन के शिष्य और धृतिषण के गुरु थे। ११ ग तथा १० पूर्वधारी थे। समयबी. नि. २४७-२८४ । तृतीय दृष्टि से पी. नि. ३०७-३२४ (दे. सिद्धार्था-एक विद्या-दे. 'विद्या'। इतिहास/४/४)। सिद्धि-सि वि./म./१२/६/सिद्धिश्चेदुपलब्धिमात्रम् । - उपलब्धि मात्रको सिद्धि कहते हैं। सिद्धिप्रिय स्तोत्र-बा- पूज्यपाद (ई. श. ५) कृत, २६ संस्कृत पदों मैं बद्ध चतुर्विशतिस्तव । (जै./२/२८०)। सिद्धिविनिश्चय-आ. अकलंक भट्ट (ई. ६२००६८०) कृत यह न्यायविषयक ग्रन्थ संस्कृत पद्य बद्ध है। इसपर रचयिता कृत ही एक स्वोपज्ञ वृत्ति है। इसमें १२ अधिकार हैं। मूल ग्रन्थमें कुल २८ श्लोक हैं । इस ग्रन्थ पर आ. अनन्तबीय (ई.१०५. १०२५) कृत एक संस्कृत टीका है । यह सर्व गद्य पद्य व टीका मिलकर २०४३०-८ साइज़के मुद्रित ६५० पृष्ठ प्रमाण है। (ती./२/३०६) सिरा-औदारिक शरीरमें सिराओं का प्रमाण-दे औदारिक//७)। सिरिपाल चरिउ-१. कवि राधु(दि.१४५७-१४५८) कृत श्रीपाल मैना सुन्दरी आख्याना अपभ्रंश काव्यं । (ती./४/२03) ब्रह्म दामोदर (वि. स. १६ उत्तरार्ध) कृत अपभ्रंश काव्य । (ती./ ४/१६६)। साता-१. विदेह क्षेत्रकी प्रधान नदी-दे. लोक/१/११ । २. विदेह क्षेत्रस्थ एक कुण्ड जिसमें से सीता नदी निकलती है-दे, लोक; 11/१०।३नील पर्वतस्थ एक कूट-दे.लोक/५/४। ४.सीता कुण्ड व सीता कूटकीस्वामिनीदेवी-दे.लोक/३/१०:५. माल्यवान् पर्वतस्थ एक कूट-दे. लोक/१/४६.रुचक पर्वत निवासिनीदिवकुमारी देवी -दे. लोक/५/१३ । ७. वर्तमान पामीर प्रदेशके पूर्व से निकली हुई यारकन्द नदी है। चातुर्तीपक भूगोलके अनुसार यह मेरुके पूर्ववर्ती भद्राश्व महाद्वीपकी नदी है। चीनी लोग इसे अब तक सोतो कहते हैं। यह काराकोरमके शीतान नामक स्कन्धसे निकल कर पामीरके पूर्व की ओर चीनी तुर्किस्तान में चली गयी है । उक्त शीतान पुराणोंकी शीतान्त है। तकलामकोनकी मरुभूमिमें से होती हुई एक आध और नदियोंके मिल जाने पर 'तारीम' नाम धारण करके लोपनूप नामक खारी झीलमें जिसका विस्तार आजसे कहीं अधिक था जा गिरती है। इसका वर्णन वायु पुराणमें लिखा है-'कृत्वा द्विधा सिंधुमरून सीतागात पश्चिमोदधिम् (४७, ४३) सिन्धुमरु तकलामकानके लिए उपयुक्त नाम है। क्योंकि इसका बालू समुद्रवत् दीखता है। पश्चिमोदधिसे लोनपुर झीलका तात्पर्य है । (ज.प./प्र. १४० A N.Upadhye; H.L.Jain) सीता-प.पु./सर्ग./श्लोक-राजा जनककी पुत्री (२६/१२१) स्वयंवरमें रामके द्वारा वरी गयी ( २८/२४६) वनवासमें रामके संग गयी ( ३१/१६१ ) वहाँपर राम लक्ष्मणकी अनुपस्थितिमें रावण इसे हरकर ले गया (४४/८३-८४)। रावणके द्वारा अनेकों भय देनेपर अपने शीलसे तनिक भी विचलित न होना (४६/८२) रावणके मारे जाने पर सीता रामसे मिली (६/४६) । अयोध्या लौटने पर लोकापवादसे राम द्वारा सीताका परित्याग (१७/१०८१)। सीताकी अग्नि परीक्षा होना (१०५/२६)। विरक्त हो दीक्षित हो गयी। १२ वर्ष पर्यन्त तपकर समाधिमरण किया। तथा सोलहवें स्वर्गमें देवेन्द्र हुई (१०६/१७-१८)। सीतोदा-१. विदेह क्षेत्रकी प्रसिद्ध नदी-दे. लोक/३/११/२. विदेह क्षेत्रस्थ एक कुण्ड जिसमेंसे सीतोदा नदी निकलती है-दे.लोक/३/१०। ३. सीतोदा कूट व सीतोदा कुण्डकीस्वामिनी देवी-दे. लोक/२/१०% ४. विद्य प्रभविजयाका एक कूट-दे, लोक/१/४५.अपर विदेहस्थ एक विभंगा नदी-दे. लोका। सादियाचतीपके भद्राश्व व उत्तरकुरु और सोदिया एक ही मात है । (ज.प./प्र. १४० A.N up; H.L.Jain सोमकरभूतकालीन पञ्चम कुलकर-दे, शलाकापुरुष/४ । सीमंतक- प्रथम नरकका प्रथम पटल-दे. नरक/तयारत्न प्रभा। सीमंधर-भूतकालीन छठे कुलकर-दे, शलाकापुरुष/६ । सीमा-Boundary, (ध ५/प्र. २८)। सीमातीतसंख्या -Transfinite number (ध.५/प्र. २८)। गयुन-एक चीनी यात्री था। ई. ५२० में इसने भारतकी यात्रा __ की थी। (ति. ५/प्र. १४ हीरालाल )। सुन्दर-कुण्डल पर्वतस्थ स्फटिक कूटका स्वामी नागेन्द्र-देव. दे, लोक/५/१२ सुन्दरदास-इनको सन्त सुन्दरदास कहते थे। पं. बनारसीदास इनकी बहुत प्रशंसा करते हैं। समय-वि. १६५३-१७४६ । (हि. जै. सा.१/११७/कामता)। सुन्दरी-भगवान ऋषभदेवकी पुत्री थी। विरक्त होकर कुवारीने दीक्षा ग्रहण की। (ह.पु/१२/४२)। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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