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________________ पत्य यथार्थताको प्रगट करनेवाला है वह समयसत्य है । ( ध १ / १,१.२ - / ११०/-) (. १/२,१.४५ / २१०/२) (चा. सा./१२/२) (अन. ध. / ४/४७ ) । आमंत्रणी आदि भाषाओं में कथंचित् सत्यासत्यपना । - दे० भाषा । ७. सत्यकी भावनाएँ २७२ १. सत्यधर्मकी अपेक्षा रामा./१/६/२०/५११/१८ सत्यवाचि प्रतिष्ठिताः सर्वा गुणसंपदः । अनृतभाषिणं बन्धवोऽपि अवमन्यते (न्ते) मित्राणि च परित्यजन्ति, जिह्वाच्छेदन सर्वस्वहरणादिव्यसन भाग प भवति । - सभी गुण सम्पदाएँ सत्य वक्ता प्रतिष्ठित होती हैं। झूठेका बन्धुजन भी तिरस्कार करते हैं। उसके कोई मित्र नहीं रहते। जिड़ा घेदन सर्व धन हरण आदि दण्ड उसे भुगतने पड़ते हैं । ( चा. सा./६५/४ ) । २. सत्यवतकी अपेक्षा यू.आ./३३८ कोमोहापहा अणुवीमा चैत्रविदियस्स भावणावो वदस पंचैत्र ता होंति । क्रोध, भय, लोभ, हास्य, इनका स्थान और सूत्रानुसार बोलना पाँच सयजतको भावनाएं है। (भा. पा / सू./३३)। क्रोधलोभ भीरुत्व हास्यप्रत्याख्यानान्यनुवी ची भाषणं' त. सू / १/५ पञ्च ॥५॥ स.सि./७/१/३४७/६ अनृतवादीऽश्रद्ध योभवति इहैव च जिह्वाच्छेदादीच प्रतिलभते मिध्याध्याख्यानदुःखितेभ्यश्च मदने रेम्पो बहूनि व्यस मान्यवाप्नोति प्रेत्य चाशुभां गति गर्हितश्च भवतीति अमृतवचनादुपरमः श्रेयात् ।..एवं हिंसादिष्वपायावद्यदर्शनं भावनीयम्। १. कोपाख्यान, लोभप्रत्याख्यान, भोरुवप्रत्याख्यान, हास्यप्रत्थारूपान और अनुमीचीभाषण में सरवनतकी पाँच भावनाएं है। २. असत्यवादीका कोई श्रद्धान नहीं करता। वह इस लोक में जिल्हाछेद आदि दुखोंको प्राप्त होता है तथा असत्य बोलनेसे दुःखी हुए आए जिन्होंने गाँध लिया है. उनसे बहुत प्रकारकी आप तिलोंको और परलोकमै अशुभगतिको प्राप्त होता है और गर्हित भी होता है इसलिए असत्य वचनका त्याग श्रेयस्कर है। इस प्रकार हिंसा आदि दोषोंने अपाय और अनद्यके दर्शनकी भावना करनी चाहिए । ८. सत्यावतके अतिचार त. सू. /७/२६ • मिथ्योपदेशरहोपाख्यान कूट लेख कियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः ॥२६-मिष्योपदेश रहोम्याख्यान कूटलेख क्रिया, न्यासापहार और साकारमन्त्रभेद ये सत्यात पाँच अतिचार 1241 [र... में साकारमन्त्र के स्थानपर शुन्य है।] ( र. क. श्रा / ५६ ) । सा.व./४५ मध्याद रहोभ्यायो कूटलेखकियां व्यजेत् व्यस्वांश मि ममेदं च ततः सत्यको पालनेवाले श्रावकों को मिथ्योपदेश रहोपाख्या कूटलेखक्रिया, न्यस्तशि विस्मा और मन्त्रभेद हम पाँचों अतिचारोंका राग कर देना चाहिए 1921 " ★ सत्यव्रतकी भावनाओं व अतिचारों सम्बन्धी विशेष विचार/ २ Jain Education International २. सत्यासत्य व हिताहित वचन विवेक १. अहितकारी सत्य भी असत्य और हितकारी असस्य भी सत्य है २. सत्यासत्य वहिवाहित वचन विवेक कुरल // २ संकटाकीर्ण जीवानामुढारकरच्या विता साधुभरवसा. २ उस झूठ भी सत्यता विशेषता है जिसके परिणाम नियमसे भलाई ही होती है २ (आराधनासार/२/०)। चा.सा./टी./२ द्विद्यमानार्थ विषयं प्राणिपोहाकारणं तत्सत्यमध्यसत्यम् विद्यमान पदार्थोंको विद्यमान कहनेवाले वचन यदि प्राणियोंको पीडा देनेवाले हों तो वे सत्य होकर भी असत्य माने जाते हैं । = ज्ञा./१/३ असत्यमपि तत्सत्यं यत्सत्त्वाशंसकं वचः । सावद्य यच्च पुष्णाति तत्सत्यमपि निन्दितम् | ३| = जो वचन जीवोंका इष्ट हित करनेवाला हो वह असत्य हो तो भी सत्य है और जो वचन पाप सहित हिसारूप कार्यको पृष्ट करता हो वह सत्य भी हो तो असत्य और निन्दनीय है। ( आचारसार/२/२२-२३ ) । न 1 यं हितं चाहुः सूनृत सूनृताः सत्सत्यमपि नो सत्यमप्रियं चाहितं च यत् । ४२ । - जो वचन प्रशस्त. कल्याणकारक तथा सुननेवालेको आह्लाद उत्पन्न करनेवाला, उपकारी हो, ऐसे वचनको सत्यवतियोंने सत्य कहा है। किन्तु उस सत्यको सत्य न समझना जो अप्रिय और अहितकर हो । सा.सं./६/६७ सत्यमपि असत्यतां याति कचिद्विसानुबन्धः ॥६॥ असत्यं सत्यतां याति कचिज्जीवस्य रक्षणात् [७] - जिन वचनों से जीवोंकी हिंसा सम्भव हो ऐसे सत्य वचन भी असत्य हैं । ६ । इसी प्रकार कहीं-कहीं जीवोंकी रक्षा होनेसे असत्य वचन भी सत्य कहलाते हैं । मो.मा.प्र./८/४१३ / १५ जो झूठ भी है अर साँचा प्रयोजन को पोष तौवाकौ बाकी न कहिये बहुरि साँच भी है अर फूटा प्रयोजन की पोती वह झूठ ही है। २. कटु भी हितोपदेश असत्य नहीं भ. आ /मू./३५७/५६१ पत्थं ह्रिदयाणिट्ट पि भण्णमाणस्स सगणवासिस्स व ओसहं से महरविवार्य हव तस्स १५० हे मुनिगण तुम अपने संभवासी मुनियोंसे हिराकर वचन बोसो, यद्यपि वह हृदयको अप्रिय हो तो कोई हरकत नहीं है। जैसे- कटुक भी औषध परिणाममें मधुर और कल्याणकारक होता है वैसे तुम्हारा भाषण मुनिका कल्याण करेगा । पुसि उ. / १०० हेतो प्रयोगे निर्दिष्टे • वचनानाम्। यानुष्ठानादेरनुवदनं भवति नासत्यम् | १००१ - समस्त हो अनृत वचनों का प्रमाद सहित योग निर्दिष्ट होनेसे हेयोपादेयादि अनुष्ठानों का कहना झूठ नहीं होता हेयोपादेयता उपदेश करनेवाले मुनिराज के वचनों नवरसपूर्ण विषयोंका वर्णन होनेपर भी तथा पापकी निन्दा करनेसे पापी जीवोंको अप्रिय लगनेपर भी तथा अपने मधुको हितोपदेशके कारण दुखी होते हुए भी उन्हें असत्यका दोष नहीं है, क्योंकि उन्हें प्रमादयोग नहीं है। (पं. टोडरमल )]। ★ कठोर भी हितोपदेशको इष्टता - दे. उपदेश / ३ । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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