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प्रदेश
जघन्य योगसे युक्त, अधिक प्रकृतिका बन्धक, जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । ३. सू. ल. / १ - सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्त, जघन्य योग से युक्त जीवके अपनी पर्यायका प्रथम समय । ४. सूल / २ -- सूक्ष्मनिगोद लब्ध्यपर्याप्तकी आयु बन्धके विभाग प्रथम समय । ५. सू. ल. / च=चरम भवस्थ तथा तीन विग्रहमेसे प्रथम विग्रहमे स्थित निगोदिया जीव 1
उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध
गुण स्थान
१. मूल प्रकृति प्ररूपणा
११,२, ४-६ आयु
मोह
१-६
१०
१-६
४ ४-६
सू. ल० / १ आयुके बिना
सात कर्म
ज्ञानावरणी दर्शनावरणी वेद-सू.२ आयु नीय, नाम, गोत्र, २. उत्तर प्रकृति प्ररूपणा
अन्तराय
१
No war
6)
प्रकृतिका नाम
१०
जघन्य प्रदेशबन्ध
गुण
स्थान व
स्वामित्व
स्त्यान०, निद्रानिद्रा, प्रचला अविरत प्रचला, अनन्तानु० चतु, स्त्री व सम्य० नबेद, नरकतिर्यग व देव गति पचेन्द्रियादि पाँच जाति, औदारिक, तैजस, व कार्मण शरीर, न्यग्रोधादि ५ संस्थान, वज्रनाराचआदि ५ सहनन, ओदारिक अंगोपाग, स्पर्श रस, अमत गन्ध, वर्ण, नरकार्णी, तिर्य-सयत गानुपूर्वी मनुष्यगस्यानुपूर्वी असी अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहा०, त्रस, स्थावर, बादर सूक्ष्म, पर्याप्त अपर्याप्त सूच] प्रत्येक साधारण, स्थिर. अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुभंग, दुस्वर, अनादेय, अयश, निर्माण, नोगो ६६ असाता, देव व मनुष्यायु, देवगति, देवत्यार्थी वैयिक शरीर व अगोपाग, समचतुरख संस्थान, आदेय, सुभग, सुस्वर, प्रदास्तविहायोगति
भ
नाराचसहनन
= १३ ==8
अप्रत्याख्यान चतुष्क हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, निद्रा, प्रचला,
तीर्थंकर
ह
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प्रत्याख्यान चतुष्क आहारक द्विक
पुरुष वेद, सज्वलन चतुष्क - ५ ज्ञानावरणकी ५. दर्शनावरणकी चक्षु आदि ४ अन्तराय ५. साता, यशस्कीर्ति, उच्चगोत्र - १७
प्रकृतिका
नाम
१३६
देवगति, व आनुपूर्वी, वैक्रि
यक शरीर व अंगापाग, तीर्थ
कर
=k
आहारक द्वय
देवायुमरका नरकगति व आनुपूर्वी =8
उपरोक्त ब
रिक्त शेष बची
=१०६
4. प्रकृति बन्धकी अपेक्षा स्वामित्व प्ररूपणा प्रमाण तथा संकेत -- (दे० पूर्वोक्त प्रदेशबन्ध प्ररूपणा नं० १) ।
नं०
१
२
१-४
५
9 m
७
Τ
३
१
مل
२
x & o
४
१
२-५
६-१०
११-१४ १४- १७
१७- २३
२४
२५
२६
५
१
२
३
६
१
२
३
२. प्रदेशबन्ध सम्बन्धी नियम व प्ररूपणाएँ
ज्ञानावरण
पाँचो
दर्शनावरण
प्रकृतिका नाम
चक्षु, अचक्षु अवधि व केवल
दर्शन
निद्रा
निद्रानिद्रा
प्रचला
प्रचलाप्रचला वेदनीय-
साता
असाता
मोहनीय
मिथ्यात्व
अनन्ता० चतु०
अप्रत्या० चतु०
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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प्रत्या० चतु० सज्वलन चतु०
हास्य, रति, अरति, शोक,
भय, जुगुप्सा
स्त्री वेद
आयु
पुरुष "
नपु०”
नरकायु
तिर्यग
मनुष्य
देवायु
नामकर्म
गति -
नरक
तिर्यग्
मनुष्य
देव
जातिएकन्द्रियादि पाँचो
शरीर-औदारिक बै क्रियक
आहारक तेजस
स्वामित्व व गुणस्थान
उत्कृष्ट
१०
१०
१०
१
१० १
१०
१-६
aao or w
४-६
१
१०
१
१
१
१-६
13
१
१
१
१-६
जघन्य
७
१
सू.स./
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22
33
"
33
22
כג
22
असंशो सू. ल / च
सू
१
सूच १६ त
सम्य०
असज्ञी
सू./
37
अविरत
सम्य०
अप्रमत्त
सू. ल. / च
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