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४. वनखण्ड निर्देश
१ सुमेरु पर्वत के तलभाग में भद्रशाल नामका प्रथम वन है जो पाँच मागोमे विम है-भद्रास मानुषोत्तर, देवरमण नागरमण और भूतरमण (ति //१००५). (इ ५०/५/२००) इस बनकी चारो दिशाओ में चार जिनभवन है । ( ति प /४/२००३). (त्रि सा./६११), ( १/४/४६) इनमें से एक मेरु पूर्व वा सीता नदी के दक्षिण है। दूसरा नेरुडी दक्षिण व सीतोदाने पूर्व है तीसरा मेरु पश्चिम तथा सीटोदाने उत्तरमे है और चोया मेरुके उत्तर व सीताके पश्चिममे है । ( रा. वा./३/१०/१७८ / १८ ) इन पैश्यालय का विस्तार पाण्डुरू बनके चैत्यालयोसे चौगुना है ( ति प / ४ / २००४ ) । इस बनमे मेरुकी चारो तरफ सीता व सीतोदा नदीके दोनों तटोपर एक-एक करके आठ दिग्गजेन्द्र पर्वत है । (दे० लोक / ३ / १२) २ भद्रशाल वन से ५०० योजन ऊपर जाकर मेरु पर्वतको कटनीपर द्वितीय वन स्थित है । (दे० पिछला उपशीर्षक १) । इसके दो विभाग है नन्दन व उपनन्दन । ( ति प /४/१०६), (६/२/३००) इसको पूर्वादि चारो दिशाओमे पर्वतके पासक्रमसे मान, धारणा, गन्धर्व व चित्र नामके चार भवन है। जिनमे क्रमसे सौधर्म इन्द्रके चार लोकपाल सोम, यम, वरुण व कुबेर क्रीडा करते है | ) ( ति प / ४ / १६६४-१९६६ ); ( पु / ३१५३९७), (त्रि. सा. ६१६. ६२९). ( प./२/०३-०४) कहीं-कहीं इन भवनो को गुफाओके रूपमें बताया जाता है। (रा बा./३/१०/१२/१०१/१४)। यहाँ भी मेरुके पास चारों दिशाओमे चार जिनभवन है (ति प२/१९६८). (शमा /३/१०/११/९०१ / १२). (२५) (त्रि सा. / ६११) प्रत्येक जिनमनके आगे दो-दो कूट है - जिनपर दिक्कुमारी देवियाँ रहती है। ति प की अपेक्षा आठ कूट इस नमे न होकर सौमनस यनमे ही है । ( ३० लोक /२/५) चारो दिशाओमे सौमनस बनकी भाँति चार-चार करके फूल १८ पुष्करिणयों है (ति.प./४/१९६८), (रा. ना /३/१०/११/२०६/२४) ( //३२४-२१०२४१-१४६). (त्रि. सा / ६२८), (१/४/११०-१११) इस मनको ईशान दिशामे एक बलभद्र नामका कूट है जिसका कथन सौमनस बनके बलभद्र कूटके समान है । इसपर बलभद्र देव रहता है । ( ति प /४/१६६७), (श वा./३/१०/२३/९७६/९६), (६/२/३२०), (त्रि सा/६२४ ), ( ज प / ४ / ६६ ) । ३. नन्दन वनमे ६२५०० योजन ऊपर जाकर सुमेरु पर्वत पर तीसरा सौमनस वन स्थित है (दे० लोक३.६२) इसके दो भाग है-सौमनस व उपसौमनस ति प /४/१८०६ ); (ह पु/५/३०८ ) । इसकी पूर्वादि चारो दिशाओ में मेरुके निकट वज्र, वज्रमय, सुवर्ण व सुवर्णप्रभ नामके चार पुर है,
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( ति प / ४ / १९४३ ), ( ह पृ./५/३१६ ), ( त्रि. सा. / ६२०), (ज. ५/४/६१) इनमें भी नन्दन सके भवनोपय सोम आदि लोकपाल क्रीडा करते है । (त्रि सा / ६२१) | चारो विदिशाओं मे चार-चार पुष्करिणी है । (पि./४/१६४६ २६६२-१६६६).
