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________________ २८१ ३. सत्त्व विषयक प्ररूपणाएं सत्त्व सत्त्व सत्व प्रकृतिका नाम क्र. प्रकृतिका नाम प्रकृति स्थिति अनुभाव प्रदेश प्रकृति र स्थिति | अनुभाव | प्रदेश शुभ अन्त को को. चतु.स्थान अजघन्य ७ गोत्र अन्त को.को. चतु.स्थान अजघन्य অহ্ম बादर चतु.. द्वि... चतु.. नीच अन्तराय सूक्ष्म पाँचों चतु... द्वि... ३४ पर्याप्त ३. अपर्याप्त ३६ स्थिर अस्थिर आदेय अनादेय यशःकीर्ति अयशःकीर्ति तीर्थकर चतु. .. चतु. " द्वि. , , नहीं नहीं - - ३. प्रकृति सत्त्व असत्त्व आदेश प्ररूपणाद्रष्टव्य- इस सारिणी में केवल सत्त्र तथा असत्व योग्य प्रकृतियों का उल्लेख किया गया है. सत्व-व्युछित्तिका नहीं। उसका कथन सर्वत्र ओघवत जानना। जिस स्थान में जिस जिस प्रकार प्रकृति का असत्त्व कहा गया है. उस स्थान में उस उस प्रकृति को छोड़ कर शेष प्रकृतियों की व्युच्छित्ति ओधवत जान लेना । जहाँ कुछ विशेषता है, वहां उसका निर्देश कर दिया गया है । सच्च असत्व का कथन भी यहाँ तीन अपेक्षाओं से किया गया है-उद्वेलना रहित सामान्य जीवों की अपेक्षा, स्वस्थान उद्वेलना युक्त जीवों की अपेक्षा और उत्पन्न स्थान उद्वेलना युक्त जीवों की अपेक्षा। गुण कुल मार्गणा असत्त्व कुल सत्त्व योग्य असत्त्व स्थान सत्त्व स्थान गति मार्गणा(१)/ नरक गति-(गो.क./भाषा./३४६/४६८) सामान्य उद्वेलना सहित १-३ पृथिवी देवायु देखो आगे पृथक् शीर्षक नरकगति सामान्यवत् देवायु, तीर्थ कर देव, मनुष्यायु, तीर्थ १४८ | १ १४० तिथंच गति-(गो. क./भाषां/३४६/४६६-५००) सामान्य उद्वेलना सहित अविरत सम्यग्दृष्टि संयतासंयत पंचेन्द्रिय प. तीर्थकर देखो आगे पृथक शीर्षक नरक व मनुष्य आयुकी व्युच्छित्ति -२ १४७ १४७ सामान्य तियंचवत भा० ४-३६ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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