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प्रकृति बंध
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७. प्रकृति बन्ध विषयक प्ररूपणाएं
मार्गणा
गुण स्थान
व्युच्छित्तिकी प्रकृतियाँ
अबन्ध
पुन. बन्ध
बन्ध | अबन्ध
शेष | बन्ध व्युच्छि. बन्ध बन्ध
योग्य
योग्य
| ६४ ।
भवन. त्रि. अप. वन्ध योग्य-१०४-तीर्थकर, मनुष्य व तिर्यगायु-१०१: गुणस्थान-१,२
भवनत्रिक पर्याप्तवत -७ ओघवत २५-तियंचायु -२४ नोट-सम्यग्दृष्टि यहाँ नहीं
उपजते। कल्प. देवी.अप,
-भवनत्रिक अपर्याप्तवत----→ सौधर्म ईशान बन्ध योग्य-सामान्य देवकी १०४-मनुष्य, तिथंचायु-१०२: गुणस्थान-१,२,४ अप० सौधर्मपर्याप्तवत् ७ । तीर्थ कर
। १०१ । ७ ओघवत् २५-तिर्यंचायु -२४ ।
१४ । २४ ओघवत् १०-मनुष्यायु -६
| तीर्थकर । ७० (सनत्कुमा
अन्ध योग्य-सामान्य देवकी १०४-एकेन्द्रि०, स्थावर, आतप, मनुष्य, तिथंचायु-१६ गुणस्थान १,२,४ २ रादि १० (स्वर्ग अप० मिथ्यात्व, हुंडक, नपुं०, तीर्थ कर
६६ १ सृपाटिका ओघवव २५-तियचायु -२४
४ २४ ७० ओघवत् १०-मनुष्यायु -६
। तीर्थकर |
। ७१ । १ ६२ आनतादि ४ बन्ध योग्य = सामान्यकी १०४-एकेन्द्रि०, स्थावर, आतप, तिर्यचत्रिक, उद्योत, मनुष्यायु-६६; गुणस्थान-१,२,४ स्वर्गव नव प्रै० अप०
१ मिथ्यात्व, हुंडक, नपुं० । तीर्थ कर
सृपाटिका ओघवद २५-तिर्यक
त्रिक व उद्योत ४ ओघवत १०-मनुष्यायु ६
। तीर्थ कर अनुदिशव |
बन्ध योग्य-सौधर्म पर्याप्त या नि० अपर्याप्तवत् ४ थे की ७०% गुणस्थान - केवल -१ (चतुर्थ) ५ अनुत्तर अप० २. इन्द्रिय मार्गणा-(प. वं. दामू. १०२.१३६/१५८-९९२): (गो. क./११३-११४/१०२-१०४) सर्व एकेन्द्रिय बन्ध योग्य ओघकी १२०-तीर्थकर, आहार द्वि०, देवत्रिक, नरकत्रिक, वैक्रि० वि०-१०६ गुणस्थान २
ओघवत १६-नरकत्रिक
+मनु० ति० आयु -१५ | ओघको २५+वज्र ऋषभ, औ०
वि०, मनु० द्वि ३०-तिर्यगायु सर्व विकलेन्द्रिय
२६
----- एकेन्द्रियवत् ----→ पंचे० पर्याप्त
----- ओघवत् -- -→ पंचे. नि. अप बन्ध योग्य =ओघकी १२०-४ आयु, नरक द्विक, आहा० द्वि०-११२ गुणस्थान - १,२०४,६,१३ ओघवत् १६-नरकत्रिक -१३ देव द्विक, वै क्रि०
११२ । ५ । | द्वि० तीर्थ ओघवत् २५-तियचायु -२४
४ | २४ अप्रत्याख्यान ४, प्रत्या०४,
देव द्वि० ० औ० द्वि०, वज्र ऋषभ
द्वितीर्थ मनु० द्वि०
| १०६
१०४
७५ ! १३
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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