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________________ Jain Education International द्रव्यको अपेक्षा क्षेत्रकी अपेक्षा कालकी अपेक्षा संख्या मार्गणा गुणस्थान प्रमाण घ. खं, प्रमाण असं.का प्रमाण प्रमाण असं. उत. अव. से अपहृत अनुभय बचनयोगी काय योगी सामान्य ज. प्र. (सूच्यंगुल/सं )२ | → मनोयोगीवत् → ओघवत् → मनोयोगीवत् → ओघवत् →मनोयोगीवत् | →ओघवत् →औदारिक मिश्र सामान्यवत् औदारिक काय योगी औदारिक मिश्र टी/३८ [कपाट समुद्धातमें आरोहण करनेवाले-२० तथा अवरोहण करनेवाले-२०] ४० देव/सं. वैक्रियक For Private & Personal Use Only जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश २०४ ओधबत बैंक्रियक मिश्र ३११४ देव/सं. ओघवत आहारक मित्र - " सं. (२७) कार्मण - ओघवत् ओघवत् - - सं. ५. वेद मार्गणा स्त्री वेदी पुरुष वेदी xxx x टी/४०४ ६०- [प्रतर समुद्धातमें २०, लोकपूरण में २०, तथा उतरते हुए २० । ] (गो, जी./म. व टी./२७७-२८१/५६६-६०३) देवी+कुछ देव+कुछ अनं. अनं.लोक, अनं. ३. संख्या विषयक प्ररूपणाएँ नपुंसक वेदो ७३३ । अन-उत-अवसे अनपहृत अपगत वेदी www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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