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यंत्र
३- अर्हन्- मण्डल यंत्र
ॐ हरे जयावाल देवो विजय
ॐ ह्रीं सरस्वति देवी विद्यां
प्रयच्छतु
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४- ऋषि मंडल यंज
ॐ ह्रीं विलन्ना
उद्यम प्रयच्छतु
देवी प्रताप प्रयच्छतु ही कल्पेशाव गौरीदेवी ॐ चण्डिका
नम
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ॐ ह्रीं लक्ष्मीदेवी
ॐ हों अधिका देवी आरोग्य
प्रयच्छतु
ॐ हों विजया देवो जय प्रयच्छतु
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अप्राणिबधत्व गगन गामित्व अष्टाधिक सहस्त्रनामत्व
अप्रमितदीर्यत्व सौरम्य
सौरूप्य समचतुरस्र सस्थानत्व
नम
ॐ सिद्धेभ्यो नम
नमः
ਤਾਂ ਵੀ
अनुपसर्गत्व काररहितत्व
सौभक्ष्य
आचार्यो नम
मध
ॐ ह्रीं अजिता प्रयच्छतु
ॐ ह्रीं देशावधिम्यो ॐ हों परमावधिम्यो ॐ ह्रीं सर्वाधिभ्यो
नम
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पेयं
ॐ ह्रीं धृतिदेवी
सिहासन
प्रदर्शन
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नम..
सर्व विद्येश्वरत्व चतुरास्यत्व निश्कायित्व
ॐ ह्रीं व्यन्तरेन्द्राय ॐ हौं ज्योति केन्द्राय
छत्रत्रय
ॐ हों पाठकेभ्यो नम
(भामण्डल)
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ॐ हो होदेवी
नम
वज्रर्षभ नाराच सहननत्व
गोणित्व
अशोकवृक्ष
अनन्तस
३४९
(ॐ नमोऽर्ह)
निमि पुनि
नम.
सुवतेभ्यो
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वीर्य
दुन्दुभि
ह्रीं
पद्मप्रभुवासुपूज्याय नम
दिव्यध्वनि। अनन्त
नम
पुष्पयन्तेभ्यो
हुए ऐमो अम
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स्वेदत्व सुराह्नाननत्व निर्मलाकाशत्व धर्मचक्राग्रगामित्व द्रव्यष्टकत्व
भिनन्दनसुमति-शीतल
सुख
लानन्त धर्मशान्तिकुम्यव
प्रयच्छतु चिय
ॐ ह्रीं श्रीदेवी
अपक्ष्म परिस्पदत्व समनखकेश अर्धमागधी भाषित्व
क्ष
पवृष्टि
सह
सर्वमैत्रीत्व ऋत्वेकत्व आदर्श वडमित्व
ॐ ह्रीं नित्या
सुख प्रयच्छतु ॐ ह्रीं बुद्धिऋद्धिप्राप्तेभ्यो नम
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चमर
सुपाएवं पावाभ्यां नम
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
प्रयच्छतु प्रियशुभ ॐ ह्रीं कलि
राधे कृष् पदगत पद्मत्व सर्व धान्य फलत्व
ॐ ह्रीं सर्वसाधुग्यो ।
म्यूवचन
सर्व जनाहादकत्व पवनानुकूलत्व निष्कटक भूमित्व
ॐ ह्रीं मदुट्टया अमरत्व
प्रयच्छतु
ॐ ह्रीं सम्यक् चारित्रेभ्यो नम
ॐ को सर्वोचयद्धि ॐ ही बनन्सर रूद्धि
प्राप्तेभ्यो नमः
ॐ ह्रीं क्षेत्र - ॐ ह्रीं अक्षोण महानस-ॐ ह्रीं भावनेन्द्राय
-द्वि प्राप्तेभ्यो नम
प्राप्तेभ्यो नमः
-
नम
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फस्ट
प्रयच्छत् शत्रुनाशं ॐ ह्रीं काफी
ॐ ह्रीं कामागा हो कामवाणा
प्रीति
प्रयच्छतु
ॐ ह्रीं प्राप्तेभ्यो नम
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सुख
४
फाड-ॐ डॉ तपछि
सम्मानं
ॐ होला
ॐ
प्राप्तभ्यो नम
ॐ ह्रीं रसि
ॐ ह्रीं सुनन्या
ऋषि मण्डल यन्त्र
लिनी हर्ष
हो मम्मा-ॐ हीं माया अधिकारं
प्रय
निभ्यो नमः
प्राप्तेभ्यो नम ॐ ह्रीं विडिय
प्रयच्छतु
विहं
ॐ रोटी
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