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मोक्ष
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१. भेद व लक्षण
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अनेक भवोंकी साधनासे मोक्ष होता है एक मवमें नहीं।
-दे सयम /१/१०। मुक्तियोग्य गति निटेंश। निगोदसे निकलकर सीधी मुक्तिप्राप्ति सम्बन्धी।
-दे० जन्म/५ मुक्तियोग्य लिग निर्देश। सचेल मुक्ति निषेध ।
-दे० अचेलकत्व । स्त्री व नपुसक मुक्ति निषेध । -दे० वेद/७ । मुक्तियोग्य तीर्थ निर्देश । मुक्तियोग्य चारित्र निर्देश । मुक्तियोग्य प्रत्येक व बोधित बुद्ध निर्देश । मुक्तियोग्य शान निर्देश। मोक्षमार्गमें अवधि व मन पर्यय ज्ञानका कोई स्थान नहीं।
-दे० अवधिज्ञान/६। मोक्षमार्गमें मति व श्रुतज्ञान प्रधान है।
-दे० श्रुतज्ञान/I/२। मुक्तियोग्य अवगाहना निदेश। मुक्तियोग्य संहनन निर्देश।
-दे० सहनन। मुक्तियोग्य अन्तर निदेश। मुक्त जीवोंकी संख्या। गति, क्षेत्र, लिग आदिकी अपेक्षा सिद्धों ने अल्पबहुत्व।
-दे० अल्पबहुत्व/३/१। मुक्तजीवोंका मृतशरीर आकार ऊर्ध्वगमन व भवस्थान उनके मृत शरीर सम्बन्धी दो धाराएँ। । संसारके चरम समयमे मुक्त होकर ऊपरको जाते है। ऊर्ध्व ही गमन क्यों इधर-उधर क्यों नहीं। मुक्त जीव सर्वलोकमें नहीं व्याप जाता। सिद्धलोकसे ऊपर क्यों नहीं जाते।-दे० धर्माधर्म/२ । मुक्तजीव पुरुषाकार छायावत् होते है। | मुक्तजीवोंका आकार चरमदेहसे किचिदूम है। सिद्धलोकमें मुक्तात्माओंका अवस्थान । मोक्षके अस्तित्व सम्बन्धी शंकाएँ मोक्षाभावके निराकरणमें हेतु। मोक्ष अभावात्मक नहीं बल्कि आत्मलाभरूप है। सिद्धोंमें जीवत्व सम्बन्धी । --दे०जीव/२.४ । मोक्ष सुख सद्भावात्मक है।
-दे० सुख/२॥ शुद्ध निश्चय नयसे न बन्ध है न मोक्ष।
-दे० नय/V/१/२ सिद्धोमें उत्पाद व्यय ध्रौव्य। -दे० उत्साद/३ । मोक्षमें पुरुषार्थका सद्भाव। -दे० पुरुषार्थ । बन्ध व उदयकी अटूट शृंखलाकाभंग कैसे सम्भव हो। अनादि कर्मोंका नाश कैसे सम्भव हो। मुक्त जीवोंके परस्पर उपरोध सम्बन्धी। मोक्ष जाते जाते जीवराशिका अन्त हो जायगा ?
