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________________ सप्तभंगो ५. अनेक प्रकारसे अस्तित्व नास्तित्व प्रयोग पररूपका जो अभाव है वह घटसे भिन्न है अथवा अभिन्न है। यदि घटसे भिन्न है तब तो उसके भी पट होनेसे वहाँ उसके अभाव हीकी कल्पना करनी चाहिए (८६/१); यदि पटरूपाभाव घटसे अभिन्न है तो हमारा अभीष्ट सिद्ध हो गया, क्योंकि अपनेसे अभिन्न भाव धर्मसे घट आदि में जैसे सत्त्वरूपता है ऐसे ही अपनेसे अभिन्न अभाव धर्म से असत्त्व रूपता भी घट आदिमें स्वीकार करनी चाहिए। ही, यदि उसमें हम विशिष्ट घटरूपता स्वीकार करना चाहते हैं तो वह पटादिकी ससाका निषेध करके ही आ सकती है। अन्यथा वह घट नहीं कहा जा सकता क्योंकि पटादि रूपोंकी व्यावृत्ति न होनेसे उसमें पटादिरूपता भी उसी तरह मौजूद है। (स्या, म./२३/२८०/ १०); ( स. भ. त./८३/५)। ५. अनेक प्रकारसे अस्तित्व नास्तित्व प्रयोग ६. उभयात्मक तृतीय भंगकी सिद्धि में हेतु रा. वा./४/४२/१५/२५५-२५६/६ इतश्च स्यादस्ति स्यान्नास्ति स्वपरसत्ता भावाभावोभयाधीनत्वात जीवस्य । यदि परसत्तया अभावं स जीवं स्वात्मनि नापेक्षते, अतः स जीव एव न स्यात् सन्मानं स्यात नासौ जीवः सत्त्वे सति विशेषरूपेण अनवस्थितत्वात सामान्यवत् । तथा परसत्ताभावापेक्षायामपि जीवत्वे यदि स्वसत्तापरिणति नापेक्षते तथापि तस्य वस्तुत्वमेव न स्यात् जीवत्वं वा, सद्भावापरिणत्वे परभावमात्रत्वात् खपुष्पवत् । अतः पराभावोऽपि स्वसत्तापरिणत्यपेक्ष एव अस्तित्वस्वात्मवत ।...किं हि वस्तुसर्वात्मकं सर्वाभावरूपं वा दृष्टमिति ।...अभावः स्वसद्भावं भावाभावं च अपेक्षमाणः सिध्यति। भावोऽपि स्वसद्भावम् अभावाभावं चापेक्ष्य सिद्धिमुपयाति । यदि तु अभाव एकान्तेनास्ति इत्यभ्युपगम्येत ततः सर्वात्मनास्तित्वात स्वरूपवद्भावात्मनापि स्यात्, तथा च भावाभावरूपसं करादस्थितरूपत्वादुभयोरप्यभावः। अथ एकान्तेन नास्ति इत्यभ्युपगम्येत ततो यथा भावात्मना नास्ति तथा भावात्मनापि न स्यात्, ततश्च अभावस्याभावात् भावस्याप्रतिपक्ष त्वात् भावमात्रमेव स्यात् । तथा खपुष्पादयोऽपि भावा एव अभावभावरूपत्वात घटवत इति सर्वभावप्रसङ्गः ।...एवं स्वात्मनि घटादिवस्तु सिद्धौ च भावाभावयोः परस्परापेक्षत्वात् यदुच्यते "अति प्रकरणाद्वा घटे अप्रसक्तायाः पटादिसत्तायाः किमिति निषेधः क्रियते"। इति; तदयुक्तम् । किंच घटे अर्थत्वात अर्थसामान्यात पटादिसर्वार्थप्रसंगः संभवत्येव । तत्र विशिष्ट घटार्थत्वम् अभ्युपगम्यमानं पटादिसत्तारूपस्थार्थसामर्थ्य प्रापितस्य अर्थतत्त्वस्य निरासेनैव आत्मानं शक्नोति लन्धुम, इतरथा हि असौ घटार्थ एव न स्यात् पटाद्यर्थरूपेणानिवृत्तत्वात् पटाद्यर्थस्वरूपवत्, विपरीतो वा 1-१. स्वसद्भाव और परअभावके आधीन जीवका स्वरूप होनेसे वह उभयात्मक है। यदि जीव परसत्ताके अभावकी अपेक्षा न करे तो वह जीव न होकर सन्मात्र हो जायेगा। इसी तरह परसत्ताके अभावकी अपेक्षा होनेपर भी स्वसत्ताका सद्भाव न हो तो वह वस्तु ही नहीं हो सकेगा, जीव होनेकी बात तो दूर ही रही। अतः परका अभाव भी स्वसत्ता सद्भावसे ही वस्तुका स्वरूप बन सकता है ।...क्या कभी वस्तु सर्वाभावत्मक या सर्व-सत्तात्मक देखी गयी है !...