________________
कि कोश का पांचवां भाग भी वह तैयार कर गये हैं जो चारो भागों की अनुक्रमणिका है, इस कारण यह कोश सर्वांगीण हो गया है । इसकी उपयोगिता और तात्कालिक संदर्भ-सुविधा कई गुना बढ़ गई है ।
इस महान् कोश-ग्रन्थ के नियोजन और क्रियान्वयन में बाल-ब्रह्मचारिणी कौशल जी ने जो सहयोग दिया है, उसको स्मरण करते हुए पूज्य वर्णी जी ने इस कार्य की तत्परता के रूप में 'उनकी कठिन तपस्या' का उल्लेख किया है । भारतीय ज्ञानपीठ इसे अपना पवित्र कर्तव्य मानती है कि वह ब्रह्मचारिणी कौशलजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करे कि उनकी निष्ठा और साधना के योगदान से यह कार्य सम्पन्न हुआ। इसे स्वीकार करते हुए वर्णीजी ने स्वयं लिखा है : 'प्रभु-प्रदत्त इस अनुग्रह को प्राप्त कर मैं अपने को धन्य समझता हूँ।' किसी अन्य के लिए इससे आगे लिखने को और क्या रह जाता है !
आरम्भ के इन दो नये संस्करणों की भांति तीसरे और चौथे भाग के संशोधित नये संस्करणों का यथाशीघ्र प्रकाशन ज्ञानपीठ के कार्यक्रम में सम्मिलित है । इसी क्रम में चारों भागों की अनुक्रमणिका से सम्बद्ध पाँचवाँ भाग भी प्रकाशित होगा । कोश का प्रकाशन इतना व्यय-साध्य हो गया है कि सीमित संख्या मे ही प्रतियाँ छापी जा रही हैं । पाँचों भागों की संस्करण-प्रतियों की संख्या समान होगी। अतः संस्थाओ
और पाठकों के लिए यह लाभदायक होगा कि वह पांचों भागों के लिए संयुक्त आदेश भेज दें। पांचों भागो के संयुक्त मूल्य के लिए नियमो की जानकारी कृपया ज्ञानपीठ कार्यालय से मालूम कर लें।
ज्ञानपीठ के अध्यक्ष श्री साहू श्रेयांस प्रसाद जैन और मैनेजिंग ट्रस्टी श्री अशोक कुमार जैन का प्रयत्न है कि यह बहुमूल्य ग्रन्थ संस्थाओ को विशेष सुविधा-नियमो के अन्तर्गत उपलब्ध कराया जाए।
कोश के इस संस्करण के सम्पादन-प्रकाशन में 'टाइम्स रिसर्च फाउण्डेशन, बम्बई, ने जो सहयोग दिया है उसके लिए भारतीय ज्ञानपीठ उनका आभारी है ।
मूर्तिदेवी ग्रन्थमाला के वर्तमान सम्पादक-द्वय-सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्रजी, वाराणसी, और विद्यावारिधि डॉ. ज्योति प्रसाद जैन, लखनऊ, का मार्गदर्शन ज्ञानपीठ को सदा उपलब्ध है । हम उनके कृतज्ञ है।
अनन्त चतुर्दशी 17 सितम्बर 1986
- लक्ष्मीचन्द्र जैन, भारतीय ज्ञानपीठ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org