SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 409
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधारणीकृत ४०२ साधु ४ शक्तिः ।स्व व परके समान, अपमान और समानासमान ऐसे तीन प्रकारके भावोंकी धारणास्वरूप साधारण, असाधारण और साधारणासाधारण धर्मत्व शक्ति है। ३. साधारण व असाधारण हेत्वाभास श्लो. वा./४/भाषाकार/१/३३/न्या./२७३/४२५/१३.१८ यः सपक्षे विपक्षे च भवेत् साधारणस्तु सः ।...यस्तुभयस्माद्वयावृत्तः स वसाधारणो मतः । व्यभिचारी हेत्वाभास तीन प्रकारका है-साधारण, असाधारण और अनुपसंहारी। तहाँ जो हेतु सपक्ष व विपक्ष दोनों में रह जाता है वह साधारण है, और जो हेतु सपक्ष और विपक्ष दोनोंमें नहीं ठहरता वह असाधारण है। ४. अन्य सम्बन्धित विषय १. साधारण व असाधारण गुण, निमित्त व पारिणामिक भाव -दे. वह वह नाम। २, वसतिकाका एक दोष-दे. वसतिका ३. साधारण नामकर्म व साधारण वनस्पति-दे. वनस्पति/४। साधारणीकृत-Generalization. (ध.५/प्र. २८)। साधु-पंच महावत पंच समिति आदि २८ मूलगुणों रूप सकल चारित्रको पालनेवाला निग्रन्थ मुनि ही साधु संज्ञाको प्राप्त है । परन्तु उसमें भी आरम शुद्धि प्रधान है, जिसके बिना वह नग्न होते हुए भी साधु नहीं कहा जा सकता। पुलाक बकुश आदि पाँच भेद ऐसे ही कुछ भ्रष्ट साधुओंका परिचय देते हैं। आचार्य, उपाध्याय व साधु तीनों ही साधुपनेकी अपेक्षा समान हैं। अन्तर केवल संघकृत उपाधिके कारण है। व्यवहार साधुके १० स्थिति कल्प । सल्लेखनागत साधुकी १२ प्रतिमा -दे. सल्लेखना/४/११/२। आहार, विहार, भिक्षा, प्रव्रज्या, वसतिका, संस्तर आदि।-दे. वह वह नाम। दीक्षासे निर्वाण पर्यन्तको चर्या-दे, संस्कार/२ । अन्य कर्तव्य। साधुकी दिनचर्या-दे. कृतिकर्म/।। एक करवटसे अत्यन्त अल्प निद्रा-दे. निद्रा। मूलगुणोंके मूल्यपर उत्तर गुणोंकी रक्षा योग्य नहीं। मूलगुणोंका अखण्ड पालना आवश्यक है। शरीर संस्कारका कड़ा निषेध । साधुके लिए कुछ निषिद्ध कार्य । परिग्रह व अन्य अपवाद जनक क्रियाएँ तथा उनका समन्वय।-दे. अपवाद/३,४ । प्रमादवश लगनेवाले दोषोंकी व उसकी शुभ क्रियाओंकी सीमा-दे, संयत/३ । साधु व गृहस्थ धर्ममें अन्तर-दे. संयम/१/६। । निश्चय साधु निर्देश - www " निश्चयावलम्बी साधुका लक्षण । निश्चयसाधुको पहिचान। भाव लिंग-दे. लिंग। साधुमें सम्यक्त्वकी प्रधानता। निश्चय लक्षणकी प्रधानता। | स्व वश योगी जीवन्मुक्त व जिनेश्वरका लघु नन्दन है-दे, जिन। २८ मूलगुणोंकी मुख्यता गौणता। | निश्चय व्यवहार साधुका समन्वय । | सम्यग्दृष्टि व मिथ्यादृष्टिके व्यवहारधर्ममें अन्तर -दे.मिथ्यावृष्टि/ * | पंचमकालमें भी भाव लिंग संभव है -दे.संयम/२/1 * * * साधु सामान्य निर्देश साधु सामान्यका लक्षण । साधुके अनेकों सामान्य गुण । साधुके अपर नाम। साधुके अनेकों भेद । यति, मुनि, ऋषि, श्रमण, गुरु, एकलविहारी, जिनकल्प आदि-दे. वह वह नाम।। प्रत्येक तीर्थकरके कालमें साधुओंका प्रमाण । -दे, तीथंकर। पंचम कालमें भी संभव है-दे. संयम/२/८। साधुकी बिनय व परीक्षा सम्बन्धी-दे. विनय/४,५ । साधुकी पूजा सम्बन्धी-दे. पूजा/३।। साधुका उत्कृष्ट व जघन्य ज्ञान-दे. श्रुतकेवलो/२ । ऐसे साधु ही गुरु हैं। -दे. गुरु/१ । 'द्रव्य लिंग भाव लिंग -दे. लिंग । व्यवहार साधु निर्देश व्यवहारावलम्बी साधुका लक्षण। व्यवहार साधुके मूल व उत्तर गुण । मूल गुणके भेदोंके लक्षण आदि-दे. वह वह नाम। शुभोपयोगी साधु भव्य जनोंको तार देते हैं - दे. धर्म/१२। * * * ४ | अयथार्थसाधु सामान्य * * | अयथार्थ साधुकी पहिचान । द्रव्य लिंग-दे. लिंग। | अयथार्थ साधु श्रावकसे भो हीन है। | अयथार्थ साधु दुःखका पात्र है। अयथार्थ साधुसे यथार्थ श्रावक श्रेष्ठ है। लाखों अयथार्थ साधुओंसे एक यथार्थ साधु श्रेष्ठ है। -दे. शीर्षक/नं.४। * * जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy