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________________ मार्गणा विशेष २० प्ररूपणाएँ Jain Education International लेश्या थान प्राण गति इन्द्रिय काय | योग कषाय ज्ञान पर्याप्त गुण | जीव | पर्याप्ति 5. अपर्याप्त स्थान समास संयम | दर्शन द्र. भा. " - भव्य । सम्य, मजिस्व आहा. उपयोग ५. ब्रह्मसे महाशुक्र तकके देव-(ध.२/१,१/५६३) सामान्य - - | → सनत्कुमार माहेन्द्रवत - १ → सनत्कुमार माहेन्द्रवद - 4- का.शु. म.पद्म 0 - - - ३ अपयाप्त अपर्याप्त । - - - - एक जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश १९२ For Private & Personal Use Only ६. शतार सहस्रार-(ध.२/१,१/५६४) १. सा., प. सर्वत्र सनत्कुमारवत् / केवल लेश्याम विशेष है (द्रव्य लेश्या सामान्य में कापीत, शुक्ल तथा मध्यम पद्म ये तीन । पर्याप्त में मध्यम पद्म। अपर्याप्त में कापोत तथा शुक्ल ये दो। | व. अप. भाव लेश्या सामान्य पर्याप्त तथा अपर्याप्त तीनों में केवल १ मध्यम पद्म।) ७. आनतसे अच्युत-(ध.२/११/१६४) १. सा. प. सर्वत्र सनत्कुमारवर / लेश्यामें विशेष है । (द्रव्य लेश्या-सामान्य में कापोत शुक्ल तथा मध्यम शुक्ल ये तीन । पर्याप्त में मध्यम शुक्ल । अपर्याप्त में कापोत तथा शुक्ल ये दो। व. अप. भाव लेश्या-सामान्य पर्याप्त तथा अपर्याप्त तीनों में नए पद्म और जघन्य शुक्ल ये दो।) ८.नव अनुदिश व पंच अनुत्तर१ सामान्य| १ । २ । ६/६ । ७४ १ | ३ | १ १ | ३ | १ | २ | २ अवि सं.प.| ६ पर्याप्ति पं. - त्रस मन४, वच.४, पु. | मति, श्रुत असंयम चक्षु, अचक्षु | का.उ. भव्य । औ., क्षा. | 'संशी | आहा. साकार सं.अप. ६ अपर्याप्ति वै.२ का. १ अवधि अवधि शु. शु. क्षयो. अना. पप्ति । १ । १ । । अवि | सं.प. पर्याप्ति २. सत् विषयक प्ररूपणाएं देव पं. | बस मन४,वच.४, पु.| मति, श्रुत असंयम चक्षु, अचक्षु उ.उ. | भव्य | औ.,क्षा. [ संझी | आहा. साकार अवधि अवधि शु. शु. -क्षयो. www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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