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२. जम्बूद्वीप निर्देश
( रा. वा /३/१०/१३/१८०/७) । पूर्वादि चारो दिशाओमे चार जिनभवन है (दि.१/४/१९६०). (४.५/२/२२७); (त्रि. सा. /६११ ); (ज. प. / ४ / ६४ ) । प्रत्येक जिन मन्दिर सम्बन्धी बाह्य कोटों के बाहर उसके दोनों कोनोंपर एक-एक करके कुल आठ कूट है। जिनपर दिक्कुमारी देवियाँ रहती है (दे० लोक /२/२) इसकी ईशान दिशामे बलभद्र नामका कूट है जो ५०० योजन तो बनके भीतर है और ५०० योजन उसके बाहर जाकाशमें निकला हुआ है । ति प / ४ / १६८१), (ज. प / ४ / १०१), इसपर बलभद्र देव रहता है। (ति प /४/१६४) मतान्तरकी अपेक्षा इस मनमें आठ कूट कूट नहीं है (रा. मा/३/१०/१३/१८०/८) । व बलभद्र । (दे सामनेवाला चित्र ) । ४. सौमनस वनसे १६००० योजन ऊपर जाकर मेरुके शीर्ष पर चौथा पाण्डुक वन है । (दे० लोक /०/६१) जो भूमिकाको पेटित करके शीर्मपर स्थित है (टि. १४) इसके दो विभाग है-पाण्डुक उप पाण्डुक । ( ति प /४/१८०६ ), ( ह पु/५/३०६ ) | इसके चारों दिशाओमे लोहित अंजन हरिद्र और पाण्डुक नामके चार भवन हैं जिनमें सोम आदि लोकपाल क्रीडा करते है। (ति १४/१८६६ १०५०); (ह पु. / ५ / ३२२ ), (त्रि. सा. / ६२० ), ( ज. प /४/१३ ), चारों विदिशाओमे चार-चार करके १६ पुष्करिणियाँ है । ( रा वा /३/१०/१६/१८०/२६ ) | वनके मध्य चूलिकाकी चारों दिशाओमे चार जिनभवन है । ( ति प /४/१८५५. १६३५ ); (रा. वा/३/१०/१२/१८०/२०) (१.१/२/१५४) (त्रि सा / ६९९ ) (४४) बनी ईशान आदि दिशाओ में अर्थ चन्द्राकार चार खिलाएँ है-पाक शिला पाण्डुर्वक्ता शिक्षा, रफता शिला, और रक्तशिला । रा वा के अनुसार ये चारो पूर्वादि दिशाओमे स्थित है। ( ति प /४/१८१८ १८३० - १८३४ ), ( रा वा /३/१०/१३/१०/१५ ), (इ पु/५/३४०), प्रसा०३). (१/४/१३०-१४९) इन सिताऑपर कमसे भरत. अपर निदेह, ऐरावत और विदेहके तीर्थंकरोका जन्माभिषेक होता है ( ति.
४/१०२०१०३१-१८३५) ( रा वा /३/१०/११/१८०/२२ ) (ह. पु. / ५ / ३५३), (त्रि. सा./६३४ ); (ज. प./४/१४८-१५० ) ।
चित्र सं०- १६
पाण्डुक वन
पाण्डुक वन
पूर्व विदेह के तीर्थकर
हरिद्र भवन, वरुण देव
4
रक्त शिला
रक्त
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age
कुबेर देव पाण्डुक भवन
G
चूलिका
१२ यो०
कम्बला शिला*.
ऐरावत क्षेत्र के तीर्थकर
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भरत क्षेत्र के तीर्थकर पाण्डुक शिला
SUNIL P
1901
ACADE
पुष्करिणये
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कम्बला शिल्
लोहित भवन सोमदेव
-90002710 अजन भवन ( उस उस शिला पर उस उस यम देव
क्षेत्र के तीर्थकरों का जन्माभिषेक होता है
★ अपर विदेह के तीर्थकर
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