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लेश्या
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सूचीपत्र
| भेद लक्षण व तत्सम्बन्धी शंका समाधान लेश्या सामान्यके लक्षण। लेश्याके भेद-प्रभेद । द्रन्य, भाव लेश्याके लक्षण। कृष्णादि भाव लेश्याओके लक्षण । अलेपाका लक्षण । लेश्याके लक्षण सम्बन्धी शका समाधान । लेश्याके दोनो लक्षणोंका समन्वय ।
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| कषायानुरञ्जित योग प्रवृत्ति सम्बन्धी १ तरतमताकी अपेक्षा लेश्याओमें छह विभाग।
लेश्या नाम कषायका है, योगका है वा दोनोंका है। ३ । योग व कषायोसे पृथक् लेश्या माननेकी क्या
आवश्यकता। लेश्याका कषायोंमें अन्तर्भाव क्यों नहीं कर देते। | कपाय शक्ति स्थानोंमें सम्भव लेश्या
-दे० आयु/३/१६ । * लेश्यामे कथचित् कषायको प्रधानता
-दे० लेश्या /१/६। * | कायकी तीव्रता-मन्दतामें लेश्या कारण है
-दे० कषाय/३। दव्य लेझ्या निर्देश १ | अपर्याप्त कालमें केवल शुक्ल व कापोत लेश्या
ही होती है। नरक गतिमें द्रव्यसे कृष्णलेश्या ही होती है। जलकी द्रव्यलेश्या शुक्ल ही है। भवनत्रिकमे छहों द्रव्यलेश्या सम्भव है। आहारक शरीरकी शुक्ललेल्या होती है। कपाट समुद्घातमें कापोतलेश्या होती है। भावलेल्या निर्देश लेश्या औदयिक भाव है
-दे० उदया। लेश्यामार्गणामें भावलेश्या अभिप्रेत है। छहों भाव लेश्याओंके दृष्टान्त । लेश्या अधिकारमे १६ प्ररूपणाऐ। वैमानिक देवामि द्रव्य व भावलेश्या समान होती है, परन्तु अन्य जीवोंमें नियम नहीं। द्रव्य व भावलेश्यामें परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं।
-दे० सत्। | शुभ लेश्याके अभाबमें भी नारकियोंके
सम्यकवादि कैसे। | भावलेश्याके कालसे गुणस्थानका काल अधिक है। लेश्या नित्य परिवर्तन स्वभावी है-दे० लेश्या/४/५६। लेश्या परिवर्तन क्रम सम्बन्धी नियम ।
मावलेश्याका स्वामित्व व शका समाधान सम्यक्त्व व गुणस्थानोंमें लेश्या । शुभ लेश्यामे सम्यक्त्व विराधित नहीं होता।
-दे० लेश्या/५/१ । चारों ध्यानोंमे सम्भव लेश्याएँ -दे. वह वह ध्यान । कदाचित् साधुमें भी कृष्णलेश्याको सम्भावना।
-दे० साधु/५ । उपरले गुणस्थानोंमें लेश्या कैसे सम्भव है।
केवलोके लेश्या उपचारसे है। -दे० केवली/६। | नरकके एक ही पटलमें भिन्न-भिन्न लेश्याएँ कैसे
सम्भव है। मरण समयमें सम्भव लेश्याएँ। अपर्याप्त कालमें सम्भव लेश्याएँ । अपर्याप्त या मिश्रयोगमें लेश्या सम्बन्धी शंका समाधान१. मिश्रयोग सामान्यमे छहो लेश्या सम्बन्धी। २. मिथ्याष्टि व सासादन सम्यग्दृष्टि के शुभ ग्नेश्या
सम्बन्धी। ३ अविरत सम्यग्दृष्टिके छहो लेश्या सम्बन्धी। कपाट समुद्घातमें लेश्या । चारों गतियों में लेश्याकी तरतमता । लेश्याके स्वामियों सम्बन्धी गुणस्थान, जोवसमास मार्गणास्थानादि २० प्ररूपणा -दे० सत् । लेश्यामें सत् ( अस्तित्व ) मख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव ब अल्पबहुत्वरूप आठ प्ररूपणाएँ।
-दे० उह बह नाम । लेश्या पॉच भावों सम्बन्धी प्ररूपणाएँ।
-दे० भाव/21 लेश्या मार्गणामें कर्मोंका बंध, उदय, सत्व ।
दे० वह वह नाम । अशुभ लेश्या तीर्थकरत्वके बन्धकी प्रतिष्ठापना सम्भव नहीं।
-दे० तीर्थंकर/२॥ आयुबंध योग्य लेश्याएँ । -दे० आयु/३। कौन लेश्यासे मरकर कहा जन्मता है -दे. जन्म/६ । शुभ लेश्याओंमें मरण नहीं होता -दे० मरण/४ । लेश्याके साथ आयुबन्ध व जन्म-मरणका परस्पर सम्बन्ध ।
-दे० जन्म/५/७ । सभी मार्गणास्थानों में आयुके अनुसार व्यय होनेका नियम।
---दे० मार्गणा
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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