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________________ सत्त्व २७८ ३. सत्त्व विषयक प्ररूपणाएं मनुष्य मिश्र० तीर्थ सं० ३० ३. सत्त्व विषयक प्ररूपणाएँ सारणीमें प्रयुक्त संकेत सूची मिथ्या० मिथ्यात्व तिर्य तियउच्च आ० आहारक शरीर सम्यक सम्यवरव मोहनीय मनु० औ..वै.,आ,द्विक वह वह शरीर व अंगोपांग मिश्र मोहनीय नरकादि द्विक बह वह गति व आनुपूर्वीय औ.वै. आ. वह वह शरीर, अगोपांग अनन्तानु० अनन्तानुसन्धी चतुष्क नरकादि त्रिक वह बह गति, आनुपूर्वीय बन्धन तथा संघात अप्र० अप्रत्याख्यान " तथा आयु तीर्थंकर प्र० प्रत्याख्यान " नरकादि चतु० वह बह गति, आनुपूर्वीय भुज्यमान आयु. तथा तच्चोग्य शरीर और भय मान आयु. नपु. नपुंसक बेद अंगोपांग बै क्रि० षटक नरक गति आनपूर्वीय, पुरुष वेद অন্য आनुपूर्वीय देव गति, आनुपूर्वाय, स्त्री स्त्री वेद औ० औदारिक शरीर बैंक्रियिक शरीर तथा हा० चतु० हास्य, रति. अरति. शोक वै० बैक्रिमक" वैक्रियिक अगोपांग १. प्रकृति सत्त्व व्युच्छित्तिकी ओघप्ररूपणा सत्त्व योग्य प्रकृतियाँ-नाना जीवों की अपेक्षा-१४८। एक जीव की अपेक्षा सवत्र ६ विकल्प हैं१. बद्धायुष्क तीर्थकर रहित १४५, ४. अबद्धायुष्क तीर्थंकर रहित = १४४; २. बद्धायुष्क आहारक द्विक रहित १४४ ५. अबद्धायुष्क आहारकद्विक रहित - १४३; .३. बद्धायुष्क आहारक द्विक व तीर्थकर रहित-१४३, ६. अबद्धायुष्क आहारक द्विक व तीर्थंकर रहित-१४२ नोट-इस प्रकार सत्त्व योग्य प्रकृतियोंके आधार पर प्रत्येक गुणस्थानमें अपनी ओरसे एक जीवकी अपेक्षा छह-छह विकल्प बना लेने चाहिए। प्रमाण-(पं.सं./प्रा./३/४६-६३); (पं. सं./प्रा./५/3८४-५००); (.सं./सं./३/६१-७७ ); ( पं. सं./सं./५/४६२-४७७); (गो. क./३३६- ३४३/४८८-४६६)। शेष गुण स्थान व्युच्छि तिकी प्रकृतियाँ असत्त्व कुल सत्त्व योग्य असत्त्व सत्त्व व्युच्छि. सत्व योग्य م १४८ م wo तीर्थकर व आ.द्वि तीर्थकर १४५ س १४७ १ उपशम व क्षयोपशम सम्यक्त्व amro xxxxx नरकायु नरक व तियंचायु ८-११ २ क्षायिक सम्यक्त्व-(गो. क./जो. प्र./३५३४५१२/४ ) ४ । नरकायु, तिथंचायु, दर्शनमोहकी ३, अनन्तानुबन्धी ४ ५ तिर्यचायु xxx o wowo -८ दर्शनमोह, अनन्ता-७१४८ ore ७ | उपशम श्रेणी में =x;क्षपक श्रेणी में - देवायु ३ क्षायिक सम्यक्त्व उपशम श्रेणी--(गो. क./जी. प्र./३५५/५१२/४ ) ८- ११४ ४ क्षायिक सम्यक्त्व क्षपक श्रेणी-(गो.क. जी.प्र./३३६-३४३/४८८-४६६) नोट-अबद्धायुष्क ही क्षपक श्रेणी पर चढ़े। १३८ । ४ । १३८ । ४ १३८ ।xxxxxxx १३८ ६/i | नरकद्विक, तिथंच द्विः १.४ इन्द्रिय, स्त्यानगृद्धित्रिक, आतप, उद्योत, सूक्ष्म, साधारण, स्थावर-१६ g/ii | प्रत्यारख्यान ४, अप्रत्याख्यान. ४-८ - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश x xx x |४ १२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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