इस तरह भावरूपता और अभावरूपता दोनों परस्पर सापेक्ष हैं अभाव अपने सद्भाव तथा भावके अभावकी अपेक्षा सिद्ध होता है तथा भाव स्वसद्भाव और अभावके अभावकी अपेक्षासे सिद्ध होता है । २. यदि अभावको एकान्तसे अस्ति स्वीकार किया जाये तो जैसे वह अभाव रूपसे अस्ति है उसी तरह भावरूपसे भी 'अस्ति' हो जानेके कारण भाव और अभावमें स्वरूप सांकर्य हो जायेगा। यदि अभावको सर्वथा 'नास्ति' माना जाये तो जैसे वह भावरूपसे नास्ति है उसी तरह अभावरूपसे भी नास्ति होनेसे अभावका सर्वथा लोप हो जानेके कारण भावमात्र ही जगत् रह जायेगा। और इस तरह खपुष्प आदि भी भावात्मक हो जायेंगे । अतः घटादिक भाव स्यादस्ति और स्याद्नास्ति हैं। इस तरह घटादि वस्तुओं में भाव और अभावको परस्पर सापेक्ष होनेसे प्रतिवादीका कथन यह है कि "अर्थ या प्रकरणसे जब घटमें पटादिकी सत्ताका प्रसंग ही नहीं है, तब उसका निषेध क्यों करते हो!" अयुक्त हो जाता है। किंच, अर्थ होनेके कारण सामान्य रूपसे घटमें पटादि अर्थों की सत्ताका प्रसग प्राप्त है १. स्वपा द्रव्य गुण पर्यायकी अपेक्षा रा. वा./२/६/५/पृ./पं. स. तत्र स्वात्मना स्याघट', परात्मना स्याद घटः । को वा घटस्य स्वात्मा को बा परात्मा। घटबुद्धयभिधानप्रवृत्तिलिङ्गः स्वात्मा, यत्र तयोरप्रवृत्तिः स परात्मा पटादिः ।...नामस्थापनाद्रव्यभावेषु यो विवक्षितः स स्वारमा, इतरः परात्मा । तत्र विवक्षितात्मना घटः, नेतरात्मना ।३३।२०। घटशब्दप्रयोगानन्तरमुत्पद्यमान उपयोगाकारःस्वात्मा...बाह्यो घटाकारः परात्मास घट उपयोगाकारेणास्ति नान्येन (...तत्र ज्ञेयाकारः स्वात्मा.."ज्ञानाकारः परात्मा 1३४।२४। -स्वात्मासे कथंचित घड़ा है, और परात्मासे कथचिव अघट है। प्रश्न-घड़ेके स्वात्मा और परात्मा क्या हैं ! उत्तरजिसमें घट बुद्धि और घट शब्दका व्यवहार है वह स्वात्मा तथा उससे भिन्न पटादि परात्मा हैं ।...नाम, स्थापना, द्रव्य और भावनिक्षेपोंका जो आधार होता है वह स्वात्मा तथा अन्य परात्मा है ३३।२०। घट शब्द प्रयोगके बाद उत्पन्न घट ज्ञानाकार स्वात्मा है...बाह्य घटाकर परात्मा है। अत: घड़ा उपयोगाकारसे है अन्यसे नहीं है ।.."याकार स्वात्मा है...और ज्ञानाकार परात्मा है। घ.६/४.१,४५/पृष्ठ सं./पं. सं. स्वरूपादिचतुष्टयेन अस्ति घटः, ...पररूपादिचतुष्टयेन नास्ति घटः, ...मृद्घटो मृघटरूपे अस्ति, न कल्याणादि घटरूपेण । (२१३।४) तत्परिणतरूपेणास्ति घटः, न नामादिघटरूपेण (२१४१) अथवोपयोगरूपेणास्ति घटः, नार्थाभिधानाभ्याम् ।...अथवोपयोगघटोऽपि वर्तमानरूपतयास्ति, नातीतानागतोपयोगघटै।। अथवा घटोपयोगघटः स्वरूपेणास्ति. न पटोपयोगादिरूपेण ।...इत्यादिप्रकारेण सकलार्थानामस्तित्व-नास्तित्वावक्तव्यभङ्गा योज्याः ! ( २१४६) -स्वरूपादि चतुष्टयके द्वारा घटं है...पररूपादि चतुष्टयसे 'घट नहीं है'...मिट्टी का घर मिट्टी के घट रूप से है. स्वर्ण के घट रूप से नहीं है। (२१३।४) अथवा घटरूप पर्यायसे परिणत स्वरूपसे घट है, नामादि रूपसे वह घट नहीं है (२१४।६) उपयोग रूपसे घट है और अर्थव अभिधानको अपेक्षा वह नहीं है...अथवा उपयोग घट भी वर्तमान रूपसे है, अतीत व अनागत उपयोग घटोंकी अपेक्षा वह नहीं है...अथवा घटोपयोग स्वरूपसे घट है, पटोपयोगादि स्वरूपसे नहीं है।...इत्यादि प्रकारसे सब पदार्योंके अस्तित्व, नास्तित्व व अवक्तव्य भंगोंको कहना चाहिए। स. सा./आ./परि./क. २५२-२५३ स्वद्रव्यास्तितया निरूप्य निपुर्ण सद्यः समुन्मज्जता, स्याद्वादी...२५२। स्याद्वादी तु समस्तवस्तुषु परद्रव्यात्मना नास्तिताम् ।२५३। स्याद्वादी तो, आश्माको स्वद्रव्यरूपसे अस्तिपनेसे निपुणतया देखता है ।२५२। और स्याद्वादी तो, समस्त वस्तुओं में परद्रव्य स्वरूपसे नास्तित्वको जानता है ।२५३। स्या. म./२३/२७६/३० कुम्भो द्रव्यतः पार्थिवत्वेनास्ति। नाबादिरूपत्वेन । - घड़ा द्रव्यकी अपेक्षा पार्थिव रूपसे विद्यमान है जलरूपसे नहीं। २. स्व-पर क्षेत्रकी अपेक्षा रा. वा./१/६/५/पृष्ठ/पंक्ति अथवा, तत्र विवक्षितघटशब्दवाच्यसादृश्यसामान्यसंबन्धिषु कस्मिंश्चिद् घटविशेषे परिगृहीते प्रतिनियतो यः भा०४-४१ जैनेन्द्र सिद्धान्त कीश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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