१. भेद व लक्षण
१.मोक्ष सामान्यका लक्षण त. सु./१०/२ बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्म विप्रमोक्षो मोक्षः १२।
बन्ध हेतुओ (मिथ्यात्व व कषाय आदि ) के अभाव और निर्जरासे सब कर्मोंका आत्यन्तिक क्षय होना ही मोक्ष है। (स सि./१/१/७/५, १/४/१४/५), (रा. वा./९/४/२०/२७/११), (सम/२७/३०२/
२८)। स. सि./१/१ को उत्थानिका/१८ निरवशेषनिराकृतकर्ममलक्लङ्कस्या
शरीरस्यात्मनोऽचिन्त्यस्वाभाविकज्ञानादिगुण मव्याबाध मुखमात्य - न्तिक्मवस्थान्तर मोक्ष इति। - जब आत्मा कर्ममल ( अष्टकर्म), कल क ( राग, द्वेष, मोह) और शरीरको अपनेसे सर्वथा जुदा कर देता है तब उसके जो अचिन्तम स्वाभाविक ज्ञानादि गुणरूप और अव्याबाध सुखरूप सर्वथा विलक्षण अवस्था उत्पन्न होती है उसे मोक्ष कहते है। (प. प्र./मू./२/१०); (ज्ञा /३/६-१०), (नि सा/ता वृ/४), (द्र. सं./टी./३७/१५४/५), (स्या. म/८/०६/३ पर उधृत श्लोक)। रा वा/१/१/३७/१०/१५ 'मोक्ष असने' इत्येतस्य घबभाबसाधनो मोक्षण मोक्ष असन क्षेपणमित्यर्थ., स आत्यन्तिक' सर्व कर्म निक्षेपो मोक्ष इत्युच्यते। रा. वा/९/४/१३/२६/६ मोक्ष्यते अस्यते मैन असनमात्र बा मोक्ष। रा बा /१/४/२७/१२ मोक्ष इव मोक्ष.। क उपमार्थ.। यथा निगडादिद्रव्यमोक्षात सति स्वातन्त्र्ये अभिप्रेतप्रदेशगमनादे पुमान् सुखी भवति, तथा कृत्स्नमवियोगे सति स्वाधीनात्यन्तिकज्ञानदर्शनानुपमसुख आत्मा भवति। समस्त कोंके आत्यन्तिक उच्छेदको मोक्ष कहसे है। मोक्ष शब्द 'मोक्षण मोक्ष'' इस प्रकार क्रियाप्रधान भावसाधन है, 'मोक्ष असने' धातुसे बना है। अथवा जिनसे कोंका समूल उच्छेद हो बह और कर्मों का पूर्ण रूपसे छूटना मोक्ष है । अथवा मोक्षकी भाँति है। अर्थात् जिस प्रकार बन्धनयुक्त प्राणी बेडो आदिके छूट जानेपर स्वतन्त्र होकर यथेच्छ गमन करता हुआ सुखी होता है, उसी प्रकार कर्म बन्धन का वियोग हो जानेपर आत्मा स्वाधीन होकर आत्यन्तिक ज्ञान दर्शनरूप अनुपम सुखका अनुभव करता है। (भ आ /वि./वि /३८/१३४/१८), (ध १३/५.५, ८२/३४८/8)। न च वृ./१५६ ज अप्पसहावादो मूलोत्तरपयडिसंचियं मुच्च। तं मुक्खं अविरुद्ध १५६। आत्म स्वभावसे मूल व उत्तर कर्म
प्रकृतियोके संचयका छुट जाना मोक्ष है। और यह अविरुद्ध है। स. सा/आ./२८८ आत्मबन्धयोद्विधाकरणं मोक्ष । -आत्मा और बन्ध को अलग-अलग कर देना मोक्ष है। २. मोक्षके भेद रा.वा /१/७/१४/१०/२४ सामान्यादेको मोक्ष, द्रव्यभावभोक्तव्यभेदादनेकोऽपि। -सामान्यकी अपेक्षा मोक्ष एक ही प्रकारका है। द्रव्य भाव और भोक्तव्यकी दृष्टि से अनेक प्रकारका है। घ १३/५०५,८२३/४८/१ सा मोक्खो तिविहो-जीवमोक्खो पोग्गलमोक्खो जीवपोग्गलमोक्रवो चेदि । वह मोक्ष तीन प्रकारका है-जीव मोक्ष, पुद्गल मोक्ष और जीव पुद्गल मोक्ष। न. च वृ./१५६ तं मुक्वं अविरुद्धवं दूविहं खलु दवभावगदं ।
-द्रव्य व भावके भेदसे वह मोक्ष दो प्रकारका है। (द्र सं/टी./३७/१५४/७)।
३. द्रव्य व भाव मोक्षके लक्षण भ आ/३/१३४/१८ निरव शेषाणि कर्माणि येन परिणामेन क्षायिकज्ञानदर्शन यथारण्यातचारित्रसज्ञितेन अस्यन्ते स मोक्ष । विश्लेषो वा
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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