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________________ २९७ ९. मोह सत्व स्थान आदेश प्ररूपणाका स्वामित्व विशेष सत्त्व सं. २ ३ ४ ५ ७ ह गति अपेक्षा पर्याप्त - चारोंमें अन्यतम गतिके जीव पर्याप्त केवल मनुष्य गति मनुष्य व देव गति मनुष्य व तिर्यंच, देव व नरक नरक व मनुष्य" देव मनुष्य म तिच मार्गणा स्थान Jain Education International "1 भा० ४-३८ " नरक " " 11 मनुष्य, तिथंच व नरक ." " द्रष्टव्य- (i) यह ६ स्थान 'पर्याप्तक' के जानने । " "" (ii) इन्हीं स्थानोंको 'अपर्याप्तक' बनानेके लिए पर्याप्त के स्थान पर अपर्याप्त लिख लेना । (iii) इन्हीं स्थानोंको पर्यााटके बनानेके लिए पर्याप्त के स्थान पर उभय लिख लेना । सं. १० ११ ११ |१३ १९४ १५ १६ ११८ Le २० २१ २२ R3 सम्यक्त्व अपेक्षा पर्याप्त अन्यतम सम्यक्त्व केवल क्षायिक सम्यक्त्व केवल वेदक सम्यक्त्व केवल कृतकृत्य वेदक सम्यक्त्व केवल उपशम सम्यक्त्व उपशम व वेदक सम्यक्त्व मार्गणा स्थान उपशम वेदक सम्यष्टि व सम्य मिध्यादृष्टि उपर्युक्त सं. १६ + सासादन व सादि मि. सादि मि. व सासादन अनादि मिध्यादृष्टि ३. सत्य विषयक प्ररूपणाएँ वेदक सम्य, मिश्र, सासादन, मि. सादि मिध्यादृष्टि सादि अनादि मिध्यादृष्टि - वेदकी अपेक्षा केवल पुरुष वेद जैमेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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